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Saturday, December 30, 2017

भीमा कोरेगाव: अत्याचार एंव अपमान पर विजय का प्रतिक



युध्द के मैदान में आदिलशहा, निजामशहा और औरंगजेब कों शिवाजी महाराज ने परस्त देकर बड़ी मेहनत से अपना साम्राज्य खड़ा किया था उनके साम्राज्य में हर धर्म और जाती के लोगो कों धार्मिक स्वातंत्र्यता  थी समानता और बंधुता का वो उच्चतम दौर था लेकिन जब उनके वंशजो का राजपाट कूटनीतियो द्वारा पेशवाओने हड़प लिया, तब  पेशवाओने “सामाजिक संतुलनका” बली दे दिया बैकवर्ड समाजपर सामाजिक
तथा धार्मिक बंधन लगाकर अत्याचार किया जाने लगा समझो, मानवता की साख पूर्णत: गिर चुकी थी अत्यंज वर्ग के स्पर्श कों पाप समझा गया उनकी छाया तक किसी ब्राम्हणपर नहीं पडनी चाहिए इसीलिए उनपर मुख्य रास्ता छोडकर केवल दुपहर कों घर से बाहर आने की इजाजद दी गई थी अत्याचारों ने परिसीमा की हद पार कर दी थीब्राम्हण पंडोने ब्रिटिशोंको हमारे धार्मिक एंव सामाजिक कार्यकलाप में किसी भी प्रकारका हस्तक्षेप या बदलाव न करनेका इशारा दिया था जैसे की अत्याचार करना उनका अधिकार बन गया होलेकिन इस सामजिक अन्याय और अपमान का हिसाब किताब एक दिन लेना ही था सन 1 जानेवारी 1818 कों महार सैनिकोंको वह संधि मिल गई उस दिन इंग्रज और बाजीराव पेशवा इनके बिच में भिमा कोरेगाव में युध्द होने जा रहा था इस जंग में अपने अत्याचारो और अपमान का बदला लेने के लिए महारोने पेशवा के खिलाफ लढने का फैसला लिया भीमा कोरेगाव के इस लढाई में 500 महार सामिल हुए थे उन्होंने पेशवाओके 28,000 सैनिकोंको हराकर पेशवा के राज्य कों नेस्तनाबूत कर दिया इस युध्द में 22 महार सैनिक शहीद हो गए थे इस सैनिकोंकी स्मृती और सन्मान में ब्रिटीशोने भीमा कोरेगाव में एक स्तंभ बनाया जिसे भीमा कोरेगाव का शौर्यस्तंभ कहा जाता है डाक्टर बाबासाहब आंबेडकर इस योध्दाओंको सलामी देने के लिए हरसाल 1 जनवरी कों भीमाकोरेगाव जाकर शौर्यस्तंभ कों सलाम करते थे आज के दिन लाखो लोग इन योध्दोंओको सलामी देने के लिए भीमा कोरेगाव में इकठ्ठा होते है इस स्तंभ कों “अत्याचार और अपमान पर विजय के प्रतिक” के रूप में देखा जाना चाहिए

लेखक: बापू राऊत 

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