Saturday, August 26, 2017

धर्म के ठेकेदार और महिलाओका शोषण

भारत का आधुनिक कालखंड, जहा किताबों एंव लेखो में लिखीत, नारो मे सिमित, वर्तमानपत्रों में छापित तथा विद्वानों, संन्यासियो एंव राजनेताओ के भाषणों में तरंगति और लहराती नारी की महिमा कितनी सुंदर और सहज दिखती है. कभी कभी लगता है इनके अंदर नारी पूर्णत: समा गई हो. नारी हमारी माता है और बहन है. वह विश्व की जननी है. इसके अलावा दूसरे भी रिश्ते होते है. जिसे हम सन्मानजनक दृष्टी से देखते है. महिला का सन्मान सर्वोपरि होता है. सभ्य नागरी समाज में महिला का स्थान बराबरी और सामान अधिकार का होता है. नारी के चरित्र्य की रक्षा समयोचित की जाती है. यही सभ्य समाज के लाक्षणिक गुण होते है. ऐसे सभ्य समाजपर सृजनता का प्रातिनिधिक होने पर गर्व होना चाहिए. भारतीय सभ्य समाज ने महिलाओको सब अधिकार दिए जिसका वह हकदार है.
लेकिन जहा उजाला होता है उसके विरोधी दिशा में अँधेरा भी छाया होता है. भारत में कुछ ऐसाही है. महिलाओका सन्मान, आदर और उनका देवी होने का महिमा मंडन कहने में, सुनने में, सुनांने में तो ठीक है. लेकिन उसका व्यावहारिक दर्शन क्या है? कही लोग स्त्री का स्थान पूज्यनीय होने का दावा करते है. लेकिन क्या यह सच है? या सृजनशीलता का केवल दिखावा या ढकोसला?. ढोंग कभी भी ज्यादा दिन टिक नहीं पाता. अपनेआप उजागर हो जाता है.
भारत का कालखंड वैज्ञानिक कृतियोका था. लेकिन आज भारत कों अध्यात्मिक देश कहा जा रहा है. इस अध्यात्मिक भारत में अध्यात्म और आस्था बिकती है. इस अध्यात्म और आस्था कों बेचने के ठेकेदार पैदा हुए है. इस अध्यात्मकता का गर्व और अभिमान रखनेवालो का वर्ग बहुसंख्यांक है. तथा विवेकवाद, बुध्दिवाद और तर्कवाद के रास्ते पे चलनेवाले लोग अल्पसंख्यांक है. इनके विचारोंकों महत्व नहीं दिया जाता. लेकिन वास्तविकत: यही है की यही अल्पसंख्यांक का समूह सभ्य समाज प्रतिनिधित्व करता है.
अध्यात्मवाद होता क्या है? डर का दूसरा नाम अध्यात्म है. अदभुत (नकली) चमत्कार और काल्पनिक पडछाया डर का प्रतिनिधित्व करती है. कवियोने अपनी कल्पना से रची और शब्दबध्द की गई वर्णमाला कों अध्यात्मिक शास्त्र कहा गया. इन वर्णमाला के विषय अलग अलग थे. उन्होंने सामूहिक चतुराई से  व्यवस्था का निर्माण किया. अध्यात्म, आस्था तथा डर की नीव रखी. इसी अध्यात्मवाद और आस्था का आज के साधू, धर्म के ठेकेदार, पुजारी और मठाधीश फायदा उठा रहे.
वास्तव में अध्यात्मक दृष्टी से आज की नारी दिन और हिन् है. अशिक्षा, पराश्रिता व रूढिय़ों ने महिला  कों दयनीय कर दिया है. आस्था, पूजापाठ में वह डूबी रहती है. अपने शोषण का उसे पता ही नहीं चलता. उसे शोषण ही अपना न्याय लगता है. कच्चे और खेलने के उम्र में उसका बालविवाह किया जाता है. परदे के अंदर उसे रखा जाता है. वह दहेज की बली बन जाती है, उसे सती बनाया जाता है. माँ के पेट के मे उसकी हत्या होती है. धर्म की मान्यताओं के चलते विधवा शादी नहीं कर सकती. उसे भोग की वस्तु माना गया तथा उसका भावनात्मक व शारीरिक शोषण भी व्यापकता के साथ होने लगा है, जिससे न केवल वह बाह्य रूप से बल्कि आंतरिक रूप में भी वह दुर्बल हो गई है. धर्म और अध्यात्म ने उसका आत्मविश्वास, आत्मबल व आत्मसम्मान कों हिला दिया है. बाते कुछ भी कही जाए लेकिन व्यव्हार में, उसे असमानता की मानसिकता में झोक दिया जाता है. इसी असहायता का साधू, सन्यासी फायदा उठाते है.
अध्यात्म, आस्था, शास्त्रों और लीलाधारी अवतारों का फायदा ढोंगी साधू, बाबा, पुजारी और मठाधिशोने खूब उठाया है. आसाराम, उसका लडका नारायण, बाबा राम रहीम,  रामपाल, नित्यानंद, कांची शंकराचार्य, सत्य साईं बाबा, लाला रामदेव, चंद्रास्वामी, प्रेमानंद, सदाचारी, श्रीमुर्थ द्विवेदी ऐसे अनेकानेक साधूओने देश के करोडो आस्थाधारी लोगो के भावनाओपर कुठाराघात किया है. उन्होंने धर्म के नाम से हजारों एकर जमीन हड़प ली है. हर राज्यों में उनके मठ है. ये लोग उपरसे संन्यासी अंदर से लैगिगता के असुर होते है. आसाराम, नारायण, नित्यानंद, कृपालु जैसे भोगी बलात्कार के मामलेमे जेल की हवा खा रहे है. कांची के शंकराचार्य जेल की हवा खा चुके है. और अभी राम रहीम पर बलात्कार का आरोप सिध्द हुवा है. कुछ लोग संन्यासी का चोला पहनकर पहले आस्था के नाम पर योग और विपश्यना द्वारा लाखो भक्त बनाकर अब देश के बड़े उद्योगपति बन चुके है. जिसमे बाबा रामदेव और रविशंकर जैसे लोग गोलबंद है.

नकली संन्यासी की बिरादरी यहातक ही सिमित नहीं है. भारतीय राजनीति और राजसत्ता में ये लोग प्रवेश कर चुके है. लाखो एंव करोडो भक्त इन नकली संन्यासीयोकी व्होटबँक बन चुकी है. इस व्होटबँक द्वारा वे भारतीय राजनीती को कंट्रोल कर रहे है. प्रधानमंत्री से लेकर  मुख्यमंत्री, मंत्री, खासदार और आमदार इन मठाधीशोके सामने लाचार बन चुके है. नकली संन्यासीओके अंध भक्त बेधुंद होकर हैदोस करते है. इन अंध भक्तो को कोई फर्क नही पडता की, किसी भी महिला की इज्जत उनके बाबा लुटे. इतने वे बाबाके मानसिक गुलाम बन चुके है. इन भोंदू बाबाओका भी जलवा देखिये. वे खुद कों कृष्ण और राम का अवतार मानकर अपने महिला शिष्यों (साध्वी) के साथ रासलीला करने को अपना हक और अधिकार समझते है. आसाराम तो कहता है, कृष्ण हजारों राधाओके साथ रासलीला करता था. उसपर कोई नहीं बोलता. मुझे भी वह छूट चाहिए. ऐसे में रामायण और महाभारत के राम और कृष्ण का क्या करे? इन दोनों के नाम पर देश कों तोडने का और महिलाओ पर अत्याचार करने का अधिकार ज़माने का षडयंत्र रचा जा रहा है. वे अब प्रतिक बन गए है हिंसा और महिला अत्याचार के. वैसे भी लेनिन कों रशिया ने उखाड फेक दिया है. वैसाही कुछ ओर, किसी एक दिन.

आस्था और अध्यात्म एक ढकोसला सिध्द हो चूका है. सनातन नामक संस्था ऐसे ढोंगी साधू, बाबा, आस्था और अध्यात्मक कों गौरवान्वित करती है. ऐसे में हम और आप क्या करे? भारत के लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की साख बचने के लिए विवेक, बुध्दिनिष्ठता, विज्ञान और तर्क कों सर्वोपरी रखना होगा. इन नकली भगवानो कों भारत के जमीन में दफनाना होगा. धर्म के धंधेबाजो कों इशारा देकर वैज्ञानिक चिंतन विकसित कर लोकतान्त्रिक व्यवहार और समाज में स्रुजनशिलता का निर्माण करना होगा. अन्यथा परिणाम साफ़ दिखाई दे रहे हैं, देश के लिए खतरे की घंटी बज रही है। कुछ तो करना होगा, अन्यथा असहाय बनकर इन घटनाक्रमों को देखने के शिवाय कुछ नहीं कर पायेंगे.

बापू राऊत

९२२४३४३४६४

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