Wednesday, October 25, 2017

विश्वविद्यालय चुनावों मे एबीवीपी की हार

“अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद” (एबीवीपी) यह संघ की एक शाखा है संघ की यह विद्यार्थी शाखा विश्वविद्यालयोंके चुनावो में भाग लेकर अपने चुने हए प्रतिनिधिद्वारा विद्यापीठ प्रशासनपर अपना दबाव बढाता है भाजपा के भावी नेता इस विद्यार्थी परिषद से निकलते है संघ की यह छात्र शाखा विद्यार्थी और विश्वविद्यालयोमे संघ की विचाराधारा कों प्रसारित करती है मुख्यत: बहुजन समाज के विद्यार्थी इनके अजेंडे पर होते है बहुजन छात्रपर सीधे तौर पर संघ विचारधारा नहीं थोपते बल्की सुरुवाती दौर में  बहुजन विद्यार्थीयोकी समस्याओ पर अपना ध्यान केंद्रित कर उन्हें “अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद” का सभासद बना लेते है जिस वर्ग या जातीसमूह से विद्यार्थी आते है, उस वर्ग या जातिविशेष की समस्याओ पर संघ और परिषद के काम करने के तरीके कों अवगत कराया जाता है. मुख्यत: हिंदू मुस्लिम भेद पर प्रकाश डालकर मुसलमान देश के लिए कितने खतरनाक है, इसका सिध्दांत (थेरी)  समझाया जाता है


आजकल विश्वविद्यालयोमे “अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद” अधिक आक्रमक हुई दिखाई दे रही है, इसका मुख्य कारण है, भाजपा का सत्ता मे आना और संघ की ताकद बढ़ना अब वे संघ के विचार विद्यार्थीयोपर थोपना चाहते है। और देशप्रेम का चोला पहनकर वे दूसरे संघठन के विद्यार्थियोंको देशद्रोही कहने लगे है। विश्वविद्यालयोके परिसर संघर्ष के केन्द्र बन गए है विश्वविद्यालयोमे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, लेफ्टिस्ट विद्यार्थी संघटना एंव फुले-आंबेडकरवादी विद्यार्थीओके बिच में संघर्ष अब आम बात हो गई है अन्य विद्यार्थी संघटनाओ के सेमिनारों में अगर संघ/हिन्दुत्ववाद विचारधारा विरोधी वक्ता बुलाया जाता है, तब एबीवीपी के विद्यार्थी हंगामा खड़ा कर सेमिनार न होने देने की बात करते है आजकल पुलिस इतनी सस्ती हो गई है की वे एबीवीपी के बुलावे पर तत्काल हाजिर हो जाती है

हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालयमें रोहित वेमुला और उसके साथियोपर की गई कार्यवाही एबीवीपी और केन्द्रीय मंत्रियोद्वारा किये गए दबाओ का नतीजा था और रोहित वेमुला की गई संस्थात्मक हत्या उसका एक परिणाम था इस संस्थागत हत्या के विरोध में पुरे देश में विरोध प्रगट किया गयालेकिन किसी भी दोषी कों सजा नहीं दी गयी बल्की रोहित वेमुला की जातीको ही बदल दीया गया, ताकि दोषीयो पर अनु.जाती/जनजाति प्रतिबंधक कानून के अंतर्गत कार्यवाही न हो। राजसत्ता का दुरुपयोग कैसे किया जा सकता है? इसका भाजपा ने देशवासियोंको एक नया फार्मूला दिया है।   
दूसरे एक प्रसंग में जवाहरलाल नेहरू युनिव्हर्सिटी के विद्यार्थी छात्र अध्यक्ष कन्हैया कुमार, उमर खालिद अनिर्बन भट्टाचार्य पर देशद्रोहका आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया देश के तथाकथित मिडिया 

ऐंकरोने जजो की भूमिका निभाकर जेल में डालने की सलाह दी झी न्यूज/टाइम्स नाउ/इंडिया टीव्ही  के वार्तांकन के आधारपर पोलिस ने उनपर देशद्रोह का केस बनाकर जेल में डाल दिया देश के कुछ वकिलोने भी उनके साथ दुर्व्यव्हार किया आजकल संघ और भाजपा के कार्यकर्ता अनेक रूपों में दिखाई दे रहे है कभी वे वकीलों के रूपों में, कभी जजो के रूपों में, कभी टीव्ही एंकरो, समाचार पत्र के संपादक और बड़े बड़े प्रशासनिक अधिकारियोमे रूप में संघ और भाजपा के कार्यकर्ता दिखाई दे रहे है अब कुछ विद्वान इसे देश के लिए खतरा बताकर आगामी गृहयुध्द के संकेत बता रहे है
रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या हो, या कन्हैया कुमार और उसके साथियों पर देशद्रोह का आरोप हो देश के हर विश्वविद्यालयोके के विद्यार्थी यह तमाशा देख रहे थे उन्हें बस एक मौके की तलाश थी वह विश्वविद्यालयोके चुनाव के नामपर मिल गई। इसके पहिले देश कही विश्वविद्यालयोमे एबीवीपी के छात्र अधिकारिक तौरपर प्रतिनिधि थे। लेकिन अभी हुए छात्र चुनावों में संघ और भाजपा की शाखा रही एबीवीपी कों छात्रोने धुव्वा चटा दिया दिल्ली विश्वविद्याल, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्याल, पंजाब विश्वविद्याल, हैदराबाद सेन्ट्रल विश्वविद्यालय,  इत्यादि विश्वविद्यालयोमे एबीवीपी कों करारी हार दी

दिल्ली विश्वविद्यालय में एबीवीपी का सालोसे कब्ज़ा रहा है लेकिन वहा अभी के चुनावोंमें एबीवीपी, आयसा और एनएसयुआय के बिच में लढत देखने कों मिली. जहा एनएसयुआय (काँग्रेस) कों अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर जित मिली जहा एबीवीपी हमेशा जीतती आई है वही जेएनयु (जवाहरलाल नेहरू युनिव्हर्सिटी) पर लेफ्टिस्ट छात्र संघटनोंने कब्ज़ा कर लिया एबीवीपी का कागज़ कोरा ही रह गयाजेएनयु, दिल्ली विश्वविद्यालय और हैदराबाद सेंट्रल विश्वविद्यालय में एबीवीपी, एनएसयुआय और लेफ्टिस्ट छात्रोंकी पकड़ मजबूत रही हैलेकिन अब एक चौथे फ़ोर्स ने विश्वविद्यालयोमे अपनी दखलअंदाजी दर्ज की है। बिरसा-फुले-आंबेडकरवादी छात्र संघटना यह एक चौथा फ़ोर्स हैजवाहरलाल नेहरू युनिव्हर्सिटीमें  बाप्सा (बिरसा आंबेडकर फुले असोसिएशन) के छात्रोने अपना नया आयाम खड़ा कर दिया बाप्सा का वोट शेअर काफी बढ़ गया है जेएनयु में बाप्सा का उदय यह एक शुभसंदेश है विश्वविद्यालयोंके परिसरों में, छात्रों ने एबीवीपी के राजनीति और द्वेषब्रांड के खिलाफ मतदान किया।
17 जनवरी, 2016 को रोहित वेमुला की विश्वविद्यालय परिसर में संस्थानक आत्महत्या के बाद हैदराबाद सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी के छात्र चुनावों एबीवीपी के विरोध में अलायन्स फॉर सोशल जस्टिस (एएसजे) द्वारा चुनाव लढे गए जहा 'स्टूडंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई), आंबेडकर छात्र संघ (एएसए), दलित छात्र संघ (डीएसयू), आदिवासी छात्र मंच (टीएसएफ), मुस्लिम छात्र फ्रंट (एमएसएफ) और तेलंगाना विद्याधर वेदिक (टीवीवी) छात्रसंघ शामिल थे। इस छात्र चुनाव में एबीवीपी का एक भी छात्र प्रतिनिधि के तौरपर चुनकर नहीं आया हैदराबाद विश्वविद्यालय में एक फ़ासिस्ट तत्वों के खिलाफ की लडाई थी, जहा जित हासिल हुई। उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयोमे समाजवादी पार्टी के छात्रसंघटनोने योगी आदित्यनाथ का राज रहते एबीवीपी (भाजपा) कों हरा दिया।

विविध विश्वविद्यालयों में एबीवीपी की हार और प्रोग्रेसिव्ह तत्वों की जीत, छात्रों के राजनीति तथा सामाजिक सोच में आई परिपक्वता का परिचय दिखाती है विश्वविद्यालयोके यह चुनाव परिणाम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की आर्थिक, धार्मिक तथा समाजीक नीतियाँ और ऊंची जाति के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले समसामयिक हिन्दू भारत के विचार के खिलाफ बढ़ते राजनीतिक भावना को दर्शाते हैं। भाजपा और आरएसएस के भगवे के खिलाफ सभी संभव रंग (लाल, हरे और नीले रंग) संयुक्त रूप से केंद्र में सत्ताधारी पार्टी को एक सीधे चुनौती दे रहे हैं। लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष आदर्शों पर जोर देने के लिए विचारधारा में एकजुटता जरुरी है। यदि विश्वविद्यालयोंके परिसर की छात्र  राजनीति एक राष्ट्र के युवाओं और उनके वोटिंग पैटर्न के मूड का संकेत समझाना है, तो भारत की अगली राजनीति की तलाश फासिस्ट धर्मवाद और संघवाद के खिलाफ होगी। विश्वविद्यालयोमे एबीवीपी के हार का संकेत यही निकलता है?

बापू राऊत

९२२४३४३४६४ 

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