हाल ही
में सर्वोच्च न्यायालय ने चलन बंदी के बारेमे कहा की, ....ऐसे ही रहा तो देश में दंगा
सादृश्य परिस्थितियाँ निर्माण होगी. वैसेही आज भारत एक अफरातफरी के माहोल में जी
रहा है. कही धर्म के नामसे, कही देशी जिहाद, कही धार्मिक आतंक तथा कही दूसरे धर्म का होने के कारण एक दूसरे को
मार रहा है. गाय के नामपर कुछ नकली राष्ट्रवादी गुंडे दलितोंकी बेरहमीसे पिटाई कर रहे
है. उनपर कार्यवाही तक नहीं होती. गरीब और अमीर का फासला बढकर गरीब गरीब होते जा
रहे है और अमीर दुनिया के अमिरोके लिस्ट में पहुच रहे है. भ्रष्टाचार ने अपनी सीमा
पार कर ली है. देश के गद्दारों का स्विस बैंक और पनामा में काला पैसा जमा है. इन
देशद्रोही कालाबाजारखोर बदमाषोकी की यहाँ वाही वाही हो रही है. उन्हें सन्मान मिल
रहा है. वे मस्तवाल बुल (बैल) बनकर देश का पैसा विदेशोमे भेज रहे है. उनके ऊपर सरकार कोई भी कार्यवाही नहीं कर रही. लेकिन इसमे जनता की आवाज भी कहा दिख रही
है? जनता गूंगी और मुकी बनकर बेचैनी से देख रही है. इस बेचैनी को विस्फोट के रूप
में व्यक्त करना भूल गई है.
अक्सर
यहा बात नक्षलवाद की होती है. क्या है ये नक्षलवाद? नक्षलबारी से निकले इस शब्द के
आज कोई मायने नहीं है. कल के जमीनदारो और खेती मजदूरों की लढाई आज कहा भी दिखाई
नहीं देती. फिर भी “नक्षलवाद” नाम का शब्द जिंदा रखा गया है. वास्तव में आज जल,
जंगल, जमीन और खनिजों पर कब्जे की लढाई लढ़ी जा रही है. भारत के उद्योगपती और
राजनेता इन संसाधनों पर कब्ज़ा करना चाहता है. वही दूसरी ओर आदिवासी और किसान उसे
बचाने के लिए लढ रहा. दबंग और लाचारो में द्वंद चल रहा है. दुनिया में दबंगों ने
ही नए नए तरीकोसे लाचारो को हराया है. आदिवासीको जंगलोसे खदेडने के लिए पोलिस और गुंडों
का सहारा लिया जा रहा. अपने जीने के संसाधन को बचाए रखने के लिए लढनेवाले आदिवासी
और किसान को नक्षलवादी कहकर गोलियोसे मारा जा रहा है. अपने ही गरीब नागरिको पर
गोलिया चलाई जा रही है. जय हो इस तथाकथित लोकतंत्र का. यह कौनसी आजादी है? कौन ले
रहा है स्वतंत्रता की साँस? इसकी चर्चा दूर दूर तक दिखाई नहीं देती. लेकिन जो
हिम्मत दिखाकर चर्चा करना चाहता है, उनपर देशद्रोह और नक्षलवाद समर्थक का आरोप
लगाकर जेलो में डाला जा रहा है.
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करोडो की आबादी वाले इस देश के ज्यादातर लोक अर्धशिक्षित और गरीब है. वे
देहातोंमें बसे हुए है. वहा शिक्षा का स्तर काफी निचे है. अध्यापको की कमी है.
स्कुल इमारत और सुविधा नहीं के बराबर है. सरकारी स्कुलोसे केवल लेबर क्लास की
पैदावार हो रही है. शहरोमे प्राइव्हेट स्कुल की संख्या बढ़ रही है. ऐसे स्कुल पैसो
के प्यासे होते है. इससे ग्रामीण और शहरी विद्यार्थियोंके ज्ञान में बड़ा अंतर
निर्माण हो रहा है. एक ओर अमीर भारत तो दूसरी ओर गरीब भारत की समानांतर रेख खीची
गई है. जहा उनका कभी भी संगम नहीं होगा. स्कुलो, मेडिकल, इंजीनियरिंग और एमबीए
कॉलेजोमें चलायी जा रही लुट को रोकने की ताकद कोईभी नहीं दिखा रहा. सरकारी स्कूलों
और आश्रमशालाए विषमतावादी व्यवस्था के अड्डे बन गए है. शिक्षा धंदे के स्वरूप में
बेचीं जा रही है. फिर भी जनतासे बेचैनी की आवाज उठ नहीं रही.
देश में
ठेकेदारी याने ठगों की टोली पैदा हो गयी है. ऐसे टोली को सरकार बढ़ावा दे रही है.
ये ठेकेदार (ठग) राज्य सरकार, महानगरपालिका और नगरपालिका से लाखो तथा करोडो
रुपयोके ठेके लेते है. यह मुनाफाखोरी का नया गोरखधंदा है. ठेकेदार गरीब मजदुरोसे
कम पैसे देकर काम करवा लेते है. इन मजदूरो को ना सुरक्षा मिलती है ना छुट्टिया.
अगर कोई बीमार भी होता तो उसे बिना वेतन घर में बैठना पडता है. यह एक शोषणपध्दती
नया दौर बन गया है. शोषक (ठेकेदार) शोषितों (मजदूर और गरीबो) का खून चूस रहा है.
जागतिकीकरण
के दौर में मिडिया से सरकारी नियंत्रण हटने और नए मिडिया हाउस के आगमन से लगा था
की अब सच्ची बाते सुननेका और देखनेका दौर
आ गया है. लेकिन हुवा विपरीत. पत्रकार तथा टीव्हीके एंकर राजनीतिक पार्टिया तथा
उद्योगपतियोके दलाल बन गए है. इन पत्रकारों एंव टीव्ही एंकरो में नैतिकता नाम की
कोईभी चीज बची नहीं है. वे खुद को बेच रहे है. नकली न्यूज बनाकर प्रसारित की जाती
है. सत्य को दबा रहे है. इनके कारण देश में भ्रम और भय का निर्माण हो रहा है. ये
लोग जवाबदेही न बनकर उलटे देश के लिए खतरा बन रहे है. इसे कभी लोकतंत्र का चौथा
स्तंभ कहा जाता था. लेकिन वह नालायक निकला. अभी तो सारे मिडिया हाउस को
उद्योगपतियों और राजनेताने खरीद लिया है. पता नहीं अब देश का क्या होनेवाला है?
देशपर
तालिबानी तंत्र का खतरा मंडरा रहा है. क्या है तालिबानी तंत्र? वह होता है, मेरी
सुनो और मेरी मानो. अगर नहीं सुनोगे और मानोगे तो मारे जाओगे. आज स्वदेशी और
राष्ट्रवादी होने का झोला पहननेवालो तालिबानियों की संख्या तेजीसे बढ़ रही है. वे
फरमान निकाल रहे, कोण क्या खायेगा? कौन क्या पिएगा? कौन क्या पहनेगा? और कौन क्या पढ़ेगा? हिटलर और मुसोलिनी के प्रशंसक
और मनुवाद/वर्णव्यवस्था के कट्टर समर्थक अपने वर्ण के श्रेष्ठता को अबाधित रखने के
लिए बहुजन समाज को धर्म, आस्था और हिंदुत्व जैसी अफु (गांजा) की गोली देकर नशे में
रख रहे है. और साथमे मुस्लिम विरोध का च्यवनप्राश भी खिला रहे है. असलियत में ये
राष्ट्रवादी नही देशद्रोही है. स्वदेशी का नारा देते है, मगर अपने बच्चो को विदेश
भेजते है. खुद विदेशी मोबाइल और गाडिया खरीदते है. लेकिन इस खोखले स्वदेशी नारेसे
जनता में जोश भर देते है. ऐसे जुमलेबाज स्वदेशी और राष्ट्रवादियोसे देश को खतरा
है. देश को और एक विभाजन की राहपर लेके जा रहे है.
लेकिन
बेचैनी और बकवास बाते सुनने की भी एक हद होती है. अगर हम इस देश के सच्चे नागरिक
है, तब देश को इन नकली स्वदेशी और राष्ट्रवादियोसे बचाने की जवाबदेही भी कंधोपर
लेनी होगी. भारत की मानवता, समभाव, धर्मनिरपेक्षता, इतिहास और साख की निरंतरता को
बचाए रखने के लिए आवाज उठाना होगा. विभाजनवादी ताकतों को निरस्त करना होगा. यही
सच्ची देशभक्ति होगी.
लेखक: बापू
राऊत
Mail:bapumraut@gmail.com
tu aisa q hai?
ReplyDeleteaisa q hai?