Friday, March 15, 2019

मान्यवर कांशीरामजी और चुनावी अवसरवादिता


भारतीय जनतंत्र का बड़ा त्यौहार याने संसदीय चुनाव एप्रिल-मई मे होने जा रहा है। 2019 का संसदीय चुनाव एक ऐतिहासिक होगा। ऐतिहासिक इसीलिए की, अगर मनुवाद के समर्थक (भाजपा एंव आरएसएस) इस चुनाव मे बहुमत से जीत हासिल करेंगे उस हालात मे भारत का इतिहास, भारतीय लोकतंत्र और विविधता के पेहराव का चरित्र बदल जाएगा। दूसरा, भारतीय लोकतंत्र को बचाने की ज़िम्मेदारी जिन संस्थाओ और सहिष्णुता के रखवालों की थी उनके आपसी टकराव और स्वार्थ के कारण भारतीय जनतंत्र का पराभूत होना होगा। किसी ने कहा था, अगर भारत की मनुवादी ताकते बहुमत से सत्तापर काबिज होगी तब भारत मे चुनावतंत्र का खात्मा होगा। अराजकता और गुलामी का दौर चालू होगा। इस स्थिति मे अगर बहुजनवादी सोच के मान्यवर कांशीराम होते तब संसदीय चुनावों और गठबंधन का स्वरूप कैसा होता? इसपर मान्यवर कांशीराम साहब के विचारोंकों याद करके उन्हे प्रस्तुत करने का यह एक प्रयास है।  


बाबासाहब के संघर्ष को याद करते हुए, मान्यवर कांशीराम ने कहा था, संघर्ष के लिए पहले खोना पड़ता है लेकिन उस संघर्ष से आनेवाली पीढ़ियो के लिए लंबे अरसे तक का रास्ता आसान हो जाता है और तभी वह वंचित समाज इस देश मे सम्मान की जिंदगी बसर कर सकेगा। उन्होने वंचित घटकोंको को सावधान करते हुए कहा की, उन्हे अपनी शक्तिको पहचानना है तथा किसी की कठपुतली नहीं बनना है। और समय आनेपर अपने शक्ति का परिचय दे। उन्होने आगे कहा, बहुजन समाज इस देश मे बहुतायत होकर भी अल्पजन का गुलाम बन रहा है और उनके जुल्म ज्यादती, अन्याय-अत्याचारो का शिकार रहा है। उन्होने कहा था बहुजन समाज एक जुट हो जाए तो मनुवादी ताकते हार सकती है। वोट के आधार पर ये मनुवादी पार्टिया जीतती रही है, अब उस वोट के आधारपर ही इनको हराना चाहिए।

हम आज देखते है बहुजन समाज की अनेकानेक राजनीतिक पार्टिया है। यह पार्टिया हर चुनावक्षेत्र मे अपने अपने उम्मीदवार खड़ा करती है, जबकि उनका जनाधार समान होता है जिससे उनके वोट इन पार्टियोंके बीच विभाजित हो जाते है, नतीजतन यह सब बहुजनवादी पार्टिया हार जाती है। इस पर कांशीराम साहब ने कहा था, जबतक वंचित समाज के लोग और उनके नेता एकसाथ नहीं आते तबतक वे कभी भी कामयाब नहीं हो सकते। लोगोंकों आगाह करते हुए उन्होने कहा था, अगर न बिकने वाले नेता बनाने है तो उसके पहले आपको न बिकनेवाला समाज बनाना होगा। इसके साथ ही छोटे साधनोका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर बड़े साधनवालोंको पछाड़ना होगा। बाबासाहब ने कहा था की, पोलिटिकल डेमोक्रेसी सोशल डेमोक्रेसी के बिना कामयाब नहीं हो सकती। लेकिन प्रश्न यह उठता है क्या हमने सोशल डेमोक्रेसी को हासिल कर लिया है? इसका सीधा उत्तर “ना” है क्योकि, सोशल डेमोक्रेसी न होने के कारण ही आज भी बहुजन समाज को जाती के आधार पर आपस मे लड़ाया जा रहा है। इसके लिए जिम्मेदार कौन है और निति क्या होगी? इसपर चिंतन होना चाहिए। बहुजनोंको अगर आगे बढ़ना है, तो उन्हे यह काम खुद करना होगा।

आज बहुजन जातिया 6000 जातिया अपनी अपनी जाती अस्मिता के कारण विभाजित है। इसपर मान्यवर कांशीराम कहते है, अगर यह विभाजित बहुजन समाज आपस मे समझौता कर भाईचारा बनाकर संगठन बना लेते है, तो सभी पार्टिया खुद ही खत्म हो जाएगी। कमजोर वर्ग की सबसे बड़ी शक्ति उसका संगठन और भाईचारा होता है। बाबासाहब का संघर्ष केवल कुछ जातियोंके लिए नहीं था। उनका संघर्ष जाती के शिकार 6000 जातियोंके लिए था। जाती का शिकार हुई इन सभी जातियो को एक साथ जोड़कर हम राजनैतिक सत्तापर कब्जा कर सकते है और देश के शासक बन सकते है। इसे बाबासाहब ने मास्टर की कहा है। कांशीरामजी मानते है, बहुजन समाज ही शासक बनकर नए समाज का निर्माण कर सकता है। बहुजन समाज अपने पैरोपर खड़ा हो जाए तो फिर बहुजन की शक्ति और सरकार भी बनेगी।

आज का संपन्न तथा पढ़ा लिखा मध्यमवर्ग स्थायी रूप से बिका हुवा है क्योकि वह अपने समाज की तरक्की की जगह खुद अपनी तरक्की के बारेमे चिंतित रहता है। दूसरी ओर बस्तियोमे रहनेवाला गरीब और कमजोर लोग चुनाव के दिन से 24 घंटे पहिले केवल चंद रुपयेमें या शराब की बोतल के ऐवज मे बिक जाते है।  इस वोट के लूट को रोकना बेहद जरूरी है। इसके लिए शोषित समाज के  पढ़े लिखे वर्गने समाज की समस्याओंकों सुलझाने के लिए आगे आना चाहिए, तभी समाज मे बदलाव की प्रक्रिया शुरू होगी। कांशीराम जी कहते है, देनेवाला समाज कौन होता है? केवल शासक ही दे सकता है। हमे शासक बनना है । केवल यही एक उपाय है। 

आज के चुनावी दौर कांशीराम साहब की भूमिका क्या होती? कांशीराम साहब ने अपने जीवनकाल में गठबंधन बनाकर सत्ता भी हासिल की थी. उन्होंने खुद कहा था, मै भारत का सबसे बड़ा “अवसरवादी” लीडर हु । वे चुनावी गठबंधन बनाते केवल समाज के फायदे के लिए और अपनी पार्टी को आगे बढाने के लिए। कुटनितिज्ञता की वे एक मिसाल थे । कांशीरामजी को अपना नायक माननेवाली पार्टिया और संघटनाए उनकी सोच को भूल गए। इनका मकसद और विचार एक है लेकिन उससे ज्यादा उनमे बिखराव है। मान्यवर कांशीराम की अवसरवादीता भाजपा और आरएसएस ने अपनाई इसीलिए वे सत्ता के शिखर पर है, वही उनके चेलोने उनके “अवसरवाद” को ऐषोआराम में बदल दिया।  

आज हमे ज्यादा जरूरी क्या है? एमएलए या एमपी बनना या बहुजनोंका मुव्हमेंट चलाना? यह सत्य है, हमारे हितो की रक्षा के लिए संसद या विधानसभा यह सही जगह है लेकिन संसद मे जाने के लिए भाजपा एंव कांग्रेस द्वारा कौनसे लोगोंकों टिकट मिलता है? क्या वे वहा समाज के प्रश्न उठाते है? इसका उत्तर केवल नकारात्मक है, इसके लिए अपने खुद के पार्टीका गठन कर मजबूत संगठन बनाना चाहिए। बाबासाहब आंबेडकर ने एक पार्टी और एक नेता का सुझाव दिया था । लेकिन दुर्भाग्यवश बहुजनो की कई पार्टिया और नेता है। वंचित-बहुजन नेता भाजपा या कांग्रेस में जाकर झोली उठाने का काम करेंगे लेकिन अपनेही नेता के छत्रछाया में रहना पसंद नहीं करते।
आज के भारत पर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने  हिंदुत्ववाद और मनुवाद की चादर  चढ़ाई है। अल्पसख्यंक समुदाय का राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ बहुसंख्यांक बहुजनोको धर्म और संस्कृति का सहारा लेकर भ्रमित कर रहा है । इस असहिष्णुता के दौर में संविधान खतरेमे है । लेकिन “संविधान खतरेमे है” का नारा देनेवाले नेता चुनावों में संघ और भाजपा को हराने के लिए इकठ्ठा नहीं होते। केवल चुनाव सत्ता का दरवाजा (द्वार) है लेकिन वे इस मौके को भी छोड रहे है । इनकी अवसरवादीता चरम सीमा पर है।

आज लोग अनेक वादो जैसे साम्यवाद, नक्षलवाद, मार्क्सवाद और समाजवाद मे फसे हुए है, लेकिन इन सबका बाप मनुवाद इन सभी वादोंकों नष्ट कर देता है। कांशीरामजी कहते है, जिस देश मे मनुवाद है उस देश मे कौनसा भी वाद सफल नहीं होता, क्योकि कोई भी वाद जाती की सच्चाई को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। बाबासाहब ने केवल इस मनुवाद और जातिवाद को पहचाना था। मान्यवर कांशीराम के विचार और नारे याद आते है, वे कहते थे, जो समाज हुक्मरान होता है, उसके साथ जुलुम ज्यादती नहीं होती। जातिगत आधार पर तोड़े गए लोगोंकों जोड़ने से जनाधार बनता है। वे यह भी कहते थे जब वंचित लोग मुसलमानों के बारेमे और मुसलमान वंचिततोंके बारेमे सोचना शुरू करेंगे तब मनुवादी ताकते इस देश से गायब हो जाएगी। अल्पजन से बहुजन बनाना और बहुजन से को हुक्मरान बनाना कांशीराम साहब के  जिंदगी का मकसद था। वे चाहते थे भारत में राजनीतिक अस्थिरता बने रहे ताकि बहुजन समाज जल्दी से सत्ता मे हिस्सेदार बन सके।
कांशीराम साहब कहते थे, कर्मचारी राजनीति मे एक्टिव नहीं हो सकता लेकिन वह राजनीति को अपने समाज के लिए इफेक्टिव बना सकता है। उन्होंने बामसेफ की स्थापना की थी, जो एक नियंत्रक के तौर पर बना था लेकिन बहुजन समाज पार्टी के निर्माण के पश्चात उन्होंने बामसेफ पर से अपना नियंत्रण छोड़ दिया यह उनकी बड़ी राजनीतिक, सामाजिक एंव सांस्कृतिक भूल थी। अगर वे बामसेफ को मदर आर्गेनाईजेशन बनाकर उसका मुखिया बने रह जाते और उसके द्वारा पार्टी और अन्य संघटनो पर नियंत्रण रखते तब शायद आज के भारत का राजनीतिक, सामाजिक एंव सांस्कृतिक इतिहास कुछ अलग होता।  

बापू राऊत
922434346

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