Monday, November 21, 2016

बेचैन भारत में जनता की आवाज कहा है?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने चलन बंदी के बारेमे कहा की, ....ऐसे ही रहा तो देश में दंगा सादृश्य परिस्थितियाँ निर्माण होगी. वैसेही आज भारत एक अफरातफरी के माहोल में जी रहा है. कही धर्म के नामसे, कही देशी जिहाद, कही धार्मिक आतंक  तथा कही दूसरे धर्म का होने के कारण एक दूसरे को मार रहा है. गाय के नामपर कुछ नकली राष्ट्रवादी गुंडे दलितोंकी बेरहमीसे पिटाई कर रहे है. उनपर कार्यवाही तक नहीं होती. गरीब और अमीर का फासला बढकर गरीब गरीब होते जा रहे है और अमीर दुनिया के अमिरोके लिस्ट में पहुच रहे है. भ्रष्टाचार ने अपनी सीमा पार कर ली है. देश के गद्दारों का स्विस बैंक और पनामा में काला पैसा जमा है. इन देशद्रोही कालाबाजारखोर बदमाषोकी की यहाँ वाही वाही हो रही है. उन्हें सन्मान मिल रहा है. वे मस्तवाल बुल (बैल) बनकर देश का पैसा विदेशोमे भेज रहे है. उनके ऊपर सरकार कोई भी कार्यवाही नहीं कर रही. लेकिन इसमे जनता की आवाज भी कहा दिख रही है? जनता गूंगी और मुकी बनकर बेचैनी से देख रही है. इस बेचैनी को विस्फोट के रूप में व्यक्त करना भूल गई है. 

Tuesday, November 1, 2016

“चार्वाक दर्शन” का वैज्ञानिक रूप

भारत में अनेकानेक दार्शनिक चिंतनोकी परंपरा रही है। उनमे मुख्यत: वैदिक, चार्वाक, जैन और बौद्ध दर्शन मुख्य है। वस्तुत: भारतीय दर्शन वैदिक (ब्राम्हण) और अवैदिक (श्रमण) वर्गों में बटा है। कभी कभी इसका वर्गीकरण आस्तिक और नास्तिक के तौर किया जाता है। ‘नास्तिको वेद निन्दक’ याने वेदो को नकारने वाले को नास्तिक कहा गया है। लेकिन वैदिकों के इस व्याख्या पर आज के विद्वानोमे आक्षेप और रोष है। उनके अनुसार आस्तिक का अर्थ है, अस्तित्व तथा प्रत्यक्ष रूप में  दिखाई देनेवाले प्रारूप को मानना और नास्तिक का अर्थ है, प्रत्यक्ष प्रारूप को नकार देकर अस्तित्वहीन कल्पना में खोजते रहना। इस अर्थ से वेद अर्थहीन कल्पनाओंकी खाण है। चार्वाकोने इन वेदों के अर्थहीन बातो का बहुत विरोध किया है। क्योकि वेदों/स्मुर्ती/पुराणों ने मिलकर भारत के सत्य इतिहास को दफना दिया है।