Saturday, September 23, 2023

सनातन (वैदिक) विरोधी हिंदू धर्म हा महायान बुद्धिज़्मचे परिवर्तित रूप आहे का?

 


तामिळनाडूचे मंत्री उदयनिधी स्टॅलिन यांनी सनातन धर्मावर केलेली टिप्पणी प्रसारमाध्यमांमध्ये चर्चेचा विषय बनली आहे. एवढेच नव्हे तर या टिप्पणीवर सनातन धर्मातील काही बिघडलेल्या साधुनी उदयनिधी स्टॅलिनला मारण्यासाठी मोठे बक्षीस जाहीर केले. सामान्य हिंदू मात्र सनातन धर्मावरील या चर्चेने फार गोंधळलेला दिसतोय, कारण त्याला वाटते की, मी तर हिंदू आहे, मग हा सनातन व वैदिक धर्म आहे तरी काय?.  किंबहुना त्याला वाटायला लागल कि, मी नेमका कोणत्या धर्माचा? सनातन कि हिंदू. म्हणूनच सनातन आणि हिंदू धर्म यांच्यातील खरा संबंध तपासणे आणि तो समजून घेणे महत्त्वाचे ठरते. उदयनिधी स्टॅलिन यांनी सनातन धर्माला सामाजिक विषमता, भेदभाव, उचनीच, जातिवाद आणि स्त्रियांचे अवमूल्यन यांच्याशी जोडून डेंग्यू आणि मलेरियासारखे रोग जसे दूर करतोय, त्याच प्रमाणे सनातन धर्मातील असमानतावादी तत्त्वे नष्ट करण्याचे त्यांनी आवाहन केले होते. पण आरएसएस आणि त्यांच्याशी संलग्न संघटनांनी उदयनिधी यांच्या वक्तव्याला नरसंहाराची सुपारी म्हणून प्रसारित केलंय.

Friday, September 22, 2023

क्या सनातन (वैदिक) विरोधी हिंदू धर्म महायान का संस्करित रूप है?

 

तामिलनाडू के मंत्री एंव मुख्यमंत्री के बेटे उदयानिधि स्टॅलिन की सनातन धर्म पर की गई  टिपण्णी मीडिया में सुर्खिया का विषय बन गई है। इतनाही नहीं, उनकी टिपण्णीपर सनातन धर्म के कुछ बिगड़े साधुओने बड़े हंगामे के साथ उन्हें मारनेपर बक्षिस देने की घोषणा कर दी। सनातन धर्म की चर्चाओंसे सामान्य हिंदू अधिक संभ्रात में है, क्योकि उसे लगता है की, मै तो हिंदू हु, फिर ये सनातन धर्म क्या है?  उनके लिए यह एक भ्रामकता विषय बना है. वास्तव में उसे लगता है, मेरा असली रिश्ता किस धर्म से है? सनातन से या हिंदू से। इसीलिए सनातन और हिंदू धर्म के वास्तविक रिश्ते को परखना और समजना जरुरी है। उदयानिधि स्टॅलिनने, "सनातन धर्म को सामाजिक असमानता, भेदभाव, उच्च नीचता, जातियावाद और महिलाओं के अवमूल्यन से जोड़ा था। उन्होंने, जैसे डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों को ख़त्म किया जाता है वैसेही सनातन धर्म के असमानतावादी सिद्धांतोंको ख़त्म करने की बात कही थी। ". लेकिन आरएसएस और उनसे जुड़े संगठनो ने उदयानिधि के इस टिप्पणी को नरसंहार के रूप में प्रक्षेपित किया। 

महायानी बुद्धिस्ट कैसे बने हिंदू


भारत में बहुजन समाज की संख्या अधिक थी. जहा ओबीसी, अनुसूचित जाती, जनजाति एंव  धर्मपरिवर्तित लोगोंका समावेश होता है. इस बहुजन समाज पर बौध्द धर्म का अधिक प्रभाव था. कालांतरण में बौध्द धर्म का विभाजन हीनयान और महायान के तौरपर अधिक तेजीसे चल रहा था. महायान पंथ एक नया स्वरूप ले रहा था. जहा मूर्तिपूजा, तंत्रविद्या और चमत्कार का अधिक विस्तार हो रहा था. साथ ही खेती और सामाजिक चेतना के साथ मनोरंजन (फेस्टिवल) के नए प्रयोग भी विकसित हो रहे थे. इस विकास के साथ बहुजन समाज के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तानेबाने बढ़े और उनमे स्थिरता आई. महायानो द्वारा भारत के अनेक जगहों पर मंदिरों एंव स्तुपोंका का निर्माण किया गया और उसमे बुध्द की मूर्तिया स्थापित की गई. लेकिन आदि शंकराचार्य के समय से महायानी बौध्दो के मंदिरोपर कब्ज़ा करना शुरू हुवा. मंदिरोंमें बुध्द की मूर्ति में बदलाव किया गया तथा मंदिरोका संचालन ब्राम्हण वर्ग करणे लगा. तत्कालीन राजा ब्राम्हणों के सलाह से राज्य चलाने लगे. महायांनी बहुजन समाज जो तंत्र,मंत्र, मूर्तीपूजा को मानता था वो समाज ब्राम्हण संचालित मंदिरोमे जाकर ब्राम्हण पंडो के बातोपर विश्वास करने लगे. सातवी शताब्धी से चौदाह शताब्धी तक पुराणों, महाकाव्ये और स्मुर्तियो का निर्माण किया गया. आज भी अनेक प्रसिध्द मंदिरोमे बुध्दा की प्रतिकृतिया दिखाई देती है. जमीन के निचे जहा खुदाई होती है, वहा बौध्द संस्कृति के अवशेष मिलते है.  गौतम बुध्द की मूर्तियों पर गेरवा रंग चढ़ाकर उसे देवी और देवता रूप में पूजा की जा रही है और हर मंदिरोंकी काल्पनिक कहानिया बनाकर लोगो को बताया जाता है. इस तरह  की विकृत मानसिकता एक ख़ास वर्ग का प्रतिक बन गई है. 

सुधारवादी हिंदूओंको धर्मविरोधी क्यों कहा जा रहा है?

एक अजब की स्थिति है. कुछ बाहरी लोगोद्वारा हिंदू धर्म के भीतर अपनी कुरीतिया, वर्णव्यवस्था, जातिप्रथा, आस्था और असमानता का बीजारोपण किया गया. जिससे हिंदू धर्म के मूल लोगोको अन्याय एंव अपमान जैसे परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. इन कुरीतिया एंव विषमता जैसे व्यव्हारोंको ख़त्म करना जरुरी है. सुधारोंका यह काम हिंदू धर्म के मूलनिवासी लोग करना चाहते है. जैसे ही मूल हिंदू अपने हिंदू धर्म के अंदर सुधारवादी बाते करने लगते, वैसेही बाहरी वैदिक उन्हें हिंदू विरोधी कहने लगते है. इतनाही नहीं, यह बाहरी हिंदू ८० प्रतिशत हिंदूओंका अपमान होने का दावा भी थोक देते है, जब की वे खुद हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है. फिर भी ये वैदिक ऐसा बर्ताव क्यों रहे है? इसके पीछे का राज क्या है?  इस सवाल के जवाब में कहा जा सकता है की, भारत में सनातनी वैदिक अल्पसंख्यंक है, लेकिन वे भारत की राजसत्तापर अपना अधिकार एंव वर्चस्व बरकरार रखकर उसे और बढ़ाना चाहते है, उन्हें पता है की, वे अपना वर्चस्व तबतक ही कायम रख सकते है, जबतक वे खुद को हिंदू कहना चालु रखे, मंदिरों एंव सांस्कृतिक रीतीरिवाज, वास्तुशास्त्रोंपर अपना वर्चस्व बरकरार रखे. उनके खुद के शास्त्र जैसे वेद, पुरानो और धार्मिक ग्रंथो को मूलनिवासी हिंदूओपर थोपे और सुधारवादी हिंदूओंके सुधारवादी प्रयासोंको हिंदू विरोधी कहकर हिंदुओ में अपनी पैठ ज़माकर अपने अस्तित्व और उनमे अपने विश्वास को अधिक मजबूत करना पड़े. इसी कारण से सामान्य हिंदू अपने दुसरे सुधारवादी हिंदू भाई के बातोपर विश्वास न करते हुए वे बाहरी वैदिक हिंदूओपर अधिक विश्वास करने लगते हुए मानसिक गुलाम, अंधविश्वासी  और अंधभक्त बन रहे है. इन्ही अंधभक्तो एंव मानसीक गुलामोंके बलबूते वे सत्तापर अपना कब्ज़ा बनाए रखे हुए है. और आगे भी शेकडो साल अपना वर्चस्व बनाए रखेंगे.  

 


Monday, September 11, 2023

विरोधी पार्टीयोंके लिये उपचुनाव के मायने क्या है?



यह नहीं कहा जा सकता कि देश में हो रहे उपचुनावों के नतीजे आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए संभावित निर्णायक बिंदु हैं। क्योंकि यह कई बार साबित हो चुका है कि पिछले उपचुनावों और उसके बाद हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों के नतीजे उलटे हुए थे. हालाँकि, जनता की राय अलग होती है। कब किसको सत्ता से हटा दें पता नहीं! अब तो मतदाता अपने दैनिक जीवन से जुड़े मुद्दों के साथ-साथ धार्मिक और सामाजिक मुद्दों के बारे में भी सोचने लगा है। लेकिन जो विपक्षी दल सत्ता में नहीं हैं उनके लिए उपचुनाव में मिली जीत से गुदगुदी और खुशी होना स्वाभाविक प्रक्रिया है. इससे विपक्षी दल अगला चुनाव और अधिक मजबूती से लड़ेंगे.

Saturday, September 9, 2023

विधानसभा पोटनिवडणुकांचे निकाल: एक अन्वयार्थ


देशात होत असलेल्या पोटनिवडणुकीचे निकाल हे आगामी विधानसभा व लोकसभा निवडणुकांची संभाव्य झुळूक असते असे म्हणता येत नाही. कारण या अगोदर झालेल्या पोटनिवडणुका व त्या नंतरच्या विधानसभा व लोकसभा निवडणुकांचे निकाल उलट आले हे अनेकदा सिद्ध झाले आहे. असे असले तरी जनमताचा कौल हा वेगळाच असतो. तो कोणाला कधी सत्तेतून घालवेल याचा नेम नसतो. कारण मतदार त्यांच्या दैनंदिन जीवनाशी निगडीत असलेल्या मुद्द्याबरोबरच तो धार्मिक व सामाजिक मुद्द्याचाही विचार करू लागला आहे. परंतु पोटनिवडणुकीत मिळालेल्या विजयातून सत्तेमध्ये नसलेल्या विरोधी पक्षाना गुदगुली व हर्ष वाटणे ही स्वाभाविक प्रक्रिया आहे. यातून विरोधी पक्षांमध्ये अधिक जोर लावून पुढील निवडणुका लढण्याचा हुरूप  येत असतो.