Wednesday, October 5, 2016

ओणम, महाबली और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ

पिछले महीने देश का सांस्कृतिक माहोल बिघाडनेवाली दो घटनाए घटी। यह जानबूझकर किया गया प्रयास था। पहली घटनामे, केरल राज्य में प्राचीन काल से बड़ी धूमधाम से ओणम का फेस्टिवल मनाया जाता है। यह सांस्कृतिक उत्सव राजा महाबली के आगमन के तौरपर उनके स्वागत के लिए होता है। इस संदर्भ में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ कि मल्यालम पत्रिका केसरी ने ओणम पर विशेषांक निकाला। विशेषांक में लिखे लेख में राजा महाबली कि मान्यताओं को तोडमरोडकर पेश किया गया। लेख में महाबली को असुरों (राक्षसों) का राजा और ओणम को महाबली के नाम से नहीं किंतु वामन (विष्णु) के स्वागत के तौर मनाया जाता है। ऐसा कहा गया। दूसरी घटना में, भाजपा के अध्यक्ष अमित शहा कि ओरसे सोशल मिडिया में किया गया ट्विट। ट्विट मे एक बैनर दिखाया गया, जहा वामन नाम का ब्राम्हण राजा महाबली के सर पे पैर रखकर उसे नरक में धकेल रहा है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक कि पत्रिका का लेख और अमित शाह का ट्विट एकसाथ प्रगट होना, आदतन संघपरिवार के सोची समझी निती के तौरपर हुवा है।


केसरी के लेखक उन्नीकृष्णन नम्बुथिरी संस्कृत के प्राध्यापक है। उनके अनुसार वामन विष्णु का अवतार है। विष्णु ने केरल को साम्राज्यवादी महाबली से मुक्त किया है। महाकाव्योमे महाबली के बारेमे कम ही बाते बताई गई है। लेकिन उन्नीकृष्णन नम्बुथिरी और संघ का मुखपत्र देश के बहुजन समाज को गुमराह करता है। वास्तव में महाबली पर पुराणों, ब्राम्हणों तथा उपनिषदों में विस्तृत चर्चा कि गई है। देश की जनता राजा महाबली को जानती और मानती है। मराठी में एक प्रोव्हर्ब है “ईडा पीड़ा टळो आणि बळीचे राज्य येवो”देश की जनता का वामन से क्या सबंध? वह उसे जानती तक नहीं।   

ब्राम्हण समाज के लोगोने अपने आप को ‘ईश्वर’ कहा है और ब्राम्हनेत्तर बहुजन समाज को ‘असुर’ कहा है। इन ईश्वर (ब्राम्हण) व असुर (बहुजन) दोनोमे अक्सर वर्चस्व के लिए लढाई होती थी। लढाई के बाद या पहले समझौते हुवा करते थे। लेकिन ब्राम्हण यह समझौते अक्सर तोडा करते थे। इसीलिए महात्मा ज्योतिबा फुले ने वैदिक संस्कृति को दगा देनेवाली संस्कृति कहा है। नमुची, वृत्र, हिरण्यकश्यप, प्रल्हाद, विरोचन, बली, महिसासुर, खंडोबा के साथ ब्राम्हनोने ऐसीही दगाबाजी कि थी। इसके विपरीत असुर ब्राम्हणों के ऊपर विश्वास रखकर समझौतोका पालन करते थे। इसका परिणाम यह हुवा कि, ब्राम्हण चुपकेसे बहुजनोपर (असुरों) पर वार करने लगे और उनको पराभूत करने लगे थे। ब्राम्हणों में नैतिकता का थोड़ा भी अंश नहीं बचा था। किंतु, बहुजनो कि ओरसे नैतिकता का पालन होने से उन्हें पराभूत होना पड़ा।

उदहारण के तौर पर वृत्र और इंद्र के बिच के लढाई को देखा जा सकता है। वृत्र और इंद्र के बिच में तह हुवा था। तह के नुसार आपस में लढकर भी एकदूसरे को मारना नहीं था। लेकिन यकायक वृद्ररूप धारण करते हुए इंद्र वज्र उठाकर वृत्र को मारने के लिए दौड़ा, यह देखकर वृत्र ने कहा कि, मै मेंरी सारी शक्तिया आपको देता हू, लेकिन आप मुझे मारो मत। फिर भी इंद्र ने वृत्र को मार दिया। शत्रु को कपटनिति से मारना और उसकी निंदा करके बदनामी करना इंद्र जैसे ब्राम्हणों का स्वभाव रहा है। हिरण्यकश्यप, प्रल्हाद, विरोचन, महाबली, महिसासुर और खंडोबा इन बहुजन राजाओके साथ ऐसाही हुवा था।

वामन पुराण में बली और वामन कि कथा आई है। वहा अदिति और कृष्ण का संभाषण है। इसमें ब्राम्हण कहते है कि, जो मनुष्य पाच, तिन या दो ब्रम्हाण को भोजन देता है, वे परमगती प्राप्त करते है। यहा ब्राम्हणोंका महात्म्य बढाकर उनके हितसबंध का ख्याल रखा गया है। राजा बली ने यज्ञ का विरोध किया था। इसीलिए सारे ब्राम्हण महाबली के विरोध में खड़े हो गए थे। श्रीमत भागवत पुराण में आई कथा में, महाबली ब्राम्हणोंके साथ तर्क करके उन्हें निरुत्तर करते थे। बली यज्ञयाग और कर्मकांड मानने को तैयार नहीं था। फिर भी महाबलीने वामन को यज्ञयाग करनेके लिए भूमी दी। लेकिन बली विशेष वर्ग को विशेष लाभ देने के सक्त खिलाफ था। ब्राम्हणोंके दृष्टिकोण से यह धर्मद्रोह और गुनाह था। इसी कारण लोभी और कपटी वैदिक नेता वामन ने महाबली का खून किया।
भागवत पुराण में लिखा है, वामनके उपनयन के समय में सूर्य (सूरज) ने सावित्री मंत्र कहा है। ऐसा  नमूद किया है। अब प्रश्न यह निर्माण होता है, सूर्य जमीन पर आया कैसे और मंत्र कैसे कहा? क्या वो मनुष्य है? वामन के लिए क्या वो निचे जमीन पर उतर आया? फिर सूर्य की तप्त आग से लोग कैसे बच गए? इन प्रश्न के ऊतर पुराणोंके किसी भी पन्ने पर नहीं मिलते ।

शतपत ब्राम्हनो में स्पष्ट कहा है कि, क्षत्रिय सामान्य जनता का राजा हो सकता है लेकिन ब्राम्हणों का नहीं। महाराष्ट्र में ब्राम्हणोंद्वारा शिवाजी महाराज के राज्यभिषेक को नकारना और जेम्स लेन के पास शिवाजी महाराज कि बदनामी करना उनके पुरखो द्वारा अवतारकल्पना के माध्यम से बहुजन राजा हैग्रिव से लेकर राजा महाबली तक की हत्या के बाद भी उनकी बदनामी करने की परंपरा का नई पीढ़ी द्वारा पालन करनेका नया संस्करण था। शिवाजी महाराज दूसरो के लिए राजा थे लेकिन ब्राम्हणों के लिए नहीं। इसिलए ब्राम्हणोंद्वारा शिवाजी महाराज के साथ दुर्व्यवहार किया गया था।

“वामनावतार” की कहानी से पता चलता है की, वामन ने बली के पास केवल तिन पैर रखने के लिए जमीन माँगी थी। बली ने उसे जगह दी। तब वामन ने दो पैरों से जमीन को व्याप्त किया। और तीसरा पैर रखने के लिए बली को जगह माँगी तब बली ने  पैर अपने सर पे रखने के लिए कहा। तब वामन ने बली के सर पर पैर रखकर उसे पाताल में धकेल दिया। लेकिन क्या यह कहानी सत्य है? वैज्ञानिक तौरपर यह पूर्णत: असत्य, काल्पनिक और असमर्थनीय है। बली कि हत्या के षडयंत्र से बचने के लिए यह कहानी रची गई। जैसे कि महाराष्ट्र के संत तुकाराम महाराज के वैकुण्ठगमन कि कहानी। जिसमे तुकाराम महाराज कि हत्या कि गई लेकिन बहुजन समाज के घुस्से से बचने के लिए उनके सदेह विमान से स्वर्ग में जाने कि कहानी रचकर लोगोंको मुर्ख बनाया गया। उनकी गाथाए नदी में डुबो दी लेकिन बादमे वह गाथाए चमत्कार से ऊपर आने कि कहानी रची गई। हालाकि, सब गाथाए संत जगनाडे महाराज द्वारा पुन्ह: लिखी गई थी। ब्राम्हण समाज द्वारा झूठी कहानिया लिखकर जनता को कर्मकांड में डुबो देना और सच या झूठ पर सोचने कि शक्ति नष्ट कर देना उनके परंपरा का हिस्सा है।
पुराण पूर्वकाल तथा पुरानोत्तर काल की घटनाए कल्पनासौंदर्य का उत्तम उदहारण हो सकता है लेकिन वह सारी अवैज्ञानिक थी। पुराण और उपनिषद जैसे ग्रंथ बहुजन समाज पर अपना वर्चस्व प्रस्थापित करने के लिए लिखी गई है। जैसे कि, हजारों वर्षपूर्व कि यह घटना है... एक ब्राम्हण ऋषि रहता था .... उसका किसीने अपमान किया या उसे दान नहीं दिया .. इसी कारण उसे नरक में स्थान मिला ... उसका जन्म कुत्तेके तौर पर हुवा। इन तथ्यहीन कथाओंने देश के बहुजन समाज के मन में डर और खौफ पैदा किया। इसीलिए बहुजन समाज ने अवैज्ञानिक बातों से खुद को दूर रखना चाहिए।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ हैग्रिव, हिरण्यकश्यप, महाबली, महिसासुर और खंडोबा के उत्सव नहीं मनाता। क्योकि वह बहुजन समाज के राजा थे। लेकिन संघ वामन, परशुराम और विष्णु की जयंती और होली, दशहरे और गुडीपाडवा जैसे त्योहारों को बढ़ावा देता है। कारण स्पष्ट है, वे केवल उनके महानायक थे। इसिलए अपने पुर्वजोंके पराभूत होने के क्षण ब्राम्हणों के विजयोत्सव के रूपों में क्यों मनाए? इसपर बहुजन समाज ने मंथन करना चाहिए।

भूतकाल के ब्राम्हणों की भूमिका आज का राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ अदा कर रहा है। वह प्राचीनकाल की काल्पनिक कहानियोँ को विविध माध्यमो द्वारा बहुजन समाज पर थोपना चाहता है।  संघ के मुखपत्र केसरी में वामन की कथा को उछालना उसी कलि का एक प्रयोग है।  “ओणम” उत्सव के समय भाजपा अध्यक्ष अमित शहा द्वारा बली के सर पर वामन द्वारा पैर रखने वाले बैनर्स लगाना उस षडयंत्र का एक पार्ट है। नारायण गुरु जैसे समाज सुधारकोंको राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ हिंदू सन्यासी कहने लगा है। केरल के मुख्यमंत्री लिखते हैं, "अद्वैत वेदांत के दार्शनिक नित्य चैतन्य ने केरल को ईश्वर का बाग कहा था मैं ऑर्गनाइज़र और संघ से यह अपील करता हूं कि वे इस बाग में ज़हर का विनाशकारी बीज बोने से बाज आएं  इससे देश में संघ का आतंक कितना गहराते जा रहा है, इसका सज्ञान मिलता है अपनी वर्चस्वता कायम रखने के लिए राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ जन जातियोमे, भिन्न भिन्न वर्गोमे सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक संघर्ष को बढ़ावा देता है मधुर वाणी, धर्मसत्ता और वर्ण की श्रेष्ठता उनका मुख्य बल है

लेखक: बापू राऊत
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E-mail:bapumraut@gmail.com





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