इन चुनाओमे सबसे ज्यादा फायदा केजरीवाल को हुआ है। दिल्ली नगर निगम में बीजेपी को हराकर एमसीडी पर कब्जा करना और गुजरात विधानसभा में सफलता के कारण आम आदमी पार्टीको राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलना, एक बड़ी जित है। उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा राज्यों में हुए चुनावों के नतीजे मिले-जुले रहे हैं और नतीजों से साफ है कि, किसी भी राजनीतिक दल के लिए ख़ुशी की स्थिति नहीं है। मोदी सर्वशक्तिमान नहीं हैं, लेकिन अगर विपक्ष एकजुट होकर नहीं लड़े तो 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को हराना मुश्किल होगा. यह इन परिणाम से रेखांकित किया है।
गुजरात
विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी ने 156 सीटें जीती हैं उनका और कुल
वोट प्रतिशत 56.2 रहा है। यह अनुपात 2017 (49.1 प्रतिशत) से 7.1 प्रतिशत अधिक है। और इनमे 57 अतिरिक्त सिटोंका इजहार हुवा हैं।
कांग्रेस पार्टी, जो मुख्य विपक्षी दल है,
2017 की तुलना में 60 सीटों के कमी के
साथ केवल 17 सीटें जीतने में सफल रही। इतना ही नहीं, वोट प्रतिशत घटकर 14.1 रह गया। कांग्रेस
की इस हार में, आम आदमी पार्टी की अहम भूमिका नजर आ रही है। गुजरात
में 2017 के विधानसभा चुनाव में महज 0.1 फीसदी वोट हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी
ने 2022 के चुनाव में अपने 5 उम्मीदवारों को जीत दिलाकर 12.92
फीसदी वोट हासिल किए है। इतिहास में यह दर्ज हो गया कि, गुजरात के लोगोने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया।
राजनीति में विचारधारा का बहुत महत्व है। लेकिन केजरीवाल के रुख के चलते, इस
पार्टी पर बिना विचारधारा वाली पार्टी होने का आरोप लग रहा है।
बहुजन समाज पार्टी को केवल 0.5 प्रतिशत वोट मिले, वही ओवीसी के
एमआईएम को केवल 0.29 प्रतिशत वोट मिले और इनका कोई भी
उम्मीदवार नहीं जीत पाया।
एक अन्य
राज्य, हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता
पार्टी की सरकार थी। लेकिन इस राज्य
में कांग्रेस ने भाजपा का हराकर जीत हासिल की। कांग्रेस को 43.9
फीसदी वोटों के साथ 40 सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि भारतीय जनता पार्टी
को 25 सीटों के साथ 43 फीसदी वोट हासिल हुए हैं।
2017 की तुलना में उनके वोट प्रतिशत में 5.8 प्रतिशत की गिरावट आकर उन्हें 19 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस
को 2.2 फीसदी वोटो के साथ 19 सीटें अधिक मिली। इसका मतलब, हिमाचल प्रदेश की जनता गुजरात की जनता से अधिक सजग और व्यव्हारिक है। उन्हें धर्म से अधिक अपने समस्याओंका समाधान चाहिए। हिमाचल प्रदेश में भी बहुजन समाज पार्टी
का प्रदर्शन शून्य है और उसे महज 0.35 फीसदी वोट मिले हैं। अगर पार्टी ऐसे ही चलती
रही, तो 2024
के बाद बसपा को राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर अपनी पहचान बनाए रखना
मुश्किल होगा। यदि ऐसा होता है, तो यह कहने का समय आ गया है कि,
कांशीराम ने जो पाया वह मायावती ने खो दिया।
मैनपुरी
लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की डिंपल यादव ने दो लाख मतों के अंतर से जीत
दर्ज की। यह सीट मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद रिक्त हुई थी।
खतौली विधानसभा क्षेत्र में जयंती चौधरी की लोकदल, भाजपा ने रामपुर एंव बिहार के कुरहानी विधानसभा क्षेत्र में सपा और राजद से सीटें छीन लीं। लोकसभा चुनाव में मायावती और
अखिलेश सिंह यादव के बीच गठबंधन के बावजूद बीजेपी के अधिकांश सांसद चुने गए थे । यह
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के गठबंधन के लिए एक
चेतावनी है। छत्तीसगढ़ के भानुप्रतापपुर और राजस्थान के सरदारशहर में कांग्रेस के
उम्मीदवार जीते वही ओडिशा में बीजू जनता दल। इन उपचुनाओ मे मोदी का करिश्मा नजर नहीं आया।
कुल मिलाकर, 2022 के अंत में गुजरात, हिमाचल प्रदेश और अन्य स्थानों के परिणाम मिश्रित रहे हैं। गुजरात में भाजपा की ऐतिहासिक जीत में, प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा परिलक्षित होता है। बीजेपी के कई दिग्गज नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री ओंके काफिले और अमित शाह प्रचार अभियान लगे थे। भाजपा के इस ऐतिहासिक विजय में, गुजरात का विकास नहीं, बल्कि हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण, हिंदुत्व-हिंदू राष्ट्र, लव-जिहाद, बिलकिस बानो मामले में आरोपियों का बरी होना शामिल है। गुजरात भारत का एक ऐसा राज्य है, जहा हिंदू और मुस्लिम ऐसे दो राष्ट्र है। हिमाचल में, प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के अनेक नेताओंने यहाँ खूब प्रचार किया, लेकिन वे बेनतीजा रहे। इसका मतलब यह है की, गुजरात को छोड़कर दूसरे राज्यों में मोदी प्रभावी नहीं होंगे। प्रियंका गांधी ने हिमाचल में कई प्रचार सभाएं कीं, अगर सोनिया और राहुल गांधी ने प्रियंका के साथ गुजरात में ऐसी सभाएं की होतीं, तो नतीजे एकतरफा नहीं होते। गुजरात कांग्रेस के लिए एक फेसलेस राज्य था। गुजरात में केजरीवाल के वादे भाजपा के मतदाताओं को प्रभावित करने में विफल रहे, लेकिन कांग्रेस के मतदाताओं में सेंध लगाने में वे सफल हुए।
लेकिन, गुजरात के विधानसभा चुनावी नतीजे 2024 के लोकसभा के लिए स्पष्ट सन्देश दे रहे है। विपक्षी पार्टियां जितनी बंटकर चुनाव लड़ेंगी, नरेंद्र मोदी को उतना ही फायदा होगा। वे तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में देश की कमान संभालेंगे। मोदी ने अपनी रणनीति के अनुसार मंहगाई, बेरोजगारी, किसान और मजदूरों की समस्याओं के समाधान और हथियार खोज लिए हैं और सही समय पर उनका इस्तेमाल करेंगे। इसके साथ ही वे विभिन्न जाति संगठनों के लोगों को जोड़ रहे है।
मौजूदा परिस्थितियोमे,
क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस को अपना दुश्मन नंबर एक मानती हैं। समय आनेपर क्षेत्रीय पार्टियां बीजेपी से हाथ भी मिला सकते हैं। इन पार्टीयोंके लिए
धर्मनिरपेक्षता, सिद्धांतवादी सोच और जनकल्याण
महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि कुर्सी का अधिक लालच है।
विभिन्न राज्यों के क्षेत्रीय दल और उनके प्रधानमंत्री बनने की मंशा, मुस्लिम बहुल इलाकों में ओवैसी की उम्मीदवारी, बसपा
की तिरछी नीति और सपा के अखिलेश सिंह का रवैया और अब आप
पार्टी का राष्ट्रीय रूप, विपक्षी गठबंधन बनने के लिए रोड़ा है। विपक्षी एकता एक दिवास्वप्न जैसे लगता है। अगर, मौजूदा
हालात ऐसे ही चलते रहे, स्वंय विपक्षी
पार्टियां मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक ले जाएंगी।
बापू राऊत
लेखक एंव विश्लेषक
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