Sunday, February 16, 2020

राजनीति का नया अखाड़ा: बजरंगबली बनाम जय श्रीराम


राजनीति एक बड़ा अजीब खेल है। राजनीति में कब क्या होगा, इसका किसे कोई पता नहीं होता। कब  करीबी दोस्त विरोधी बन जाएगा और कब कट्टर विरोधी दोस्त बनेगा इसपर कुछ भरोसा नहीं किया जा सकता। देश में ऐसे कई उदाहरण हैं। राजनीति में कब करीबी रिश्तेदार दुश्मन बनकर चुनावी मैदान में प्रतिस्पर्धी बनेगा इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है। सत्ता की लालसा ने मानवीय नैतिकता को कमज़ोर कर दिया है। सत्ता, स्वार्थ और धन राजनेताओं के जीवन का हिस्सा बन गए हैं। उन्होने सिद्धांत, मानवता, भाईचारे और विविधता में एकता को अवसरवाद, घृणा, सामाजिक विभाजन और हत्या जैसे अवसरों में बदल दिया।


विभिन्न धर्मों में अपनी अपनी देवताए और उनकी उपासना पद्धतियाँ हैं। भारत की हर व्यक्ति अपने  आध्यात्मिक उपासना की जीवन प्रक्रिया अपने धर्म के नियमोके साथ व्यतीत करता है। इसमें कुछ आडम्बर न होकर दया का भाव होता है। लेकिन जिन्होंने केवल धर्म और भगवान को अपने जीवन का वित्तीय स्रोत बनाया, उन्होंनेही समाज में असहिष्णुता पैदा कर व्यक्ति के स्वभाव को कट्टरता और नफरत के बीजो से धर्मांध बना दिया है। भारतीय संतों ने जनता को भाईचारे, विनय और नम्रता का पाठ सिखाया, लेकिन आज के भोंदू बाबाओने धर्म को अपने लिए धन और जनता के लिए अंधविश्वास का श्रोत बना दिया। इन भोंदू बाबाओं द्वारा महिलाओं का शोषण, बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर अपराधों के बावजूद, समाज में ऐसे नकली साधू बाबाओ का बहुत कम विरोध होता है। बल्कि उनके भक्तो की संख्या बढती जा रही है।
राजनीतिक लोग और शोषक समाज के चतुर लोग इन भोंदू बाबाओका अपने स्वार्थ के लिए फायदा  उठाते दिखाई देते है। राजनेताओने अपनी राजनीति चमकाने के लिए ईश्वर, धर्म और छद्म राष्ट्रवाद का सहारा लिया है। राष्ट्रवाद कभी भी एकतरफा नहीं होता, वह किसी भी धर्म और जाति से सबंधित नहीं होता। राष्ट्र में रहनेवाले सभी लोग राष्ट्रवादी हैं। हर नागरिक अपने राष्ट्र की रक्षा करने और उसे दुनिया में महान बनाने में अपनी भूमिका निभाता है। राष्ट्रवाद वह है जो विविधता को संरक्षित कर भाईचारे की रक्षा करता है। राष्ट्रवाद पर किसी का कोई स्वामित्व नहीं होता, लेकिन वह देश के हर नागरिक का अभिन्न अंग है। जब कोई व्यक्ति और समूह अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ बोलता है, तब उसके शब्द अपने राष्ट्र के खिलाफ नहीं होते, बल्कि राष्ट्र की दमनकारी व्यवस्था और उसका पोषण करने वाले शोषकों के खिलाफ होते है। वे अपने अधिकार और समानता के अवसर चाहते हैं। इसलिए, वह अपनी मांगों को लोगों के ध्यान में लाने के लिए मीडिया के विभिन्न अंगो का उपयोग करता है। लेकिन कुछ लोगो ने राष्ट्रवाद के व्याख्या को पलट दिया और उसपर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। वास्तव में, उनका राष्ट्रवाद असली राष्ट्रवाद नही छद्म राष्ट्रवाद है और ऐसे छद्म राष्ट्रवादी  राष्ट्रविरोधी होते हैं। क्योंकि ये लोग राष्ट्र को अस्थिर करते हैं और राष्ट्र के विविधता में एकता के सूत्र को नष्ट कर देते हैं। छद्म राष्ट्रवादी भारतीय नागरिको में भेदभाव, धर्म और पंथ के नामपर  विषमता और द्वेष के बीज डालते हैं। ऐसे मुट्ठीभर लोगोंके फायदे के लिए अधिकांश जनता को अपने जीवन का बलिदान क्यों देना चाहिए? लोगों को चाहिए की वे इस बारे में सोचे।
हाल के दिल्ली विधानसभा चुनावों के नतिजोने कई सवालों के जवाब देने शुरू कर दिए हैं। इस चुनावने, किसी भी व्यक्ति की बुनियादी आवश्यकताएं जैसे भोजन, शिक्षा, स्वच्छ हवा, रोजगार, कपड़े और आवास की जरूरत बाते लोगोंको समझा दि हैं। दिल्ली विधानसभा 2020 के लिए आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस पार्टी  मुख्य दल थे। इनमें से हर पार्टीने दिल्ली पर शासन किया है। लेकिन पहली बार, वहाँ आप पार्टी अपने काम के उपलब्धियोंपर वोट माँग रही थी। लोगो से अपील कर रही थी अगर हमारा काम पसंद नहीं है, तब हमें भुलकर भी वोट मत देना। इसके विपरीत प्रतिद्वंद्वी बीजेपी ने मुसलमानों, हिंदुओं, पाकिस्तान, शाहीनबाग, गोली मारो...वे बलात्कार करेंगे ...  जैसे मुद्दोंको प्रचार में लाया। ये मुद्दे वास्तव में आचारसंहिता के विपरीत थे। अगर आज टी.एन. शेषन जैसा चुनाव आयुक्त होता, तब ऐसे पक्ष के हर उम्मीदवार के सदस्यता पर तलवार लटकती रहती। राजनीतिक दलों को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि अगर वे धर्म के आधार पर चुनाव लड़ेंगे तो देश की एकता दाव पर लगकर देश में असमंजस की स्थिति पैदा होगी।
आम आदमी पार्टी के चुनावी रणनीति का एक और नया पैटर्न दिल्ली विधानसभा चुनावों में देखा गया। वह था, बजरंगबली (हनुमान) का उदय। आप नेता सौरव भारद्वाज द्वारा दिए गए टीवी साक्षात्कार मे कहा, भाजपा कार्यकर्ता द्वारा वोट के समय चुनावी बूथ से कुछ दुरिपर पर "जय श्रीराम" के नारे लगवाकर भाजपा को वोट देने की अपील कर रहे थे। दिल्ली पुलीस भी उन्हे नही रोक रही थी  फिर आप के कार्यकर्ताओं ने भी जय बजरंग बली के नारे लगाए। अचानक "जय श्रीराम" के नारे लगने बंद हो गए। भाजपा और संघ को उनके ही प्रतीकों द्वारा मारने का यह एक नया आविष्कार है। इसे अब "हार्ड हिंदुत्व" बनाम "सॉफ्ट हिंदुत्व" की परिभाषा में निर्देशित किया जाएगा। "सॉफ्ट हिंदुत्व" का कार्ड कांग्रेस पार्टी अपनी धर्मनिरपेक्ष छ्वि के कारण नहीं खेल सकती थी लेकीन आम आदमी पार्टी द्वारा वह खेला गया। केजरीवाल टीवी समाचार चैनल पर हनुमान चालीसा पढ़ते दिखाई दिए केजरीवाल ने खुद को "धर्मनिष्ठ हनुमान भक्त" दिखाकर  भाजपा और संघ को मुश्किल में डाल दिया है। बजरंगबली (हनुमान) के मंदिरों में जाकर उन्होने दिखा दिया की, मै भी धार्मिकता में संघ और भाजपा से कम नहीं हू। उन्होने तीसरी बार पार्टी के जीतको बजरंगबली की कृपा कहा, उन्होंने बाकी पार्टीयोंको सेवा करने का एक नया तरीका दिखा दिया है। अब केजरीवाल के इस सूत्र को बिहार और पश्चिम बंगाल में घुसपैठ करने में देर नहीं लगेगी। लालू प्रसाद यादव और ममता बनर्जी अपने राज्य में इस “बजरंग बली” के फॉर्मूले का इस्तेमाल कर भाजपा और संघ के धार्मिक हथियार उन्हीपर उलटा सकते हैं।
देश में, भाजपा ने मुसलमानों को पूरी तरह से अलग करके विरोधी पार्टीयोंका काम आसान कर दिया है। अबतक मुसलमान और दलितोंके डर से वे हिंदुत्व कार्ड को चुनावो मे इस्तेमाल नही कर सके। लेकीन मुसलमानो को पुरोगामी दलो को वोट देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। मुसलमान अब ओवैसी जैसे अल्पसंख्यांक पार्टीयोंको अपना वोट देकर वोटों का ध्रुवीकरण नही करेगी। मुसलमानों की इस मानसिक स्थिति का फायदा उठाते हुए, पुरोगामी पार्टियां “नरम हिंदुत्व” की ओर मुड़कर भाजपा के "हिंदू वोटबैंक" को सीधी सेंद लगा सकते है। इसके लिए दिल्ली में केजरीवाल के "बजरंगबली बनाम जय श्रीराम" मॉडल के लाभदायक होने की अधिक संभावना है। लेकिन आज यह स्पष्ट नहीं है कि इस प्रतिस्पर्धी भक्ति में "बजरंगबली" मुसलमानों सहित अन्य अल्पसंख्यकों नुकसानदेह होगा या नही ।
केजरीवाल ने दिखाया है कि, उन्हें अपने धर्म के प्रति प्यार साबित करने के लिए दूसरे धर्मों से नफरत करने की जरूरत नहीं है। "आप" को जानेवाले वोट को भाजपाने  राजद्रोहीयोंका का वोट कहा, लेकिन दिल्ली के लोगोंने भाजपा और संघ के इस विचार को खारिज कर दिया। इसलिए, अब भाजपा को सीएए जैसे कानून पर अपने अंतरंग की आत्मा को जागृत कर देश को बाटने की राजनीति को छोडकर विकास,मकान और रोजगार के मॉडेल पर चलना होंगा। अन्यथा प्रगतिशील दल के  'बजरंगबली उर्फ हनुमान' भाजपा के 'जय श्रीराम' पर हावी होने की अधिक संभावना है। अब, यह देखना दिलचस्प होगा कि, भाजपा इस संकट से कैसे बाहर निकलेगी तथा विरोधी पार्टीया एकता का बांध कैसे रचेगी ?

लेखक: बापू राऊत

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