जस्टिस
पार्टी के नेता उदित राज इनके भारतीय जनता पार्टी प्रवेश करने तथा संघ परिवार के
सामने घुटने टेकने की खबर मिली। साथ ही रामविलास पासवान की भाजपा के राजकीय
अखाड़े में जा मिलने और साथ में युती करने खबर ने और चौका दिया। ये दोनों खबरे चौखा देने वाली थी क्योकि ये दोनों तत्वों की
और संघ के हिन्दुवाद को लताडने की बात करनेवाले नेता लगते थे। महाराष्ट्र में रामदास आठवले के
शिवसेना और भाजपा के साथ जाने से और दोस्ती करने से मुझे कोई ताज्जुब नहीं लगा। क्योकि रामदास आठवले हमेशाही
अवसरवादी रहा है।
आंबेडकरवाद आठवले के भेजे में ना कभी गया था, ना कभी जाएगा। वह तो सिर्फ सत्ताधारियोका खिलोना है। ये लोग दलित समाज के वोटो के सिर्फ दलाल है और उससे ज्यादा
कुछ नहीं।
आंबेडकरवाद
तथा रिपब्लिकन पार्टी को ख़त्म करने का प्रयास हमेशाही कांग्रेस ने किया। कांशीरामजी के उदयकाल तक वे सफल भी रहे। लेकिन कांशीराम युग में रिपब्लिकन पार्टी को टुकड़ो में
बाटनेवाली कांग्रेस को ऐसी पटकनी मिली की उत्तर प्रदेश तथा बिहार से कांग्रेस का
पूरा सफाया हो गया। काशीराम जी ने अपने नीतियों तथा कर्मो
से ना बिकनेवाले समाज की नींव डाली । उन्होंने केडर कार्यकर्ता निर्माण किया
था। आज काशीराम होते तो भारत का राजनीतिक
तिलक आंबेडकरवादियोके हात में होता। खैर अब यह चर्चा भी कुछ मायने नहीं
रखती।
काशीराम
के बाद बसपा की बागडौर मायावती के तो पास आई लेकिन वह उत्तरप्रदेश तक ही सिमित रही। मायावती को उत्तर प्रदेश ही भारत लग रहा । उत्तर प्रदेश के बाहर भी राज्य है यह मायावती भूल गई है। उत्तर प्रदेश के बाहर बसपा के खस्ता हालत को दुरुस्त करना
मायावती को नहीं आ रहा या उसके बस की बात नहीं। समझमे नहीं आ रहा । क्या स्वंय मायावती बसपा को उत्तर
प्रदेश तक ही सिमित रखना चाहती है? अगर ऐसा है तो वह चिंता की बात है । खैर समय किसी के लिए रुकता नहीं, नया
आंदोलक आ ही जाएगा ।
बाबासाहब
आंबेडकर ने कहा था की, मुझे पढ़े लिखे लोगो ने धोका दिया। वे समाज का नहीं खुद का भला करने लगे है । उदित राज, रामविल पासवान, रामदास आठवले, नरेंद्र जाधव,
भालचंद्र मुगनेकर ऐसे अनेक लोग है जो आंबेडकर विचारधारा की तहत मजबूत ताकद के रूप
में उभरने के बजाय भाजपा और कांग्रेस के पिछलग्गू /पायचाटू बन गए है। कल न्यूज चेनल देख रहा था, उदित राज का इंटरव्ह्यु चल रहा
था। लग रहा था, यह आंबेडकरवादी है ही नहीं। पक्का भाजपावादी और घोर बसपाविरोधी लग रहा था। लग रहा था, मोदी का अधुरा हिंदुत्व का मिशन उदित राज पूरा करेगा। लेकिन उदित राज क्या मागास समाज के मासबेस नेता है ? वे
मागास समाज से आते है, लेकिन वे समाज के नेता के रूप उनकी कोई पहचान नहीं है? एक
जमाने में बिहार और देश कुछ हिस्से में पासवान का जनाधार था । मगर आज नहीं है, वे बिहारसेही चुनाव हार जाते है, वे आज के
स्थिति में जनाधारहिन् नेता है । वे सिर्फ अपने बच्चे को स्थापित करना
चाहते है। समाजसुधार से उनका लेना देना नहीं है। रामदास आठवले तो म्याऊ है, आखे बंद करके बात
करता है। न खुद चुनके आ सकता है, न किसीको
चुनके ला सकता है। ये सब बिन पेंदो के लोटे है, हवा के झोके से किधर भी
जा सकते है । तत्वाधान उनके रगों में नहीं है केवल
संधिसाधुता ही उनका लक्ष्य है।
अब लोगो
की बारी है की, ऐसे लोगोसे कैसे निबटना? लोग बेवकूफ नहीं । देख रहे है ये नेता और सत्ता के दलाल क्या कर रहे है? लोगो के पास बुध्दी है, वे बिकेंगे नहीं किन्तु
अपने सदसदविवेक से वोट करेंगे । और दिखाएंगे की, अब तुम्हे सहेंगे
नहीं, तुम्हे उखाडके बाहर फेक देंगे।
बापू राउत
९२२४३४३४६४
और मायाबतो के बारे में क्या ख्याल है आपका? उनको तो छोडिये पत्रकार कंवल भारतीय भी कांगेस की झोली में जा गिरे ..
ReplyDeleteकवंल भारती क्यों गए? शायद मायावती ने उनकी अनदेखी की होगी
Deleteकवंल भारती क्यों गए? शायद मायावती ने उनकी अनदेखी की होगी
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