Monday, November 16, 2020

भाजपा की जातीय राजनीति और धार्मिक तुष्टीकरण की सफलता

 भाजपा जाती की राजनीति नही करता, यह मिथ बिहार चुनाओ मे धाराशाही हुवा। यही नही, भारतीय जनता पार्टी आज भारत की सबसे बडी जातिवादी पार्टी बन गई है। धार्मिक के तुष्टीकरण के साथ साथ जातीवादी समीकरण ने उसे जितनेवाली पार्टी बना दिया है। केवल बिहार विधानसभा के चुनाव ही नहीं, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में हुए उपचुनाओ में भी भाजपा का यही स्ट्राइक रेट और नीति रही है।


नितीश कुमार की कुर्मी जाती वोटबँक, वही भाजपा की राजपूत, ब्राह्मण, ठाकुर और भूमिहार कोअर वोटबँक रही है। राष्ट्रीय जनता दल का सपोर्ट ग्रुप यादव, ओवेसी के एमआयएम पार्टी का मुस्लिम। फिलहाल ओवेसी की पार्टी सीमांचल, महाराष्ट्र और तेलंगना तक सीमित है। काँग्रेस की वोटबँक अब ना मुस्लिम है, ना ब्राह्मण, राजपूत और ना मागास वर्ग रहा है। काँग्रेस की यह हालत इसीलिए हुई है क्योंकि वह एकसाथ हिंदुत्व और सेक्युलर के तराजू पर खड़ी रहना चाहती है। बाबरी मस्जिद का दरवाजा खोलना और उसका गिरना यह हिंदू को खुश करना था वही शहाबानों केस में मुस्लिमो का तुष्टीकरण करना कॉंग्रेस पर भारी पड़ा। लेकिन इसका सीधा फायदा भाजपा और संघ ने उठाया। काँग्रेस के नेताओने कभी भी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का विरोध नहीं किया। संघ के प्रभाव वाले साधुसंत के चरणोपर गिरने में काँग्रेस नेता कभी पिछे नहीं रहे। संघ समर्थक एनजीओ को कॉंग्रेस का समर्थन हमेशा रहा है।

बाबासाहेब आंबेडकर के बाद मा. कांशीराम ने भारत के राजनीति में बदलाव लाने काम किया। बामसेफ के संसाधनो द्वारा पिछड़े और अन्य पिछड़े के राजनीति को कामयाब किया। लिहाजा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार, दिल्ली, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में सफलता प्राप्त हुई। लेकिन उनके पश्चात बसपा की राजनीति घसरती गई। सोशल इंजीनियरिंग सत्ता की लालसा में किया गया ढोंग था। इसका सीधा फायदा भाजपा ने उठाया। बसपा के पिछड़े और अन्य पिछड़े  वोटबँक को सेंध लगा दिया। हर जाती का सेल बनाकर उसे भाजपा के साथ जोड़ दिया। यह भाजपा की नई एंव पूरक वोटबँक है। जो उनके कोअर वोटबँक से मिलकर विजयी फार्मूला बनाती है। दूसरी ओर पिछड़ो एंव अन्य पिछड़ो में तत्वहीन नए नेता और पार्टीयोंका निर्माण हो रहा, जिससे पिछड़ो की वोटबँक पूर्णतया बिखर गई। जनता के लिए सत्ता एंव सरकार बनाना इनका मकसद नहीं, बल्कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के लिए केवल सत्ता में बने रहना अजेंडा होता है। इन नेताओ एंव पार्टियोंके साथ सीटो एंव पदो का तालमेल कर भाजपा चुनाओ में बाजी मार रहा है।

धार्मिक तुष्टिकरन कर हिंदूओंकों को भय एंव कंफ्यूज में रखना भाजपा और संघ का सुरू से ही अजेंडा रहा है। हिंदू–मुस्लिम, लव जिहाद, पाकिस्तान, गोरक्षा यह भाजपा के हमेशा के लिए चर्चित एंव स्थाई मुद्दे बन गए। चुनाओ में भाजपा को इससे खासा फायदा होता है। बेरोजगारी, शिक्षा, हेल्थ जैसे मुद्दे धर्म और जाती के सामने हार जाते है। उदाहरण के तौर पर बिहार विधानसभा चुनाओ को देखा जा सकता है।

चार्ट-1: बिहार विधानसभा 2020 में एनडीए का वर्गनिहाय प्रतिशत (%) वोट शेयर

 

अनु.जाती

अनु.जमाती

ओबीसी/ईबीसी

यादव

मुस्लिम

सवर्ण

भाजपा गठबंधन

40

50

50

10

5

60

सोर्स: politicalbaba.com

बिहार के पिछडी जातियोंमे मुख्यत: दलित, आदिवासी, कोयरी और निषाद जातीया आती है। अन्य पिछड़ोमे कुर्मी, कुशवाहा, यादव मुख्य जातीया है। इनका सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास नीचे पायदान पर है। तक्ता-1 के अनुसार यह जातीया भाजपा की बड़ी वोटबैंक बनकर उभरकर आई है। विधानसभा 2020 में भाजपा को अनु.जाती का 40% तथा अनु. जमातीयोंका 50% वोट शेयर मिला है। वही ओबीसी /इबिसी जातियोंका सहभाग 50% रहा है। यह पिछड़ोंके पार्टियों में हुए बिखराव के कारण मतदाता भाजपा के झोली में अपना वोट डालकर बाहर निकलता हुए दर्शाता है। वही सवर्ण जातीया भाजपा की कोअर वोटबँक रही है। भाजपा के लिए उनका वोट शेयर 60% है।

 

चार्ट- 2: जाती एंव वर्गनिहाय मतदान प्रतिशत (%) में

 

महागठबंधन

एनडीए

एलजेपी

तीसरा मोर्चा

इतर

ब्राह्मण

15

52

7

1

25

भूमिहार

19

51

3

<1

26

राजपूत

9

55

11

4

20

इतर उचि जाती

16

59

<1

<1

24

यादव

83

5

2

3

6

कुर्मी

11

81

3

<1

5

कोयरी

16

51

6

8

18

इतर ओबीसी /इबिसी

18

58

4

3

18

रविदास

34

27

9

13

18

दुसाध/पासवान

22

17

32

3

27

मुशहार

24

65

1

1

8

इतर  दलित

24

30

4

7

34

मुस्लिम

76

5

2

11

6

सोर्स : लोकनीति/सीएसडीएस सर्वे एंव इंडियन एक्सप्रेस 12 नवम्बर 2020  

चार्ट 2 के अनुसार महागठबंधन, एनडीए एंव तीसरे मोर्चे (बसपा+पप्पू यादव+उपेंद्र कुशवाहा+ओवेसी) को मिले जातीय वोट का  प्रबंधन समज सकते है। यादव और मुस्लिम समूह ने अपने वोट महागठबंधन के झोली में डाले। वही उचि जाती, कुर्मी, कोयरी एंव आर्थिक पिछडोने एनडीए को वोट किए। रविदास समूह को छोड़ अधिकतर दलित समूह (मूशहार 65%, दुसाध /पासवान 17 % एंव 32%, इतर दलित 30%) ने एनडीए को वोट किया। तीसरे गठबंधन (पप्पू यादव + बसपा+ उपेंद्र कुशवाह + ओवेसी ) को केवल रविदास 13%, मुस्लिम 11% एंव कोयरी 8% वोट मिले। बाकी दलीत समूहोने इस गठबंधन को ठुकरा दिया है। बिखरे हुए नेता एंव पार्टियोंने इस खतरे को समजना चाहिए। सीमांचल में मुस्लिम समूह ने महागठबंधन के बजाय ओवेसी के पक्ष में वोट दिये।  

भाजपा हर समुदाय में अपना सपोर्ट बेस बनाने में सफल हुवा है । यह प्रोग्रेसिव्ह पार्टीयोंके लिए नकारात्मक एकता का जवाब है। स्वार्थी नेताओ के लिए यह अनुकूल मौके हो सकते है, लेकिन समुदायो के लिए यह विनाश का कारण बन सकता है।  हाल ही में पत्रकार मीना कोतवाल ने बिहार चुनाव के समय  कुछ पिछड़ी जातियोंके बारे में रिपोर्टिंग की, जिससे भारतीय समाजव्यवस्था की असलियत दुनिया के सामने आई है। लेकिन इस भारतीय समाज व्यवस्था के आईने कौन समझेगा?

लेखक: बापू राऊत

bapumraut@gmailcom

9224343464 

Saturday, October 10, 2020

आंबेडकराइट नहीं अवसरवादी राजनेता थे रामविलास पासवान

भारत में ऐसा कोई नागरिक नहीं होगा जो रामविलास पासवानजी को न जानता हो। उन्होने अपने जीवन में सामाजिक और राजनीति की लंबी पारी खेली है। भारत में सबसे ज्यादा वोट के अंतराल से जीतनेवाले सांसद (1977) का रेकार्ड उनके नाम पर है। इतनाही नहीं छ: प्रधानमंत्री के साथ काम करने का अनूठा रेकार्ड भी उन्ही के नाम पर है। 1970-90 के दशक में जिन नेताओने राजनीति के मुख्य प्रवाह में सामाजिक न्याय का एजंडा लाने का काम किया, उन नेताओमे रामविलास पासवान का नाम शीर्षपर है । भूतपूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रतापसिंग के मंत्रिमंडलका चर्चित चेहरा थे रामविलास पासवान जी। मंडल आयोग और अनु जाती/जनजाति अत्याचार प्रतिबंध का कानून पर योगदान के लिए उन्हे सामाजिक न्याय का मसीहा भी कहा जाने लगा था।    

Saturday, October 3, 2020

हाथरस की घटना : आधुनिक इतिहास का काला पन्ना

भारतीय इतिहास का सांस्कृतिक चेहरा कभी भी सफ़ेद नहीं था। वह काला ही था। उसके उफान की लहरे कम अधिक होते रहती है। उत्तर प्रदेश के हाथरस में उसकी एक नई लहर दिखाई दी। जिस राज्य में रामराज के नामसे बेगुनाह लोगोंके अधिकारोपर चोट आती हो, उनके धार्मिक अधिकार नकारे जा रहे हो, वह राज्य किसी लोकतंत्र देश का हिस्सा नहीं हो सकता। उसे फॉसीवादी स्टेट ही कहा जाएगा।स्वतंत्र भारत में जहा लोकतंत्र और कानून का राज है, इतनाही नहीं दलितोंकों शोषण के खिलाफ संवैधानिक अधिकार मिले है। इस परिस्थिति में अगर राज्य और प्रशासन के द्वारा दलितोंके अधिकारो पर चोट की जाती हो, तब वह गंभीर बात हो जाती है। उसका मुक़ाबला गंभीरता और एकजुटता से करना बेहद जरूरी हो जाता है।

Wednesday, September 23, 2020

शेतकर्‍यांचे आंदोलन: कालचे व आजचे

 

खरे तर भारतासारख्या कृषिप्रधान देशात शेतकर्‍यांचे शोषण होणे ही फार लाजिरवाणी गोष्ट आहे. सत्ता कोणाचीही म्हणजे स्वतंत्र भारतातील असो वा पारतंत्र्यातील ब्रिटिशांची, शेतकरी हा कायमचा नागविला गेला आहे. शेतकर्‍यांना स्वत:चा आवाजच नसतो. त्यांना नेता नसतो. त्यांचा वापर करून नेता झालेले लोक सत्तेमध्ये गेल्यानंतर शेतकर्‍यांचे शत्रू व उद्योगपतीचे मित्र बनत असतात. हे तात्कालिक नेते शेतकर्‍यासाठी नीती बनविताना शेतकर्‍यांच्या अधिकच्या फायद्याचा विचार न करता सावकार, कॉर्पोरेट कंपन्या व मोठे उद्योगपती यांचेच अधिक फायदे बघत असतात. त्यांच्या अशा कारनाम्यामुळे हे तथाकथित शेतकरी नेते नंतर मालमाल झालेले बघायला मिळतात.

Saturday, September 19, 2020

हे आमचे गुरु नव्हेत !

 


हे आमचे गुरु नव्हेत ! अशा प्रकारची लेखमाला टिळकांनी केसरीतून लिहली होती. हे लेख केसरीतून १७ ऑक्टोबर १९०५, २४ ऑक्टोबर १९०५ आणि ७ नोव्हेंबर १९०५ रोजी प्रसिध्द झाले होते. हे लेख स्वदेशी चळवळीत पडणारे विद्यार्थी व त्यांच्या गुरूमधील परस्पर सबंध दाखविण्यासाठी लिहले होते.  हे आमचे गुरु नव्हेत, हे वाक्य त्यांनी डेक्कन कॉलेजचे ब्रिटिश प्रिन्सिपाल सेल्बी आणि शिक्षणतज्ञ मेकॅले यांना उद्देशून केले. हे गुरु यासाठी नव्हेत कारण, ते आपल्या विद्यार्थ्यास स्वदेशी व राष्ट्रीय चळवळीत सहभागी न होण्याचे व विद्याभ्यासाकडे लक्ष देण्याचे मार्गदर्शन करीत होते. राष्ट्रवाद हा धर्म व  जातीच्या गर्वाशी सबंधित नसून त्या त्या भूभागात राहत असलेल्या लोकांच्या एकात्मकतेच्या सहजीवनाशी निगडीत असल्याचे प्रतिपादन करीत होते. दुसरीकडे टिळक गुरूंच्या सन्मानाची भाषा करताना, आमच्या धर्मशास्त्रात पित्यापेक्षा गुरुस अधिक मान द्यावा असे म्हटल्याचे  सांगतात. ज्ञानासारखी जगात दुसरी कोणतीही पवित्र, वस्तु नाही; पण स्वार्थासाठी ज्ञानाच्या पुंजीचा विक्रम करण्यास जेव्हा एखादा मनुष्य तयार होतो तेव्हा त्याच्या ज्ञानास शुध्द व पवित्र ज्ञानाची किंमत देणे म्हणजे हिमालयातून गोमुखाच्या द्वारे पडणार्‍या गंगोदकांची  गटारातील पाण्याशी तुलना करणे होय ! असेही म्हणताना दिसतात.

Saturday, September 12, 2020

कर्मयोगी स्वामी अग्निवेश नहीं रहे !

स्वामी अग्निवेश जी 
अब, कभी हजारो की भगवाधारी भिड़ में मुझे कोई स्वामी अग्निवेश जैसा कोई स्वामी दिखाई देगा या नहीं ! पता नहीं ? लेकिन मुझे स्वामी अग्निवेशजी का न रहना हमेशा खलता रहेगा। स्वामी अग्निवेश जी का सामाजिक कार्य और उनके न डरते हुए बेबाक तरीकेसे बोलने के आजादी ने मुझे उनका प्रशंसक बना दिया था।वे एक ऐसे संस्था से आते है, जहा चातुर्वर्ण्य और वेदो के मान्यता पर अधिक ज़ोर दिया गया था। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा वेदपरंपरा और वैदिक धर्म को उच्चस्तर में रखनेका प्रयास किया। उन्होने पुराणोका विरोध कर हिंदुस्तान की जगह आर्यावर्त कहनेपर ज़ोर दिया था, इसी कारण पुणा के सनातनी लोगोने उनकी प्रतिकात्म्क तरीकेसे गधे पर बारात निकाली थी। महाराष्ट्र में विष्णुबुवा ब्रम्हचारी और न्या॰ महादेव रानड़े जैसे लोग आर्य समाज के शिष्योमेसे थे।