Thursday, February 16, 2017

भारत में अल्पसंख्याकों और दलितोपर अत्याचार (यू.एस. कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम का रिपोर्ट)

हाल ही में अमेरिकी कमीशन के “इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम” द्वारा सार्वजनिक तौर पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई। यह कमीशन विश्व स्तरपर धार्मिक स्वतंत्रता पर नज़र रखता है और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में उल्लेखित मानकों को ध्यान में रखकर अपना रिपोर्ट बनाता है। और अमेरिकी सरकार कों उस देश के प्रति नीतिगत फैसला लेने के लिए सुपुर्द करता है. इस रिपोर्ट में 1 फ़रवरी, 2015 से 29 फ़रवरी, 2016 तक की अवधि की महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में, भारत में धार्मिक सहिष्णुता की स्थिति बिगड गई है और धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघनों में अधिक वृध्दि पाई गई। अल्पसंख्यक समुदायों को हिंदू राष्ट्रवादी समूहों द्वारा बड़े पैमाने पर प्रताड़ना, उत्पीड़न और हिंसा की कई घटनाओं का अनुभव करना पड़ा है। इन तथाकथित राष्ट्रवादी समूह कों  भारतीय जनता पार्टी का मौन रूप से समर्थन प्राप्त होने का आरोप लगा है. यह राष्ट्रवादी धार्मिक –विभाजनकारी भाषा का इस्तेमाल कर लोगोंको भड़काते हैं। और भिन्न भिन्न समाज के बिच संघर्ष की स्थिति पैदा करते है।
रिपोर्ट में कहा गया, ऐसे मुद्दे, जिनमें लंबे समय से चल रहे विवादोपर पुलिस द्वारा किए गए पक्षपात और न्यायिक अपर्याप्तता की समस्यायों ने व्यापक तौर पर दंडभाव का वातावरण पैदा कर दिया है, जहा धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाए धर्मप्रेरित अपराधों के कारण असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। दलितोके प्रति भेदभाव और इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय सरकार या राज्य सरकारों ने धर्मांतरण, गौ हत्या और गैर सरकारी संगठनों द्वारा विदेशो से आर्थिक सहायता लेने पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए कई कानून लागू किए हैं। भारत के संविधान में दीए प्रावधान अल्पसंख्यांक समुदाय कों समानता और धर्म के विश्वास की स्वतंत्रता प्रदान करते है, लेकिन इसके विपरीत सरकारों और तथाकथित राष्ट्रवादीयो द्वारा उनके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। इन परिस्थितियों कों देखकर  अमेरिकी कमीशन के “इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम” (USCIRF) ने भारत को फिरसे टायर-2  के स्थिति में  रखा है, जहा वह  2009 से स्थित है। इसके तहत आने वाले वर्षों के दौरान अगर स्थिति और गंभीर होती है, तथा धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन होते रहे ऐसे स्थिति में, भारत कों अंतराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (IRFA) के तहत "'विशेष चिंतावाला देश" घोषित करने के लिए अमेरिकी प्रशासन कों कमीशन  द्वारा सिफारिश की जा सकती है।
अधिकारिक तौरपर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की अनुमानित संख्या 20 करोड़ है। रिपोर्ट कहती है की, जनवरी 2016 में, अल्पसंख्यक मुद्दोपर संयुक्त राष्ट्र की विशेष संवाददाता रीटा इज़्सक-नाडिया के अनुसार, 2015 में दलितो के विरुध्द अपराधोकी संख्या और उसकी भीषणता बढ़ी है। हिंदू दलितोंको को धार्मिक भेदभाव का सामना करना पडता है। कई मामलों में,  "उच्च जातियों" के व्यक्तीयो और स्थानीय राजनीतिक नेताओं द्वारा उन हिंदुओ को धार्मिक मंदिरोमे में प्रवेश करने से रोका है जिन्हें अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति (दलितो) का हिस्सा माना गया है. तमिलनाडु राज्य में तिरुपुर जिले के 7 गावों में, दलितोंको मंदिरोमे दाखल होने या आरती करने की अनुमति नहीं थी क्योकि दलितोंके प्रवेश से मंदिर अपवित्रहो जाता है ऐसी एक धारणा है। ऐसे मंदिर प्रतिबंध के विरोध में दर्ज मामले जिला अदालत में अधिकतर अनिर्णीत होते है। जून 2015 के अनुसार, पिछले 5 वषों में गुजरात राज्य के 8 जिलों में ऐसे 13 मामले दर्ज थे जहा  दलितो द्वारा मंदिरोमे में प्रवेश करने पर प्रतिबंध था। इसके अतिरिक्त, गैर-हिंदू दलित, विशेष रूप से ईसाइयों और मुसलमानों को हिंदू दलितो के लिए उपलब्ध नौकरियों या स्कूल नियोजन में  कोई अधिकारिक आरक्षण नहीं है, जो इन समूहों की महत्वपूर्ण आर्थिक और सामाजिक उन्नति में बाधा पहुंचाता है।
रिपोर्ट में कहा गया,  भारत एक बहु-धार्मिक, बहु-जातीय, बहु-सांस्कृतिक देश और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है। जहा  भारत विश्व की कुल जनसंख्या की 1/6 जनसंख्यावाला विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है। जहा लगभग 80% जनसंख्या हिंदू, 14% से ज्यादा मुस्लिम, 2.3% इसाई, 1.7% सीख, 1% से कम बुध्दिष्ट हैं (80 लाख), 1% से कम जैन हैं (50 लाख) और एक प्रतिशत वह लोग हैं जो अन्य धर्मोसे सबंधित हैं या जिनका कोई धर्म नहीं है। फिर भी देश ने समय-समय पर धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसाओ का अनुभव किया है. 2013 में, उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में हुई हिंसक घटनाओं के कारण 40 लोग मारे गए, 12 से अधिक औरतें और लडकियों के साथ बलात्कार हुआ और 50,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए.
रिपोर्ट के नुसार, जब से भाजपा ने सत्ता संभाली है, तब से धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों पर भाजपा नेताओं द्वारा अपमानजनक टिप्पणियाँ हुई हैं और हिंदू राष्ट्रवादी समूहों जैसे की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद द्वारा बल-पूर्वक धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया है और कई हिंसक हमले हुए हैं। भाजपा एक हिंदू राष्ट्रवादी पाटी है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोग से स्थापित हुई है और इन दोनों ने उच्चतम स्तर पर घनिष्ठ संबंध बनाए रखें हैं। ये समूह हिंदुत्व की विचारधारा को मानते हैं, जो हिंदुत्व के मूल्यों पर भारत को एक हिंदू राज्य बनाने का प्रयास करते हैं।
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे वर्तमान सरकार से पहले से ही मौजूद हैं, लेकिन भाजपा सरकार के समय से उन्हें अधिक लक्षित किया जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया की, 2008 और 2010 में भारत में आतंकवादी हमलों के बाद से मुसलमानों (युवा लड़को एंव पुरुषो) को अनुचित जाच और मनमाने ढंग से, बिना आरोप से गिरफ़्तारी का सामना करना पड़ा है, जिसे सरकार आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए आवश्यक ठहरा रही है।  एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक वर्ष के दौरान भारत में मुस्लिम समुदाय के प्रति उत्पीड़न, हिंसा, नफरत और लक्षित अभियानों में वृध्दि हुई है। मुसलमानों पर अक्सर आतंकवादी होने, पाकिस्तान के लिए जासूसी करने, धर्म परिवर्तित करने और हिंदू महिलाओ से शादी करने और गायों को कत्लेआम करने का आरोप लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त, मुस्लिम समुदाय के नेताओं और सदस्यों का कहना है की मसजिदों की निगरानी रखी जा रही है. अल्पसंख्यांकोके  इन आरोपो के मद्देनजर अमेरिकन कमीशन (USCIRF) के प्रतिनिधि मंडल ने मार्च 2016 में भारत का दौरा करने की योजना बनाई थी,  लेकिन भारत सरकारने इसपर आपत्ति कर वीजा जारी करने के लिए इन्कार कर दिया था। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता,न किर्बी ने इसे निराशाजनक कहा था।
रिपोर्ट में कहा गया है की, भाजपा और आरएसएस के सदस्यों द्वारा यह दावा करना की मुस्लिम जनसंख्या में वृध्दि हिंदू बहुमत कम करने का प्रयास है धार्मिक तनाव को बढ़ाता है। योगी आदित्यनाथ और साक्षी महाराज जैसे भाजपा सांसदों द्वारा मुस्लिम जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने के लिए कहकर हिन्दुओको मुसलमानों के खिलाफ उद्दीपित किया जाता है। फ़रवरी, 2015 में संघ परिवार की बैठक का वीडियो सामने आया है. जहा स्पष्ट कहा गया की, प्रतिभागी मुसलमानों को नियंत्रित करें और राक्षसों को नष्ट करें.  भाजपा शासित कई राज्य और राष्ट्रीय राजनीतिक स्तर के नेता वीडियो में दिखाई दे रहे हैं, मुसलमान दावा करते हैं की,  वे पुलिस पक्षपात और आरएसएस द्वारा पुलिस की धमकी के कारण शायद ही कभी दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करते हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 के मद्देनजर ज्यादातर भारतीय राज्यों (2015 में, 29 में से 24) ने गौ हत्या पर पाबंदी लगाई है। इन प्रावधानों ने मुसलमानों और दलितो  को आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया है। सितम्बर 2015 में,  उत्तर प्रदेश के बिशारा गांव में, लगभग 1,000 लोगों की भीड़ ने मोहम्मद अखलाक को कथित तौर पर गाय की हत्या के लिए मार डाला। रिपोर्ट कहता है, हत्या व दंगा करने के आरोप की समीक्षाधीन अवधि के अंत तक कोई अतिरिक्त जानकारी उपलब्ध नहीं हुई। अक्टूबर 2015 में,  कश्मीर में, जाहिद रसूल भट्ट को कथित तौर पर गौ हत्या के लिए गायों को ले जाने के कारण आग लगाकर मार दिया गया। पिछले दो वषों में भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के सदस्यों द्वारा गौमांस प्रतिबन्ध कानून के उल्लंघन का इस्तेमाल हिंदुओ को मुसलमानों और दलितों पर हिंसक हमला करने के लिए भड़काया गया।
हिंदू राष्ट्रवादी समूहों ने तथाकथित "घर वापसी" कार्यक्रम के हिस्से के रूप में हजारों ईसाई और मुसलमान परिवारों को हिंदू धर्म में वापस लाने की योजना की घोषणा की। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए तथाकथित हिंदू राष्ट्रवादियोने  इस अभियान के लिए धन इकट्ठा करना शुरू किया। लेकिन घरेलू और अंतराष्ट्रीय हाहाकार के बाद, आरएसएस ने अपनी योजना को स्थगित कर दिया। फिर भी, 2015 में भारत के धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों का छोटे पैमाने पर बलपूर्वक धर्मांतरण की रिपोर्ट सामने आई है।
भारत सरकारने 2010 का विदेशी (सहायता) नियंत्रण अधिनियम के तहत लगभग 9,000  धार्मिक संगठनो के लाइसेंस रद्द किए थे। परंतु कई धार्मिक, गैरधार्मिक और गैर-लाभकारी संस्थाओने दावा किया है की, वे मानव आवागमन, प्रसव की स्थिति, धार्मिक स्वतंत्रता और अन्य मानव अधिकार, पर्यावरण और भोजन के मुद्दों पर सरकार के खराब रिकार्ड को प्रकाशित करने और गुजरात दंगो के केस लढने में शामिल थे। इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र पर आधारित फोर्ड फाउन्डेशन, जो आंशिक रूप से सबरंग रस्ट और सिजेपी को वित्त प्रदान करती है, “निगरानी सूचीमें डाली गई थी।
रिपोर्ट कहती है, उत्तरप्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, उड़ीसा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, और राजस्थान जैसे राज्य सांप्रदायिक हिंसा, सबसे अधिक धार्मिक हमलों वाले और सबसे बड़े धार्मिक  अल्पसंख्यक जनसंख्या वाले स्थान हैं। भारत के केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, 2015 में, भारत में पिछले वर्ष  के मुकाबले सांप्रदायिक हिंसा में 17% वृध्दि हुई है। धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय, विशेष रूप से मुसलमान दावा करते हैं की सरकार अक्सर हिंसा की धार्मिक प्रेरित प्रकृति छिपाने के लिए उनके खिलाफ हमलों को सांप्रदायिक हिंसा के रूप में वगीकृत करती है।  प्रत्यक्षदर्शियो को अक्सर गवाही न देने के लिए धमकाया जाता है, विशेष रूप से जब स्थानीय राजनीतिक, धार्मिक और  सामाजिक नेता मामलों में फंसे हों। 2013 के मुज़फ़्फफ़रनगर दंगों पर विशेष  फैसले के अनुसार सबूतों के अभाव में 10 लोगों को अग्नि (आगजनी) और हत्या के आरोप से बरी कर दिया गया।
वर्ष 2015 में जब बराक ओबामा दोबारा फ़रवरी 2015 में भारत आये, तब उन्होंने भारत के धार्मिक स्वतंत्रता मामलों पर महत्वपूर्ण टिपण्णी की। उन्होंने भारत की सफलता का श्रेय उसके “धार्मिक स्वतंत्रता” के महत्व कों  रेखांकित कर ‘‘धार्मिक आस्था के अनुसार न बिखरने की सलाह दी. अमेरिका के साथ भारत के साझा मूल्यों के सबंध के अंतर्गत कमीशन के “इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम” द्वारा अमेरिकी सरकार को चिंताओ के कुछ सुझाव दिए। सुझाव नुसार भारत के साथ द्विपक्षीय संपर्को में धार्मिक स्वतंत्रता के प्रति चिंता को शामिल करना और धार्मिक हिंसा के मामलों को प्रतिबंधित व दंडित करने के प्रभावकारी उपाय लागू करने और पीडितो एंव गवाहों की सुरक्षा करने के लिए राज्य व केंद्रीय पुलिस की क्षमता मजबूत करने को प्रोत्साहित करना, अमेरीकी दूतावास द्वारा ध्यान दीए जाने के बात को बढ़ाना. यएूससीआईआरऍफ़ (USCIRF) को देश की यात्रा की अनुमति अनिवार्य करना, धर्मांतरण विरोधी कानून में बदलाव लाया जाए ताकि उन्हें अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त  मानवाधिकार मानकों के अनुकूल बनाना और भारतीय सरकार को उन सरकारी अधिकारियो व धार्मिक नेताओं को सार्वजनिक रूप से  फटकार लगाने की अपील शामिल है।
जिस तरह हमेशा से होता आ रहा है, उसी तरह भारत सरकारने इस रिपोर्ट कों ख़ारिज किया है और रिपोर्ट के  विश्वासार्हता पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिए है लेकिन इससे अच्छा ये होता की, जो घटक इन परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार है, उनपर कार्यवाही का आश्वासन देकर देश के अल्पसंख्यांक समुदायों और दलितो कों आश्वासित किया होता सत्ता में कोनसी भी सरकारे आये, लेकिन वह कभी भी अल्पसंख्यांक और दलितों को सुनना नहीं चाहती दरबन में हुई मानवाधिकार परिषद में कांग्रेस की सरकार ने भी यही भूमिका अदा की थी
लेकिन अमेरिकी कमीशन के “इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम” द्वारा जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई, उसमे दलितोंके प्रश्नों और अत्याचार की घटनाओ पर अधिकतर प्रकाश नहीं डाला गया। 1 फ़रवरी, 2015 से 29 फ़रवरी, 2016 तक की अवधि में दलितोपर तथाकथित राष्ट्रवादियो और जातिवादी मानसिकता द्वारा आत्यंतिक अत्याचार किए गए। लेकिन इन सबका प्रतिबिंब इस रिपोर्ट में नहीं दिखाई देता। इसके कई कारण हो सकते है। लेकिन सच तो यह है की, अमेरिकी कमीशन की जो संस्थाए भारत में कार्यरत है, उन्होंने दलित अत्याचारोके उक्त घटनाओंकी रिपोर्टिंग ठीक नहीं की गई । तथ्यों और घटनाओ को अच्छे तरीकेसे प्रस्तुत नहीं किए गए। इसीलिए भारत के अनुसूचित जाती और जनजाति (दलितो और आदिवासी) द्वारा अत्याचारों का लेखा अंतराष्ट्रीय समुदायोंके सामने रखने  और घटनाओ का संकलन एंव उसके विश्लेषण के लिए स्वतंत्र संस्थाओ का निर्माण करना चाहिए।

(साभार: अमेरिकी कमीशन के “इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम” का रिपोर्ट)

बापू राऊत
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E-mail:bapumraut@gmail.coml

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