भाजपा जाती की राजनीति नही करता, यह मिथ बिहार चुनाओ मे धाराशाही हुवा। यही नही, भारतीय जनता पार्टी आज भारत की सबसे बडी जातिवादी पार्टी बन गई है। धार्मिक के तुष्टीकरण के साथ साथ जातीवादी समीकरण ने उसे जितनेवाली पार्टी बना दिया है। केवल बिहार विधानसभा के चुनाव ही नहीं, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में हुए उपचुनाओ में भी भाजपा का यही स्ट्राइक रेट और नीति रही है।
बाबासाहेब आंबेडकर के बाद मा. कांशीराम ने भारत के राजनीति
में बदलाव लाने काम किया। बामसेफ के संसाधनो द्वारा पिछड़े और अन्य पिछड़े के राजनीति
को कामयाब किया। लिहाजा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार, दिल्ली, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में सफलता प्राप्त हुई। लेकिन उनके पश्चात बसपा
की राजनीति घसरती गई। सोशल इंजीनियरिंग सत्ता की लालसा में किया गया ढोंग था। इसका
सीधा फायदा भाजपा ने उठाया। बसपा के पिछड़े और अन्य पिछड़े वोटबँक को सेंध लगा दिया। हर जाती का सेल बनाकर उसे
भाजपा के साथ जोड़ दिया। यह भाजपा की नई एंव पूरक वोटबँक है। जो उनके कोअर वोटबँक से
मिलकर विजयी फार्मूला बनाती है। दूसरी ओर पिछड़ो एंव अन्य पिछड़ो में तत्वहीन नए नेता
और पार्टीयोंका निर्माण हो रहा, जिससे पिछड़ो की वोटबँक पूर्णतया
बिखर गई। जनता के लिए सत्ता एंव सरकार बनाना इनका मकसद नहीं,
बल्कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के लिए केवल सत्ता में बने रहना अजेंडा होता है। इन
नेताओ एंव पार्टियोंके साथ सीटो एंव पदो का तालमेल कर भाजपा चुनाओ में बाजी मार रहा
है।
धार्मिक तुष्टिकरन कर हिंदूओंकों को भय एंव कंफ्यूज में रखना
भाजपा और संघ का सुरू से ही अजेंडा रहा है। हिंदू–मुस्लिम, लव जिहाद, पाकिस्तान, गोरक्षा यह भाजपा के हमेशा के लिए चर्चित एंव स्थाई मुद्दे बन गए। चुनाओ में
भाजपा को इससे खासा फायदा होता है। बेरोजगारी, शिक्षा, हेल्थ जैसे मुद्दे धर्म और जाती के सामने हार जाते है। उदाहरण के तौर पर बिहार
विधानसभा चुनाओ को देखा जा सकता है।
चार्ट-1: बिहार विधानसभा 2020 में एनडीए का वर्गनिहाय प्रतिशत
(%) वोट शेयर |
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|
अनु.जाती |
अनु.जमाती |
ओबीसी/ईबीसी |
यादव |
मुस्लिम |
सवर्ण |
भाजपा गठबंधन |
40 |
50 |
50 |
10 |
5 |
60 |
सोर्स: politicalbaba.com |
बिहार के पिछडी जातियोंमे मुख्यत: दलित, आदिवासी, कोयरी और
निषाद जातीया आती है। अन्य पिछड़ोमे कुर्मी, कुशवाहा, यादव मुख्य जातीया है। इनका सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक
विकास नीचे पायदान पर है। तक्ता-1 के अनुसार यह जातीया भाजपा की बड़ी वोटबैंक बनकर उभरकर
आई है। विधानसभा 2020 में भाजपा को अनु.जाती का 40% तथा अनु. जमातीयोंका 50% वोट शेयर
मिला है। वही ओबीसी /इबिसी जातियोंका सहभाग 50% रहा है। यह पिछड़ोंके पार्टियों में
हुए बिखराव के कारण मतदाता भाजपा के झोली में अपना वोट डालकर बाहर निकलता हुए दर्शाता
है। वही सवर्ण जातीया भाजपा की कोअर वोटबँक रही है। भाजपा के लिए उनका वोट शेयर
60% है।
चार्ट- 2: जाती
एंव वर्गनिहाय मतदान प्रतिशत (%) में |
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महागठबंधन
|
एनडीए
|
एलजेपी |
तीसरा
मोर्चा |
इतर |
ब्राह्मण
|
15 |
52 |
7 |
1 |
25 |
भूमिहार
|
19 |
51 |
3 |
<1 |
26 |
राजपूत
|
9 |
55 |
11 |
4 |
20 |
इतर उचि
जाती |
16 |
59 |
<1 |
<1 |
24 |
यादव
|
83 |
5 |
2 |
3 |
6 |
कुर्मी
|
11 |
81 |
3 |
<1 |
5 |
कोयरी
|
16 |
51 |
6 |
8 |
18 |
इतर ओबीसी
/इबिसी |
18 |
58 |
4 |
3 |
18 |
रविदास
|
34 |
27 |
9 |
13 |
18 |
दुसाध/पासवान
|
22 |
17 |
32 |
3 |
27 |
मुशहार |
24 |
65 |
1 |
1 |
8 |
इतर दलित |
24 |
30 |
4 |
7 |
34 |
मुस्लिम
|
76 |
5 |
2 |
11 |
6 |
सोर्स : लोकनीति/सीएसडीएस सर्वे एंव इंडियन
एक्सप्रेस 12 नवम्बर 2020 |
चार्ट 2 के अनुसार महागठबंधन, एनडीए एंव तीसरे मोर्चे (बसपा+पप्पू यादव+उपेंद्र
कुशवाहा+ओवेसी) को मिले जातीय वोट का प्रबंधन
समज सकते है। यादव और मुस्लिम समूह ने अपने वोट महागठबंधन के झोली में डाले। वही उचि
जाती, कुर्मी, कोयरी एंव आर्थिक पिछडोने
एनडीए को वोट किए। रविदास समूह को छोड़ अधिकतर दलित समूह (मूशहार 65%, दुसाध /पासवान 17 % एंव 32%, इतर दलित 30%) ने एनडीए
को वोट किया। तीसरे गठबंधन (पप्पू यादव + बसपा+ उपेंद्र कुशवाह + ओवेसी ) को केवल रविदास
13%, मुस्लिम 11% एंव कोयरी 8% वोट मिले। बाकी दलीत समूहोने इस
गठबंधन को ठुकरा दिया है। बिखरे हुए नेता एंव पार्टियोंने इस खतरे को समजना चाहिए।
सीमांचल में मुस्लिम समूह ने महागठबंधन के बजाय ओवेसी के पक्ष में वोट दिये।
भाजपा हर समुदाय में अपना सपोर्ट बेस बनाने में सफल हुवा है । यह प्रोग्रेसिव्ह पार्टीयोंके लिए नकारात्मक एकता का जवाब है। स्वार्थी नेताओ के लिए यह अनुकूल मौके हो सकते है, लेकिन समुदायो के लिए यह विनाश का कारण बन सकता है। हाल ही में पत्रकार मीना कोतवाल ने बिहार चुनाव के समय कुछ पिछड़ी जातियोंके बारे में रिपोर्टिंग की, जिससे भारतीय समाजव्यवस्था की असलियत दुनिया के सामने आई है। लेकिन इस भारतीय समाज व्यवस्था के आईने कौन समझेगा?
लेखक: बापू राऊत
bapumraut@gmail।com