Tuesday, November 1, 2016

“चार्वाक दर्शन” का वैज्ञानिक रूप

भारत में अनेकानेक दार्शनिक चिंतनोकी परंपरा रही है। उनमे मुख्यत: वैदिक, चार्वाक, जैन और बौद्ध दर्शन मुख्य है। वस्तुत: भारतीय दर्शन वैदिक (ब्राम्हण) और अवैदिक (श्रमण) वर्गों में बटा है। कभी कभी इसका वर्गीकरण आस्तिक और नास्तिक के तौर किया जाता है। ‘नास्तिको वेद निन्दक’ याने वेदो को नकारने वाले को नास्तिक कहा गया है। लेकिन वैदिकों के इस व्याख्या पर आज के विद्वानोमे आक्षेप और रोष है। उनके अनुसार आस्तिक का अर्थ है, अस्तित्व तथा प्रत्यक्ष रूप में  दिखाई देनेवाले प्रारूप को मानना और नास्तिक का अर्थ है, प्रत्यक्ष प्रारूप को नकार देकर अस्तित्वहीन कल्पना में खोजते रहना। इस अर्थ से वेद अर्थहीन कल्पनाओंकी खाण है। चार्वाकोने इन वेदों के अर्थहीन बातो का बहुत विरोध किया है। क्योकि वेदों/स्मुर्ती/पुराणों ने मिलकर भारत के सत्य इतिहास को दफना दिया है।
कौण है चार्वाक? चार्वाक दर्शन को एक भौतिकवादी दर्शन कहा जाता है। चार्वाक दर्शन मूलत: भौतिक सिध्दांत का समर्थक और अध्यात्मवाद का विरोधी रहा है। चार्वाक कोई एक व्यक्ती नहीं है, बल्की एक विचारोकी प्रकृति है। बृहस्पति के विचारोको आगे बढानेवाले व्यक्ती या समूह को चार्वाक कहलाया जाता है। इस दर्शन को “लोकायत दर्शन” भी कहा जाता है। प्राचीन काल में यह दर्शन बहुजनो में बहुत लोकप्रिय था। भारतीय इतिहास में चार्वाक के स्व:निर्मित किताबे नहीं मिलते, लेकिन चार्वाक के मतों का कई प्राचीन ग्रंथोमें खंडन किया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि, चार्वाक के ग्रंथो को वैदिको द्वारा नष्ट किये गए। भविष्यकाल में चार्वाकके ग्रंथ बहुजनो के हातो में नहीं जाना चाहिए इसका पूरा ख्याल रखा गया। चार्वाक दार्शनिकोने वैदिकोकी पूरी पोल खोल दी थी।
चार्वाकोने युधिष्ठर और राम की भी निंदा की। वैदिक काल में चार्वाकवादी विचारकोंको असुर (राक्षस) भी कहा गया था। वैदिकोंके विचारों को विरोध करना एक अपराध भी था। इसी कारण अनेक चार्वाकोंको मारा गया था। रामायण और महाभारत में भी चार्वाक के उल्लेख दिखते है। उन्होंने  राम तथा युधिष्ठिर को फटकार लगाईं थी। महाभारत में एक चार्वाक ने युधिष्ठिर को प्रश्न पूछते हुए कहा था, आप राज्य के सिहासन पर बैठने योग्य नहीं है। आपने  सिहासन के लिए भाईयोको मार दिया, ऐसे सिहासन पर आप कैसे आरूढ़ हो सकते हो? रामायण में भी जाबाली नामक चार्वाकने राम से कहा था कि, अपने पिता का साम्राज्य छोडकर इन काटेसे भरे हुए वन में नहीं रहना चाहिए। जो मनुष्य अर्थ का परित्याग करके धर्मपरायण करता है, मै उनकी निंदा करता हू।
चार्वाकोने ईश्वर और आत्मा को नकार दिया। चार्वाक कल्पना से परे होते है। वे किसी भी बात पर प्रमाण कि मांग करते है। आजके संदर्भ में न्यायालयों में प्रत्यक्ष प्रमाण ही सबुत माने जाते है। चार्वाक अपने तत्वमिंमासा में ईश्वर, आत्मा और जगत पर चर्चा करते है किंतु वे ईश्वर और आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते। वे केवल जगत (सृष्टि) को मान्यता देते है। आस्तिक सृष्टि का निर्माण ईश्वर ने किया है, इसपर बल देते है। लेकिन चार्वाक ऐसे सिध्दांत को ठुकरा देते है। वे कहते है कि, चार भुतद्रव्य पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु से सृष्टि का निर्माण हुवा है। यह चारों भुतद्रव्य प्रत्यक्ष में महसूस किये जा सकते है। इन द्रव्यों का परस्पर मिलना और संगठित होना उनका स्वाभाविक गुणधर्म है। इन स्वाभाविक गुणधर्मो से ही सृष्टि का अपने आप निर्माण हुवा है।
चार्वाक इस बात का जोरदार विरोध करते है कि, हमारे शरीर में ऐसी कोई नित्य आत्मा होती है। जो मोक्ष प्राप्ति तक पुनर्जन्म को धारण करती है। आत्मा नश्वर है। शरीर के नाश के साथ इसका भी नाश हो जाता है। अर्थात देह के भस्म के बाद उसका कोई पुनरागमन नहीं होता। आत्मा को नकारते हुए चार्वाक ‘मै’ के बारे में कहते है कि, ‘मै’ अवश्यही चेतना संपन्न है। किंतु यह देह से नितांत भिन्न कोई गुण नहीं है। चेतना देह को बनाने वाले चार भौतिक द्रव्यों पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के संगठन से उत्पन्न गुण मात्र है। इसीलिए आत्मा ऐसी कोई विशेषता नहीं रखती कि हम उसे विशेष महत्व दे। चार्वाक कहते है कि, देह का भस्म हो जाने के बाद उसका पुनरागमन संभव नहीं होता। शरीर के नाश के साथ उसका भी नाश होता है।
शरीर में आत्मा या मन कि निर्मिति कैसी होती है? इसपर चार्वाक कहते है कि, आत्मा का निर्माण जड तत्वोसे होता है। जिस तरह पानपत्र, सुपारी, चुना एंव कत्थे  के संयोग से लाल रंग पैदा होता है। जिस तरह चावल में मादकता तो नहीं होती किंतु उसे सड़ाकर शराब बनाई जाती है। वहा मादकता भरपूर होती है। उसी तरह जड तत्वों के संयोग से आत्मा का निर्माण होता है। इसीलिए वे चेतना को शरीर का एक गुण ही मानते है।
चार्वाक ‘प्रत्यक्ष’ कोही प्रमाण मानते है। ईश्वर का स्वरूप प्रत्यक्ष नहीं होता। इसीलिए ईश्वर के अस्तित्व को नहीं माना जा सकता। ईश्वर में विश्वास रखनेवाले या माननेवाले उसे अंदाज के प्रमाण से सिध्द करते है। उन्हें लगता है कि, पृथ्वी के    हर चीज का निर्माता ईश्वर है। ऐसा अनुमान संदेह से भरा होता है। इसीलिए वह विश्वसनीय नहीं होता। शास्त्रोमे लिखा है या महानुभावो ने माना है, यह भी किसी प्रमाण या भौतिक आधारपर सिध्द नहीं होता। इसीलिए उसे नहीं माना जा सकता है। ढूंढनेसे भी जिसका प्रमाण नहीं मिलता उसके पीछे दौडना मूर्खतापूर्ण बात है।
“धर्म” पाखंडीयोके दिमाख कि उपज है। चार्वाक कि भारतीय दर्शन को बड़ी देन है। उन्होंने सामान्य जनो के मन में घुमडनेवाली शंकाओं को सबके सामने रखा है। उसने अपने हर बातो को वास्तव और तर्क के साथ जोड़ा है। आलोचक ‘चार्वाक दर्शन’ को एकल मानते है, याने प्रत्यक्ष प्रमाण को माननेवाला समझते है। लेकिन यह अर्धसत्य है। चार्वाक अनुमान को भी महत्व देते है। लेकिन अनुमान का परिणाम “प्रत्यक्ष दर्शक” जैसा हो। जैसे आप किसी चीजको पाने के लिए मंत्र - तंत्र का सहारा लेते हो। तो उसका “प्रत्यक्ष लाभ” दृष्ट स्वरूप में दिखना चाहिए। क्योकि आपका अनुमान है कि, मंत्र तंत्र और पूजापाठ से फल मिलता है। तो उसके फल का प्रत्यक्ष रूप दिखना जरुरी होता है। दूसरे उदहारण के तौर पर तथा पुत्र प्राप्ति के लिए नवस बोलना या पूजा पाठ करना। आपका अनुमान है कि, पूजापाठ तथा मंत्र तंत्र से संतति प्राप्त होती है। लेकिन तब वह महिला किसी पुरुष से या किसी पुरुष का महिला से शारीरिक सबंध प्रस्थापित न करते हुए केवल पूजापाठ से संतति प्राप्त होना अनिवार्य होता है। ऐसे प्रत्यक्ष अनुमान को चार्वाक कि मान्यता प्राप्त है। इसीलिए अनुमान को तभी प्रमाण माना जाएगा जब उसकी सिध्दी प्रत्यक्ष होगी।  इस तरह से उन्होंने धर्म के पाखंडीयोंको लताड़ा है।
चार्वाक यज्ञ संस्कृतिके विरोधक थे। वे कहते थे, यदि यज्ञ में बली दिया गया पशु स्वर्ग पहुच जाता है तो वे क्यों नहीं पशुओ के बदले अपने माता पिता की बली देकर उन्हें सीधे स्वर्ग भेज देते है? वे स्वर्ग और नरक की कल्पना को नकराते थे। धार्मिक श्राध्द पर कटाक्ष करते हुए वे कहते है की, यदि श्राद्ध में अर्पित किया गया भोजन प्रेतात्मा की भूख मिटा सकता है तो कोई यात्री भोजन की वस्तु साथ साथ लिए क्यों फिरता है? उसका कुटुंब उसकी भूख शांति के लिए उसे घर पर ही भोजन क्यों नहीं अर्पित कर देता?
चार्वाक के विचार भौतिकवादी होने के कारण वैज्ञानिक भी है। भारत के लोगो ने  अध्यात्म, धर्मवाद, मंदिर, मंत्र-तंत्र और भूदेव कहे जानेवाले लोगो के चंगुल में फसकर अपने आप के विकास को खत्म कर दिया। लेकिन वही चार्वाक के विचारों को अपनाने वाले पाश्चात देशोने वैज्ञानिक क्षेत्र और मानवतावादी विचारों में सफलता प्राप्त की है। इसीलिए आज चार्वाको के विचारों पर गौर करना बहुत जरुरी है।        

बापू राऊत

९२२४३४३४६४ 

4 comments:

  1. It's a good anlysis

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  2. चार्वाक संहिता हमारे समय का याथार्थ उपहार है ! आप के लेखन के लिए आभार !
    ओम सैनी

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