अब दुनिया में एक नए विषय पर चर्चा हो रही है। इसपर दुनिया
भर से आलोचना भी हो रही है। वह विषय है हागिया सोफिया। हागिया सोफिया एक कॅथेड्रल (चर्च) का नाम
है। यह तुर्की के पूर्वी शहर कॉन्स्टेंटिनोपल शहर के मध्य में 532 में बनाया गया
था। यह गिरजाघर (चर्च) दुनिया के सबसे पुराने और भव्य गिरिजाघरों में से एक था।
हागिया सोफिया का अर्थ है "पवित्र विवेक"। इस गिरजाघर की यात्रा रोमांचक
है। पहला, उसका निर्माण गिरजाघर स्वरूप में था, बाद में उसे मस्जिद में रूपांतरीत किया गया। फिर, उसी
मस्जिद को म्यूझियम में बदल दिया गया था। अब एर्दोगन की तुर्की सरकार ने उसे फिर
मस्जिद में परिवर्तित करने की घोषणा की है। तुर्कस्थान का यह वाकया भारत के
अयोध्या विवाद के समकक्ष दिखाई देता है। मंदिर के लिए आंदोलन द्वारा बाबरी मस्जिद
का विध्वंस बादमे अदालत का फैसला। इस दृष्टि से, तुर्कीके हाज़िया सोफिया का
मामला और अयोध्या विवाद के बीच अधिक समानताएं दिखती हैं।
शानदार हागिया सोफिया को 537 में बीजान्टिन सम्राट
जस्टिनियन के आदेश से बनाया गया था। जब कैथेड्रल बनाया गया था, तब कॉन्स्टेंटिनोपल
बीजान्टिन रोमन साम्राज्य की राजधानी था। यह शहर पूर्वी रोमन साम्राज्य के लिए
महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था। कॉन्स्टेंटिनोपल को भारतीय पाठ्यक्रम में भी
पढ़ाया जाता है। यह गिरजाघर लगभग 900 वर्षों तक पूर्वी रूढ़िवादी चर्च का मुख्यालय
था।
1453 में तुर्क सुल्तान मेहमेद द्वितीय द्वारा
कांस्टेंटिनोपल की विजय के बाद, उन्होंने कांस्टेंटिनोपल का नाम बदलकर इस्तांबूल रखा। और
गिरजाघर को मस्जिद में बदल दिया गया। यह लगभग 500 वर्षों तक ओटोमन साम्राज्य का
केंद्र बना रहा। प्रथम विश्व युद्ध मे विजय के बाद, दोस्त राष्ट्रोने 1923 में ऑटोमन
साम्राज्य के कुछ हिस्सों को विभाजित कर दिया। मुस्तफा कमल पाशा अतातुर्क, एक युवा तुर्क, मित्र राष्ट्रों की
सेनाओं के खिलाफ लड़े। 29 अक्टूबर 1923 की संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद, मुस्तफा कमाल पाशा ने एक
स्वतंत्र तुर्की गणराज्य की स्थापना की। और वह स्वतंत्र तुर्की के पहले राष्ट्रपति
बने।
हालाँकि कमल पाशा एक तानाशाह थे, लेकिन उनकी नीतियां
लोकतंत्र, मानवतावाद और
धर्मनिरपेक्षता पर आधारित थीं। उन्होंने तुर्की का आधुनिकीकरण किया। देश का औद्योगीकरण करते हुए, उन्होंने देश भर
में सरकार के स्वामित्ववाले कारखानों और रेलवे नेटवर्क की स्थापना की। नए कानूनों
ने पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता स्थापित की। तुर्की के लोग उन्हें प्यार से 'अतातुर्क' कहते है, जिसका अर्थ है 'तुर्की के पिता'। कमल पाशा ने तुर्की को दुनिया का एकमात्र ऐसा राज्य
बनाया जो मुस्लिम-बहुल होने के बावजूद सरकारी कार्यक्रम में किसी भी मुस्लिम
प्रतीक को कोई स्थान नहीं दिया । यद्यपि दुनिया में अन्य लोकतंत्र, जैसे कि अमेरिका और
भारत, खुद को
धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक कहते हैं, लेकिन वे देश के मुख्य
धर्म और उसके प्रतीकों को सरकारी कार्यक्रमों और प्रशासन में हस्तक्षेप करने से
रोकने में अक्षम ही रहे। इसी अवधि के दौरान, कमल पाशा ने
महिलाओं पर से धार्मिक प्रतिबंधों को हटा दिया और उन्हें वोट का अधिकार दिया। तुर्की
मुस्लिम महिलाओं को पश्चिमी कपड़े पहनने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इसके विपरीत, अमेरिका और भारत
में महिलाओं पर अलग-अलग धार्मिक प्रतिबंध थे। उनकी शिक्षा के विरोध के साथ, बालविवाह, सतीप्रथा और विधवा
विवाह प्रतिबंध जैसे धार्मिक शोषण चल रहे थे।
1934 में, मुस्तफा कमाल
पाशाने धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक के तौर पर चर्च-परिवर्तित मस्जिद, हागिया सोफिया को "म्यूझियम" में बदलने का निर्णय लिया। नए कानून के तहत, हागिया सोफिया में
नमाज़ पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया और इसे सभी धर्मों के लोगों के लिए खोल दिया। यह म्यूझियम दुनिया भर के
पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण बन गया था। संग्रहालय को यूनेस्को द्वारा विश्व
विरासत स्थल घोषित किया गया। ऐसे एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष नेता की 1938 में
मृत्यु हो गई।
कल तक, तुर्की सरकार, जो कमल पाशा के
धर्मनिरपेक्ष और मानवतावादी सिद्धांतों पर चल रही थी, अचानक म्यूझियम को
मस्जिद में बदलने का फैसला किया। तुर्की उच्च न्यायालय ने छठी शताब्दी के
बीजान्टिन हागिया सोफिया के "म्यूझियम" की स्थिति को रद्द कर दिया है।
यह केवल सरकार के निर्णय के लिए अदालत की सहमति थी। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप
तईप एर्दोगन ने घोषणा की है कि मुसलमानों को हागिया सोफिया में नमाज़ अदा करने की
अनुमति दी जाएगी। तुर्की के इस फैसले की अंतरराष्ट्रीय स्तरपर कड़ी आलोचना हो रही है।
दुनिया भर के ईसाई भी हागिया सोफिया की स्थिति को बदलने
के विचार पर एर्दोगन से नाराज हैं। इससे इस्लाम और ईसाई विरोधी सामना होने का खतरा
है। रूसी रूढ़िवादी चर्च सहित दुनिया भर के चर्चों ने इसका विरोध किया और इसे "पूरी
ईसाई सभ्यता के लिए खतरा" बताया। यूनेस्को ने इस घटना को
"अफसोसजनक" बताया और कहा कि इसकी समीक्षा अगले सत्र में विश्व धरोहर
समिति द्वारा की जाएगी। यूरोपीय संघ, अमेरिका और रूस ने
भी तुर्की सरकार द्वारा "हागिया सोफिया की स्थिति बदलने" के फैसले पर
खेद जताया है। वही अरब के कुछ समूह ने फैसले का स्वागत किया, फिलिस्तीन के हमास ने इसे दुनिया के मुसलमानों
के लिए गर्व का क्षण कहा।
दुनिया के लिए वर्तमान समय "आतंकवादी
राष्ट्रवाद" से घिरा हुवा है । कुछ सरकारे बेरोजगारी, महंगाई और असंतोष
को दबाने के लिए राजनीति में धर्म और उसकी मान्यताओं का अफीम की तरह इस्तेमाल कर
रहे है ताकि देश की सत्ता हात से न सटक जाए और सत्ता में बने रहे । दूसरों के पवित्र स्थलो को अपने बताकर कट्टरवाद की खेती को
बढ़ाकर धार्मिक उन्माद पैदा किया जा रहा है। तुर्की में, राष्ट्रपति एर्दोगन
ने बेरोजगारी, मुद्रास्फीति और
असंतोष के कारण सत्ता खोने के डर से देश में इस्लामी कट्टरवाद को हवा दी है। डर के इस भावना से उसने हागिया सोफिया को वापस मस्जिद में बदलने का
फैसला किया है। सत्ता खोने के डर से ऐसे फैसले देश को गृहयुद्ध की ओर धकेल देते
हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि, आज दुनिया के सामने तुर्की का जो उदाहरण आया है, वह "नए आतंक का राष्ट्रवाद और
कट्टरवाद" का मॉडल है। अतातुर्क मुस्तफा कमाल पाशा के मानवतावाद और
धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को उसके ही देश में नष्ट किया जा रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण
है।
बापू राऊत
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