किसी देश की सभ्यता और विकास उस देश में बसे हुए नागरी समाज के वर्तन पर
निर्भर होता है। समाज में बसी हुयी कुप्रथाए, कु रीतिया, पुरानी
परंपराए, अत्याचार और असमानता पर वे हमेशा हमला करते है। मानवता और अधिकार के मुद्दे उनके अजेंडेपर होते
है। किंतु, अगर यह सत्य है, तब उसका अनुभव भी आना
जरुरी होता है। अनेक देशो में इसके
परिणाम दिखाई देते है। लेकिन जब भारत और दूसरे देशो के नागरी समाज की
तुलना की जाती तब एक बड़ा अंतर दिखाई देता है। भारत का
नागरी समाज “नपुसक और भयभीत” प्रतीत होता है। नपुसकता
होती क्या है? जो समाज अपने आसपास घटित हुई घटनाओ पर कुछ भी प्रतिक्रिया न देकर केवल
आखों से देखते रहता है। जो समाज अन्याय और असत्य के खिलाफ बोलने के लिए
डरता हो, ऐसे समाज को “नपुसक समाज” कहा जाता है। भारत के
नागरी समाज को इसी दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। ऐसे लोगोंके
चुप्पी के कारण आज देश धर्मांधता, जातीयवाद, विषमता, कट्टरवाद, आर्थिक व सामाजिक
असमानता आणि धर्मवादी गुंडों के चुंगुल
में फसते जा रहा है।
निर्भया
कांडपर मेणबत्तिया लगाकर
लांगमार्च निकालकर सरकार को नया कानून बनानेके लिए बाध्य करनेवाले नागरी समाज ने
कभी भी महाराष्ट्र के खैरलांजी कांडपर न मेणबत्तीया जलाई और न अत्याचारीयो पर शिक्षा के लिए मार्च
निकाला। मध्यप्रदेश के महोईकाला में दलित महिला
सरपंच को विवस्त्र करके घुमाया गया था। कोडीयामकुलम में
थेवास समाजके लोगोने दलितोंके कूवोमें जहरीली किडनाशके डाली गई थी। हरियाणाके सुनपेड में
दो निष्पाप
दलित बालकोंको
जिन्दा जलाया गया। मध्य
प्रदेश में गोरक्षक
के मारने के डर से दो युवक नदी में कूद पड़े और वही उनकी मृत्यु हो गयी। उत्तर
प्रदेशमें दो
बहनोपर बलात्कार कर उन्हें पेडपर लटका दिया गया था। तब यह तथाकथित नागरी (सभ्य)
समाज चिल्लाया क्यों नहीं? तब क्या उन्हें सिर्फ दिल्ली की निर्भय्या दिखाई दी? क्या
वह एक उच्च वर्ग से आती है, इसीलिए उसपर ध्यान दिया गया? क्या अत्याचारी युवक
अल्पसंख्य या निचले समाज के थे इसिलए ऐसा किया गया? अगर ऐसा
नहीं था, तब दलितो के बच्चे और महिलाओ पर होनेवाले अत्याचारों के समय आप चुप क्यों थे? क्या है,
आपके सभ्य समाज के लक्षण? यह आपको स्पष्ट करना होगा।
आप सभ्य लोग हमेशा मोर्चा निकालने में माहिर होते हो और टीव्ही पर दबंगाई
दिखाते रहते हो। पर गुजरातके उनामें (जुलै
११) दलित युवको पर हुए अत्याचारो
पर क्यों चुप्पी साध ली थी? कहा है अब वे सभ्य लोग? कही जगहों पर दलित व अल्पसंख्य लोगोंको मारने के बाद उनके मुह में बदमाश गोरक्षको
ने पेशाब कर मानव विष्ठा डाली, तब आप सभ्य लोग बदमाश गोरक्षक और बजरंगी के खिलाफ उठ खड़े क्यों नहीं हुए? क्या यह बड़ा अत्याचार नहीं था? सरकर ने इन
संघीयो के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की? शतकोंपूर्व के पुराने कानून लाकर देश के
लोगो को विभाजित करनेवाले संघ की कार्यप्रणाली पर आप सभ्य लोग बोलते क्यों नहीं?
अगर आप संघ से इतने डरते हो, तब आप ने अपनी “सभ्यता” का नकाब उतार देना चाहिए।
दादरीमें मोहम्मद अखलाखको संघीय गोरक्षकोने गाय का मास रखने के कारण जिंदा मार दिया। वह मानवता पर बड़ा कलंक था। तब नागरी समाज के लोगोने निषेध के तौरपर अपने पुरस्कार सरकार को वापस
किये। लेकिन ऊनाकांड पर प्रतिक्रिया के तौर किसी भी साहित्यिक, कलाकार और वैज्ञानिक ने अपने पुरस्कार वापिस
नहीं किये। इससे, सभ्य कहनेवाला समाज भी जातियोमे उलझा हुवा
दिखता है। यह नागरी समय समय पर अपना रंग बदलता है। दलितोके जीने या मरने से इन्हें कोई लेना देना नहीं है। रोहित वेमुला के जातिपर ही प्रश्न निर्माण कर बंडारू
दत्तात्रय और स्मुर्ती ईरानी पर होनेवाली कार्यवाही रोकी गई। तब इस नागरी समाज के लोगोने अट्रासिटी कानून को और
कडा करने के लिए क्यों नहीं कहा? दलितोंके प्रश्नपर संसद में चर्चाए तो होती है,
लेकिन वह नाकामी साबित हो रही है। अब संसद ढोंगी लोगोंका केवल चर्चास्थान बन गया है। इसीलिए इस तथाकथित सभ्य समाज को मानवतावादी कैसे कहे? अगर आप केवल
दिखावा करते हो तो, तब ऐसे ढोंगियों की हम ऐसोतैसी क्यों न करे?
कुछ टीव्ही चेनेल्सने दादरी और जेएनयु
(कन्हैया कुमार) प्रकरणमें अपना टीव्ही स्क्रीन काले रंग में ढक दिया था। घुस्सेवाली बड़ी बड़ी चर्चाए हो रही थी। लेकिन दलितोंके प्रश्नोपर कही भी बड़ी चर्चा दिखाई नहीं दी। टाईम्स नाऊ के एंकर अर्णव गोस्वामी
कह रहे थे, ऐसे अत्याचार तो मायावतीके कालखंड में भी होते थे। दूसरे जनता दल (यू) के खासदार अजय
अलोक टीव्ही वर चर्चा करते समय बाळासाहाब (प्रकाश) आंबेडकर को उनका धर्म पूछ रहे थे। इन सभ्य लोगोंकी असभ्यता स्पष्ट तौरपर दिखाई दे रही है। आप सिर्फ दलितोके अत्याचारो
को देखो और सुनो, बोलो मत। बोलोगे तो मारे
जाओगे।
एक इशारेके तौर पर इसे देखा जा सकता है।
केवल गुजरात ही नहीं पुरे देश में संघ (आरएसएस) ने दलितोंको मुसलमानों के
विरोध में उपयोग किया है। गोधराकांड हो या बाबरी मस्जिद को गिराना हो, या दंगे कराने हो, दलितोंका
शिखंडी के तौर इस्तेमाल किया गया। इस्तेमाल करो और फेक दो यह इनकी की निति रही है,
यह गुजरात में सिध्द हो चूका है। संघके इस निति को वंचित समाज के लोग कब समझेंगे? अब देश
के वंचितोने मुक्ति का मार्ग ढूंढना चाहिए। स्वर्ग, नरक, भाग्य और पापपुण्य जैसे बोगस मानसिकता
के बाहर निकलना चाहिए और अत्याचारवादी धर्म को फेक देना चाहिए। कबतक अन्याय सहेंगे? अब शोषकोंको शोषितोने पाठ सिखाने की जरुरत है। महाराष्ट्र
के भीमाकोरेगावके युध्दमें पाचसौ दलितोने पेशवा के पच्चीस हजार सैन्य को हराया था। आपका शौर्य का इतिहास है,
गोरक्षकोंसे उन्ही के तरिकोसे मुकाबला करना होगा। नागरी (सभ्य) समाज आपके सरक्षण के लिए खड़ा होगा, आपके अधिकार की लढाई लडेगा, आपके शोषणमुक्ति
का एल्गार बनेगा इस आशा को छोड़ देना चाहिए क्योकि भारत का यह नागरी (सभ्य) समाज
भेडियोंके समूह जैसा है। इसीलिए वंचित समाज को खुद ही अपना रक्षक बनना होगा। अपने तरिकोसे स्वतंत्रताका
नया उषाकाल निर्माण करना होगा।
बापू राऊत
९२२४३४३४६४
E mail:bapumraut@gmail.com
bapu, vada pav khayega kya?
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