Sunday, May 28, 2017

....... यह चमारोकी नपुसकता नहीं तो, और क्या है?

उत्तर भारत में चमारोंको दूसरे सवर्ण हिंदूओ द्वारा मारा और काटा जा रहा है. चमार खुद कों हिंदू धर्म का अभिन्न अंग मानते है लेकिन स्वर्ण उन्हें हिंदू नहीं अछूत (दलित) कहते है. मुस्लिम ईसाई के विरुद्ध  दंगोके समयपर उनपर हिंदू या हिंदुत्व का लेबल चिपकाया जाता है. वे हिंदू धर्म की वर्णव्यवस्था (जातिव्यवस्था) कों मानकर चलते है. और निचले दर्जे का काम करनेमे वे खुद कों गर्व महसूस करते है. वे ब्राम्हणों द्वारा घरमे पूजा पाठ करवाते है. और उन्हें मुहमांगी दक्षिणा देते है. वे खुद जमीनपर बैठकर ब्राम्हणों तथा उची जाती के लोगोको कुर्सी पर बिठाते है. लेकिन वे कुर्सी खाली होकर भी जमीन पर बैठ जाते है. इस समानता को वे
वर्षोसे पाल रहे है. गुलामी की भी कुछ हद होती है. महाराष्ट्र के चमारो में तो थोडासा भी स्वाभिमान दिखाई नहीं देता. हिंदू व्यवस्था का गुलाम बनकर रहना पसंद कर रहा है. आरक्षण का पुरजोर से फायदा उठा रहा है. लेकिन उस आरक्षण कों बचाने के लिए कभी रास्ते पर नहीं उतरता. संघर्ष करना उन्होंने कभी सिखाही नहीं. उत्तर प्रदेश और अन्य प्रदेशो मे उनके चमार भाईयोंको मारा और पिटा जा रहा है. लेकिन महाराष्ट्र के चमार इसके खिलाफ आवाज उठाने मे अक्षम्य दिख रहे है. कही पे भी विरोध का स्वर नही.
इन चमारों को उची सवर्ण जातीया एक टूल और हत्यार के तौर पर इस्तेमाल करती है. उनका मुख्यत: मुस्लिम तथा इसाईयों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है. मुस्लिम और हिंदू के दंगल में,  इन चमार जातीयोंको ही इस्तेमाल किया जाता है.  ये चमार जब जब मुस्लिम के खिलाफ दंगल में सहभाग लेते है तब तब उनपर मिडिया और सवर्ण हिंदूद्वारा हिंदू होने का लेबल चिपकाया जाता है. लेकिन जब ये तथाकथित हिंदू चमार  खुद के अधिकारो की बात करते है तब यही हिंदू मिडिया और सवर्ण इन्हे चमार या दलित कहना चालू कर देता है. इन उची जातियाँ की नजर में केवल वे चमार (दलित) बनकर रह जाते है. उनके अधिकारोंकों उची जातियाँ द्वारा ठुकराया जाता है.
उत्तर भारत और महाराष्ट्र में इन चमार जातियों का मुख्यत: चमडेका व्यवसाय है. इस व्यवसाय से उनका आर्थिक स्तर बढा है. लेकिन मोदी और संघ ने गोहत्या हे नामपर उनके धंदे कों चौपट कर दिया. वे अभी कंगाल और आर्थिक तौरसे बेरोजगार हो रहे है. मोदी ने उनकों  रोजगार देने का वायदा किया था. लेकिन मोदीने उन्हें एक झटके में बेरोजगार बना दिया. फिर भी इन चमारोने अपनी आवाज नहीं उठाई. अन्याय सहना कोई इनसे सीखे. व्यवस्थाके वे पक्के गुलाम है. महाराष्ट्र के चमारोने फुले और आंबेडकर कों स्वीकार नहीं किया. ऐसे स्थितिमे उनमें स्वाभिमान की बात जागृत हो़ना असंभव है.
गुजरात के उना में स्वर्ण हिंदूवोने (संघियोके नौकरोंने) चौराहोपर चमारोको पिटपीटकर मारा. इतना ही नहीं उन्होंने उनके मुह में मूत्र तथा गोबर भी डाला. ऐसी अनेक घटनाए हो रही है. उसके विरुध्द ऊना में थोडा संघर्ष हुवा लेकिन वह परिणामशून्य साबित हुवा. राजस्थान मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब तथा उत्तराखंड इन राज्योमे भी चमारोपर अनन्वित अत्याचार हो रहे है. इन चमारोंको मंदिरो  मे भी प्रवेश नहीं मिलता. अछूत कहके उन्हें बाहर रखा जाता है. हाल ही में सहारनपुर और शब्बिरपुर में उची जाती के लोगो ने चमारोंको बकरे जैसा काटा और मारा. महिलाओ पर अत्याचार तो रोज की जिंदगी बन गई है.
यह मानवता के कितना खिलाफ है? जब इन चमार महिलाओ पर अत्याचार होता है तब नागरी समाज कभी भी मेनबत्तिया लेकर बाहर नहीं निकलता  और शिक्षा की माँग नहीं करता लेकिन कभी एकबार किसी उची जाती की निर्भया पर मुस्लिम तथा चमारोद्वारा अत्याचार होता तब पूरी सिविल सोसायटी आवाज उठाती है. कानून बनाकर फ़ासी के शिक्षा की माँग होती है. इन उची जातियाँ का जातिवाद और दूषित मानसिकता स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है.
यह चमार जातियाँ अन्य उची जातियों का गुलाम बनाकर रहना पसंद करती है. गुलामी की भी कुछ हद होती है. धर्मशास्त्र का हवाला देकर इन चमारोंका शोषण होता. ये लोग मान भी लेते है और चुपचाप अन्याय सहन कर लेते है. सवाल उठाना और धर्मशास्त्र की चिकित्सा करना इन्होने कभी सिखा ही नहीं.   वर्णव्यवस्थामें अपमानित होकर मरना पसंद करेंगे लेकिन आवाज उठाना इनके दिमाग में कभी आता नहीं.
भारत के यह चमार अब रोज बली के बकरे बनेंगे. हिंदू मुस्लिम ईसाई दंगोमे इनका इस्तेमाल किया जाएगा. तब इन्हें हिंदू की उपाधि देकर और गौरव कर उनके द्वारा मुस्लिमो /ईसाई कों मारा जाएगा और उनके घर जलाए जायेंगे. लेकिन जब ये अपने अधिकार की मांग करेंगे तब स्वर्ण हिंदू उन्हें चमार और अछूत कहकर मारेंगे और उनके घर जलायेंगे तथा महिलाओंकी आबरू लूटेंगे. यह सिलसिला सेकडो सालो से चलता आ रहा और आज के चमार यह सिलसिला आगे भी चलाएंगे. स्वाभिमानशून्य चमारोके इस वीर रस को नपुसकता और षंढता नही तो और क्या कहेंगे?  

बापू राऊत        


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