भारत के इतिहास में महाकवी अश्वघोष का एक महत्वपूर्ण स्थान
है। किंतु भारतीय जनमानस अश्वघोष के ज्ञानसंपदा से अनभिज्ञ है। इसका मुख्य कारण उनके
साहित्यरचना को इतिहास एंव प्रादेशिक भाषा साहित्य में उनको स्थान न मिलना है। महाकवि
अश्वघोष की रचनाओने कालीदास एंव तुलसीदास से अधिक उचि पहाड़िया को छुवा है। लेकिन उनका
अपराध यही है की, उन्होने ढकोसले कल्पित कल्पनाओंकों
ठुकराकर वस्तुस्थितिया और वैज्ञानिक तर्कपर अपनी बात रखी थी। उन्होने लोगोंकों आस्था
एंव श्रध्दामे नहीं डुबाया। अगर वे ऐसा करते, तब उन्हे कालीदास
एंव तुलसीदास से कई अधिक उचा स्थान मिलता! क्योंकि भारतके लोगोंका मनमस्तिष्क अपरिपक्व है। वह खुद सोचना नहीं चाहता,
बल्कि केवल झूठी कहानिया सुनना चाहता है। आज भी वह बाल्यावस्था में
है।
इत्सिंग एंव ह्यू
एनत्संग जैसे विश्वविख्यात प्रवासी विद्वानोने अश्वघोष के विद्वता के प्रशंसक रहे है। सँम्युअल बिल ने सबसे
पहले अश्वघोष पर अनुसंधान किया। उन्होने वर्ष 1883 में अश्वघोष पर चीनी भाषा में लिखे साहित्यका अनुवाद
किया। अश्वघोष कृत बुध्दचरित्र का वह पहला अनुवाद था। बोथलिंग ने भी अश्वघोष पर अध्ययन
किया। अश्वघोष साकेत (अयोध्या) के निवासी थे। वे महान तार्किक, दार्शनिक, कवि और विद्वान थे। अश्वघोषको संस्कृत
नाटक के जनक और कालिदास (5 वीं शताब्दी) से बड़ा कवि माना जाता है। उन्होंने काव्य
के रूपमें संस्कृत कविता की शैली को लोकप्रिय बनाया।