Sunday, June 20, 2021

मराठा आरक्षण पर गरमाई महाराष्ट्र की राजनीति


 “एक मराठा लाख मराठा” इस बैनर तले महाराष्ट्र के कोने कोने से मराठा जाती को आरक्षण मिलने के लिए मोर्चे निकाले गए थे। मराठोंके मोर्चे इतने बड़े थे की, आरक्षण विरोधी एंव इस क्षेत्र के सामाजिक वैज्ञानिक भी अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए घबराते महसूस कर रहे थे। उन्हे लग रहा था की हमे मराठा विरोधी कहा जाएगा। इस स्थिति में महाराष्ट्र सरकार द्वारा स्थापित गायकवाड कमीशन के निष्कर्ष एंव शिफारस पर मराठा आरक्षण अधिनियम 2018 पास किया गया। इस अधिनियम पर कुछ संस्थाए एंव वकीलो द्वारा उच्च एंव सर्वोच्च नायालयोमे याचिकाए दायर की गई। सर्वोच्च न्यायालयोंके चार जजो द्वारा सुनवाई के बाद मराठा आरक्षण अंधिनियम 2018 को निरस्त किया गया। तब से महाराष्ट्र की राजनीति एंव सामाजिक स्थितिमे बदलाव के हालात दिखने लगे है।  

मराठा आरक्षण का इतिहास: भारत सरकारने पहिला राष्ट्रीय आयोग काका कालेलकर (1955) के अध्यक्षता में स्थापित किया था। कालेलकर आयोगने महाराष्ट्र में ब्राह्मण जाती के साथ मराठा जाती को भी शासक जाती कहकर मराठोंको मागास जाती का दर्जा देने से इन्कार कर दिया था। 31.12.1979 मंडल कमीशन की स्थापना की गई। मंडल कमीशन ने मराठा जाती को प्रगत और प्रभुत्ववाली जाती के श्रेणी में डालकर उनका प्रतिशत भारतकी जनसंख्या के मुक़ाबले 2.2 प्रतिशत चीन्हीत किया।  मंडल कमीशन ने ओबीसिकी जनसंख्या को कुल आबादी के 52 प्रतिशत (हिंदू ओबीसी 43.70+ मुस्लिम ओबीसी 8.40 प्रतिशत) घोषित किया। केंद्र सरकार के निर्देशो के बाद पिछड़ी जातियोंकि अनुसूची बनानेके लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा बी.डी.देशमुख कमिटी (1964), खत्री कमीशन (1995), आर एम बापट कमीशन  (2008) बनाया गया  था। इन राज्य कमिशनोंकों कभी भी मराठा जातियोंमे  आर्थिक, सामाजिक एंव शैक्षणिक पिछड़ेपन की झलक या तथ्य नहीं दिखाई दिए। इसीलिए उन्होने मराठोकों ओबीसी जातिका दर्जा नहीं दिया। 13.08.1967 को केंद्र ने राज्यवार ओबीसी जातियोंकि सूची जाहीर की। यह सूची जाहीर होने के बाद  मराठा नेताओने मराठा जातियोंकों ओबीसी में सम्मिलित करने, या उन्हे कुनबी जाती का दर्जा देने की माँग करना चालू किया था।

मराठा जातियोंकों पिछड़ा दिखाने की होड में कमिशनों की स्थापना :

बापट कमीशन पर मराठोंको पिछड़ा दिखाने के लिए दबाव डाला गया था। लेकिन उनके मन का परिवर्तन नहीं हुवा। इसीलिए कमीशन के अस्तित्व रहने के बाद भी मराठोंकों पिछड़ा दिखाने के लिए नारायण राणे कमेटी का गठन 2014 में किया गया। राणे कमिटीने  मराठोंकों आर्थिक, सामाजिक एंव शैक्षणिक पिछड़े का करार देकर 16 प्रतिशत आरक्षण देने का महाराष्ट्र सरकार को सुझाव दिया। लेकिन उच्च न्यायालने सरकार के इस आरक्षण को स्थगित कर दिया। फिर, 2017 को महाराष्ट्र सरकारद्वारा   न्या. एम.जी.गायकवाड को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बना दिया। इस आयोगद्वारा 2018 को मराठा जातियोंकों  सामाजिक एंव शैक्षणिक पिछड़ेपन का दर्जा देकर उन्हे नोकरियोंमे एंव शैक्षणिक संस्थाओमे आरक्षण देने की सिफ़ारिश की।  महाराष्ट्र सरकारद्वारा 30.11.2018 को मराठा आरक्षण 2018 कानून संमत किया गया।

मराठोंकी सामाजिक एंव शैक्षणिक स्थिती: मराठा आरक्षण 2018 के कानून को राज्य एंव उच्चतम  न्यायालयोमे आव्हान दिया गया। लंबे वादविवादों के बाद सर्वोच्च न्यायालयोंके चार जजो द्वारा महाराष्ट्र सरकार के इस कानून को निरस्त किया गया। निर्णय के उपरांत उच्चतम न्यायालय ने कुछ तथ्य सामने रखे है। उन्होने स्पष्ट तौरपर कहा की, मराठोंके लाखोंकी संख्या में मोर्चे, रास्ता रोको जैसे आंदोलन और मराठा नेताओंके दबाओ के कारण सरकार ने आरक्षण का कानून बनाया गया। अगर मराठा जातियोंकों पिछड़ी जातियोंमे सम्मिलित किया गया, तब ऐसे स्थितिमे वे अपनी शिक्षा, आर्थिक संपदा और राजनीति के प्रभावसे ओबीसी का आरक्षण हजम कर लेंगे।

महाराष्ट्र सरकार एंव गायकवाड कमीशन ने 01.08.2018 तक के खुले वर्ग के कोटोसे मराठोंके नोकरियोंके आकडे पेश किए है।. उसमे, राज्यसेवा परिक्षाद्वारा खुले वर्ग से मराठोंका मंत्रालयीन श्रेणी का प्रतिशत श्रेणी ,बी,सी और डी के लिए 37.5%, 52.33%, 52.1% और 55.55 प्रतिशत था।वही लोकसेवा आयोगद्वारा भरे हुए मराठोंका, आयएएस मे 15.52%, आयएफएस में 17.97% और आयपीएस के लिए 27.85 प्रतिशत रहा है। इसके साथ सामान्य प्रशासन / सार्वजनिक क्षेत्र और बाकी क्षेत्रमे ए श्रेणी के लिए 33.23%, बी के लिए 29.03%, सी के लिए 37.06% तथा डी वर्ग के लिए 36.53 प्रतिशत था। उच्चतम न्यायालय के अनुसार यह प्रमाण किसी भी समाज के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का संकेत नहीं हो सकतामहाराष्ट्र में मराठा राजनीति एंव आर्थिक संपन्नता प्राप्त समाज है।  सहकार से लेकर कारखानदारी  एंव शिक्षा के क्षेत्र भी उनके हात में है।शहर से गावतक उनका प्रभुत्व है। फिर भी वे खुद को पिछड़ोका लेबल लगाने के लिए बेताब है। गायकवाड कमीशन ने उन्हे शूद्रो का टैग भी लगा दिया है। 

आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा लाँघने की सलाह

गायकवाड कमीशन द्वारा मराठोंको पिछड़े जातियोंमे सम्मिलित कर आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा लाँघने की सलाह दी गई । इसके लिए मराठोंको पिछड़ा घोषित कर उनके साथ अनुसूचित जाती, जनजाति और ओबीसी के जनसंख्या को मिलाकर पिछड़ो की जनसंख्या 85 प्रतिशत दिखाया गया। अनुसूचित जाती एंव जनजाती  के कुल 22 प्रतिशत जनसंख्या को घटानेसे पिछड़ों की कुल जनसंख्या 63 प्रतिशत रह जाती है। 50 प्रतिशत आरक्षण से अनुसूचित जाती एंव जनजाति का 21 प्रतिशत आरक्षण घटानेसे केवल 29 प्रतिशत आरक्षण बच जाता है। अब 63 प्रतिशत पिछड़ो की जनसंख्या को केवल 29 प्रतिशत के आरक्षण में सम्मिलित करना विसंगत होगा । इसीलिए, इस विशेष असाधारन परिस्थिती को देखते आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को तोड़कर मराठोंको आरक्षण देना चाहिए। गायकवाड कमीशन के इस दलील को उच्चतम न्यायालय ने इंद्र सहानी और नागराज केस का संदर्भ देकर मानने से इन्कार कर खारिज कर दिया।

आर्थिक आरक्षण का मराठा कोटा: मराठा आरक्षण अब केंद्र सरकार और न्यायालय का विषय बन गया है, लेकिन महाराष्ट्र में मराठा समुदाय और विरोधी पार्टियोने इसे रास्ते की लड़ाई बना ली है। “एक मराठा लाख मराठा” नामसे आंदोलनो की तैयारिया चल रही है। इससे रास्ता निकालने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने मराठो के लिए 10 प्रतिशत आर्थिक आरक्षण की घोषणा की है। लेकिन यह एक अस्थाई प्रावधान है, जिसे न्यायालय में चुनौती दी जाएगी।

ओबीसी के कोटे मे हिस्सेदारी चाहिए:

न्यायालय 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण के लिए तैयार नहीं है। और केंद्र सरकार आरक्षण की मर्यादा 50 प्रतिशत से अधिक करने के लिए तैयार नहीं होगा, इस सुगबुगाहट से मराठा समाज से सबंधित मराठा सेवा संघ और संभाजी ब्रिगेड ने मराठा जातियोंके लिए ओबीसी आरक्षण के कोटे से आरक्षण की मांग की है।  कोल्हापूर के संभाजी राजे (भाजपा की तरफ़से राज्यसभा सदस्य) मराठा आरक्षण की आड़ में खुद को मराठा नेता साबित करने में जूटे है।

अब महाराष्ट्र में क्या होगा?

भारतीय जनता पार्टी परोक्ष और अपरोक्ष मराठा आंदोलन मे भाग ले रही है। इससे मराठा आंदोलन को ऊर्जा मिलेगी और साथ ही भाजपा को नया मराठा वोटर मिल जाएगा। हो सकता है, कोल्हापूर से भाजपा के  राज्यसभा सांसद संभाजीराजे का एक नया दल स्थापित होगा। ओबीसी भी चाहेगा की, अपने आरक्षण में किसी की हिस्सेदारी न हो। जातिगत जनगणना की ओबीसी की माँग एक नए आंदोलन का रुख कर सकती है। यह सारी मांगे केंद्र सरकारसे जुड़ी है। फिर भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे की अग्निपरीक्षा तो होगी ही! 

लेखक: बापू राऊत,


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