Saturday, October 3, 2020

हाथरस की घटना : आधुनिक इतिहास का काला पन्ना

भारतीय इतिहास का सांस्कृतिक चेहरा कभी भी सफ़ेद नहीं था। वह काला ही था। उसके उफान की लहरे कम अधिक होते रहती है। उत्तर प्रदेश के हाथरस में उसकी एक नई लहर दिखाई दी। जिस राज्य में रामराज के नामसे बेगुनाह लोगोंके अधिकारोपर चोट आती हो, उनके धार्मिक अधिकार नकारे जा रहे हो, वह राज्य किसी लोकतंत्र देश का हिस्सा नहीं हो सकता। उसे फॉसीवादी स्टेट ही कहा जाएगा।स्वतंत्र भारत में जहा लोकतंत्र और कानून का राज है, इतनाही नहीं दलितोंकों शोषण के खिलाफ संवैधानिक अधिकार मिले है। इस परिस्थिति में अगर राज्य और प्रशासन के द्वारा दलितोंके अधिकारो पर चोट की जाती हो, तब वह गंभीर बात हो जाती है। उसका मुक़ाबला गंभीरता और एकजुटता से करना बेहद जरूरी हो जाता है।

हाथरस में दबंगों ने दलित युवती का बलात्कार कर उसकी जीभ काटी एंव कमर की हड्डीया तोडी गई। पोलिस प्रशासन द्वारा आठ दिन तक उसे दुर्लक्षित करना और उसके मृत बॉडी को परिवार की सहमति के बिना में पुलिस द्वारा आग के हवाले कर देना, यह एक बड़ी बर्बरता थी। इस घटना के 24 घंटे बाद बलरामपुरमे और एक 22 वर्षीय दलित महिला की बलात्कार कर उसके पैर काट दिए जाते है और एक दिन के बाद मौत सामने आती है। यह एक बीमारू धर्मप्रणाली और गहरी जड़वाले जातिवाद और कुप्रथाओं के परिणाम हैं।

समय-समय पर देखा है कि, दलित महिलाओका अमानवीय यौन शोषण होता आ रहा है। दलित समुदाय के साथ जाती आधारित अमानवीय व्यवहार होता है और जातीके आधार पर उन्हे दबाया जाता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 2019 के अनुसार, देश में हर दिन लगभग दस दलित महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाता है, जिनमें सबसे अधिक संख्या में उत्तर प्रदेश में रेकॉर्ड की गई है। यह तो ज्ञात आंकडे है, लेकिन ऐसे अज्ञात आंकड़े इससे कही अधिक है, जहा डर और अज्ञानता के कारण मामले दर्ज नहीं किए जाते और पोलिस प्रशासन भी भय दिखाकर तथा रिपोर्ट न लिखवाकर उन्हे भगा देते।

अगर, हाथरस की लड़की ऊँची जाती और धन संपन्न परिवार से होती, तो क्या पुलिस एफआईआर लिखने में आठ दिन लगाती? बार-बार रिपोर्टों के साथ छेड़छाड़ करती, तथ्यों को पलटती, झूठे बयान देती, बलात्कार और हिंसा की बात को झूठ बताती? क्या सरकार उसके मृत बॉडी को माँ बाप के परमिशन के सिवा रात में ऐसे ही जला देते? क्या उसे स्मशान में विधिवत नहीं जलाते, क्या ऐसेही कचरे की जगह उसे जला देते? क्या दलितोंके पास सांस्कृतिक रीति रिवाज के अधिकार नहीं होते ? पोलिस और सरकारने उसे रातोरात क्यों जलाया? क्या सरकार सत्य एंव तथ्य को दबाकर बलात्कारियोंकों बचाना चाहती है? क्या दलित तथाकथित हिंदू धर्म के लोग नहीं है? क्या उनका हिंदुत्व केवल दलितोंकों अपने स्वार्थ के लिए मुसलमान और अल्पसंख्यांक के खिलाफ हिंसा करवाने तक ही सीमित है?  दलीतोने हिंदुत्व की परिभाषा और स्वार्थी लोगो से सावधानी बरतनी चाहिए। क्योंकि समय आने पर  दलित, दलित ही रह जाता है, वो कभी हिंदू नहीं बन सकता। चाहे वह दलित कैबिनेट मंत्री हो या राष्ट्रपति। भारत में उनके अधिकारों एंव स्वाभिमान कों छिना जा रहा है, सरकार को इसका जवाब देना होगा।

अब दलाल मीडिया, भाजपा की आय टी सेल और खुद सरकार दलित महिला पर किए गए रेप पर उलट प्रतिक्रिया देने लगे है। कह रहे है की, दलित महिला पर बलात्कार हुवा ही नहीं। क्या यह साबित करने और दोबारा उसकी टेस्ट न हो उसके लिए ही मृतकको रातोरात जला दिया था? सरकार पीआर कंपनी को हायर कर बलात्कार न होने का प्रसार क्यों करना चाहती है? सरकार बलात्कारित पीड़िता के फॅमिलीको नजरबंद क्यों कर रहा ? हाथरस में 144 की धारा लगाकर विरोधी पार्टियो और मीडिया को प्रवेश करने नहीं दिया जाता, लेकिन ऊंची जातियोंके लोगोंकों पंचायत बुलाने की परमिशन दी जाती है। पीड़ित परिवार के घरपर पोलिस पहरा देकर उन्हे बंधक बनाया जाता है। ऐसा क्यो? सरकारसे पूछता है भारत।   

ऐसी ही एक घटना रामराज्य में घटी थी। रामायण के सर्ग 73 से 76  सर्ग तक इसकी पुष्टि दिखाई देती है। राजा राम ने ब्राह्मणोंके कहने पर शूद्र शंबुक की अपने स्वंय हातोसे हत्या की थी। रामराज में ब्राह्मण बालक के मृत्यु का कारण शंबुक के विद्या सीखने और उसकी तपस्या को बताया गया है? क्या उसके पहले ब्राह्मण मरा नहीं करते थे? राम ने ब्राह्मणों के अधिकार और वर्णव्यवस्था को कायम रखने के लिए अपने ही प्रजा को अध्ययन और संपति के अधिकारसे वंचित कर दिया था। क्या आज के लोकतंत्र में योगी वही करना चाहते है? वर्णव्यवस्था में स्थापित ऊंची जाती के अधिकार और घमंड को कायम रखने के लिए क्या वे शूद्रो एंव दलितो को उनके अधिकार से वंचित रखकर मनुवादी भारत को पुनप्रस्थापित करना चाहते है? हाथरस की घटना से तो यही प्रतीत हो रहा है।

हाथरस की घटना आधुनिक भारत के इतिहास का काला पन्ना है। भारत के वंचित घटकोने दबंगधारी और वर्ण-जातीवादी ऐसे सत्ताधारी पार्टीया एंव व्यक्तियोंसे सावधान रहने की जरूरत है।

लेखक : बापू राऊत 

4 comments:

  1. मैने कल कामेंटस् लिखी थी लेकीन पोस्ट नहीं हूई!
    आज फिर एक बार लिखने का प्रयास कर रहा हू!
    बापू राउतजी ने हातरस वाली घटना की पुनरावृत्ती टालनेके लिये सत्ताधारी याने सरकार चलाने वाली पार्टी हे सावधान रहने के लिये कहा है!इस बात पर मै टिप्पणी करना चाहुंगा!
    यह सच है के हमारे देश मे सदियोसे जातीय दृष्टिकोन प्रबल रहा है! यहाँ हरेक प्रश्न का समाधान जातीय समीकरणोके आधारपर ही ढुंडने का प्रयास किया जाता है!
    क्यौकी हमारा संविधान जातीगत सियासत,राजकारण को
    इसलिये प्रोत्साहित करतात है ताके हजारो सालो से गुलामी की जिंदगी जिने से उनमे जो न्युनता की भावना प्रबल हुयी है,उस न्युनता या न्युनगंड को निकाला जा सके!हमारा संविधान काफी हद तक उस मे कांमीयाब मी हुवां है!
    आझादी के ७० साल बितने के बाद भी यह दर्द हमे सता रहा है,इसका मुझे आश्चर्य नाही होता!क्यौ की अक्सर यह देखा गया है के ज़वानी की शारीरिक व्याधीया बुढापे मे जादा प़रेशान करती रहती है!
    ७० साल के आयु मे वैसे भी शरीर कुछ एक अंग उस गती से काम नाही कर सकते!उसी प्रकार आझादी के ७० साल बाद एक देश की कुछ संस्थांये उत़नी चूस्त दूरूस्त नहीं रह सकती,ऐसा मेरा मानना है!
    ईसीलिये संस्थागत बदालाव जरुरी है!
    मेरा यह कत़यी कहना नहीं के हम हमारे व्यवस्था का मूल ढांचा ही बदल दे!मैं संस्थागत ढांचा बदलनेकी की बात, हातरस के घटना के संदर्भ हे कहं रहा हूं !क्यौ की वहा के प्रशासन ने हातरस के बेटी पर कोई भी अत्याचार हूवा नहीं, ऐसा कुछ बयान दिया है!इतना ही नहीं, प्रशासन ने खुद बेटी के परिवारवालो के
    अनुमती बीना उसके पार्थिव शरीर का दाह संस्कार कीया है!अब यह मामला SIT या न्यायाधीश कमीटी के अधिकार कक्ष मे चला जायेंगा !अपराधीयो को बक्षा नहीं जायेंगा!
    यहाँ मैं एक बात जरुर कहना चाहूंगा के क्या अपराधीयों को सज़ा देने से अपराध नष्ट हो जायेंगे?
    अनुभव यह है के नहीं, अपराध नष्ट नहीं होते!कम अधिक मात्रा मे बेटींओ पर अत्याचार होते ही रहते है हमारे यहाँ!
    इस पर एक सुझाव मेरे ज़हन हे आ रहा है के क्यौ न हम कुछ संस्थागत बदलाव करके सरकार के बज़ाये हमारे देश के बडे बडे धनवान धर्मसंस्थानो के ऊपर कुछ एक जिम्मेदारी सौप दे? आज हम समझ़ते है के सभी जिम्मेदारी सरकारनेही उठानी चाहिये!यह गलत धारणा है!सरकारे नियम कानून बनाती है और प्रशासन उसका अंमल करती है!किसी एक व्यक्ती या जाती समुह को बदलने का जिम्मा सरकारे उठा नहीं सकती! सब कुछ सरकारे नहीं कर सकती!देश के नागरीक या फिर यहा की संस्थाये,इनके मी कुछ कर्तव्य होते है!
    हातरस के केस मे मेरा यह मानना है के प्रशासनने यह मान लिया है के बेटी पर अत्याचार ही हूये नहीं,तो बेटी की मृत्यू कैसे हूयी इस सवाल का जवाब न्यायपालिका ढूडेंगी! तब तक सारी घटना को " Act of God" मानकर
    देश के धनवान धर्मसंस्थाओ ने उसकी जिम्मेदारी उठानी चाहिए! क्यौकी यही संस्थांये आम आदमी और ईश्र्वर के बीच के मध्यस्थ बनकर काम करते रहती है !
    आम आदमी को संस्कारीत करने की जिम्मेदारी इनकी ही होती है,सरकारो की नहीं!जिन लोगो ने उस बेटी पर अत्याचार किंये, उन को संस्कारित करनेका काम तो धर्म संस्थापकोका ही है!
    ईसीलीये अब सरकारो ने लोगो को संस्क़रीत करने की जिम्मेदारी देश के सभी धरमसंस्थानो के उप़र सौप देणी चाहिए!और एक बात साफ कर देती चाहिए के कोई भी धर्मसंस्था का केंद्र बिंदू सिर्फ और सिर्फ "मानवकल्यान" ही हो!मानव के सभी दुखो का अंत उसका लक्ष हो!उसकी कार्यप्रणाली वैज्ञानिक दृष्टिकोन मिलती जुलती हो!अंतत:
    मानव है तो धर्म है,अगर मानव ही नहीं रहा तो धर्म का पालन कौन करेगा?
    साधु साधु साधु...
    किशोर भगत..९८६९३६९२१२

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    1. कदम साहब धन्यवाद। केवल सजा देने से देश अपराध मुक्त नहीं होगा। इसपर मै सहमत हु। इसमे धर्मसंस्थाओके भागीदारी की भी जरूरत है। यह सच है की, बालक तथा बालिकाओ के मन मस्तिष्क पर घर के कल्चर एंव धार्मिक संस्थाओ के विचार हावी होते है। परिणाम स्वरूप फिर वह वैसेही व्यवहार करने लगता है। अगर धर्मसंस्कार दूसरे धर्म के प्रति नफरतगार होंगे, तब वे दूसरे धर्म के प्रति नफरत करने लगेंगे। उच नीच की भावनाए प्रबल होती जाएगी। धर्म के अंदर जातिव्यवस्था प्रबल होना और भेदभाव पूर्ण परंपराओका पालन होना दूसरे लोगोंके प्रति अपमान की व्यवस्था है। जैसे की गावों/कसबोमे मे खास वर्ग के लोगों का सामाजिक एंव सांस्कृतिक वर्चस्व । मंदिरोमे प्रवेश से रोकना, घोड़े पर दूल्हे को बैठने न देना, दबंगों के बस्ती से गुजरते समय चप्पल सर या हात मे पकड़के रखना, स्मशान अलग अलग होना, स्कूलोमे टीचर द्वारा भेदभाव पूर्ण व्यवहार करना। यह आज भी खुले तौर पर हो रहा है। दलित महिलाओं के शरीर पर आज भी वे अपना अधिकार बताते है। ऐसी बहुत सी घटनाए होती है लेकिन बाहर नहीं आती। दबाई जाती है। यह सब पुराने रीति रिवाज हावी होनेकी वजह से हो रहे है। इसीलिए ऐसे धर्मसंस्थाओंकों पहले संविधान के दायरे मे लाना होगा। धर्म संस्थाओमे बदलाव लाना होगा। लेकिन यहा के प्रभावी लोग ऐसा होने नहीं देंगे। इसके लिए बहुजन समाज को उनके महापुरुषोंके विचारोसे अवगत करना होगा। उनपर थोपे गए अपमान की कृतियो को दिखाना होगा। सारांश बहुजनोमे मानवतावाद और समानता का प्रचार करना होगा। लेकिन यह होगा कैसे? यह एक प्रश्न है। जो लोग इसे लागू करना चाहते है, वे कभी भी सत्ता मे आना संभव नहीं है। वे बहुसंख्यांक होने के बावजूद अल्पमत मे है। बहुसंख्य होने हुए भी वे ईर्षा के कारण विभाजित है। जो अल्पसंख्या मे है वे डर के कारण एकजुट है। उनकी यही एकजुटता उन्हे हमेशा सत्ता मे बनाए रखती है। इसीलिए हाथरस जैसी घटनाए घटेगी नहीं बल्कि बढ़ते जाएगी ।

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  2. बेटीयो पर बलात्कार अत्याचार और उसके बाद बेटी का कत्ल,खुन क्यौ किया जाता है?
    इस सवाल ने मेरी आज की निंद हराम की है!सोच रहा हुं,कुछ चिजे, समजमे आ रही है उसे लिख दुं!
    इस सृष्टी के प्राणीमात्रा मे नर और मादा यह दो ही जाती का अस्तित्व शास्त्र मानता हैं!हम सभी जाते हैं की, पशु पक्षीवो ने उनके जीवनपध्दती नुसार नर और मादा के कर्तव्य सुनिश्चित किये हैं !वहा नर अपनी शारीरिक जरुरत, या शारीरिक भुक मिटाने के लिये,मादी पर अत्याचार या बलात्कार करते नहीं दिखायी देते! मुझे तो लगता है की सृष्टी का संतुलन हमेशा बना रहे,इस भावना से जब़ पशुपक्षीओ मे अपने वंश को बढाने की ईच्छा निर्माण होती हैं,तब मादा उसके शरीर का उपयोग करने की इजाजत नर को दे देती हैं! अगर मादा इजाजत ना दे तो,नर वहां से चला जाता हैं! वह बलात्कार या अत्याचार या फीर मादी
    की हत्या जैसी हरकते करते हुये आज तक कभी नज़र नहीं आया!
    मानव,जिसे धरती का सबसे होशीयार,सोच समझकर कर्म करने वाला प्राणी, पशुपक्षीओ का अनुकरण क्यौ नहीं कर पा रहां? इसका कारण खोजने की कोशिश की,तो पता चला कीं, मनुष्य मे बसे नर याने पुरूष ने उसके साथ साथ जींनेवाली मादा याने स्त्री को अब तक पहचाना ही नहीं! उसकी सबसे बडी खुबी कौनशी हैं
    जिससे वह अपने शरीर का उपयोग करने की अनुमती नर को देती हैं,कब यह सब नकारती हैं, क्यौ नकारती हैं,इन सब सवालो का जवाब आज तक उसने खोज़नेकी कोशीश ही नहीं की! जब स्त्री के मन पर कीसी भी प्रकार का बोझ, या फिर डर, खौंप होता है, मन या शरीर अस्वस्थ होता हैं,तब वह अपना शरीर किसी के भी हवाले नहीं कर सकती!दुसरीओर समाज की मान्यतायें उसे यह सब करने के लिये उसे रोक़ती हैं !क्यौ की उसे पता होता हैं के उससे यह हरकत करने वाला पुरुष अपने वंश की निशाणी उसके शरीर मे छोड़ जायेगा!उसे जन्म देना पडेगा,उसके पालनपोषण की जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ स्त्री याने उसकी खुद की रहेगी!समाज की घृणा सहनी पडेंगी उसे,ना के पुरुष को! इन सब दिक्कतो को, एक स्त्री की मर्यादाओको पुरुष कब समझेंगा?
    और फिर जिस कृती का नाम ही बलात्कार याने जबरदस्ती कहलायी जाती हैं, वह कृती आनंददायी कैसी हो सकती है? इसलिये ऐसी असाधारण अवस्थामे एक स्त्री पुरुष को अपने शरीर का उपयोग करने से रोक़ती हैं!विरोध करती हैं!
    यहाँ तक के क़ई बार वह अपनी जान खो बैठती हैं!
    हाथरस के बेटी की दशा कुछ ऐसी ही रही होगी! पूरुषो की नासमझी,उनका एक स्त्री के प्रति अज्ञान ही इस दुःख का कारण है,ऐसा मेरा मानना हैं!
    हमें यह एक काम करना पडेना! आज के बच्चे कल के नव जवान,इनको कुछ ऐसी ही शिक्षा देणी पडेगी,जिससे वह समझ सके की स्त्री शरीर उपभोग कोई आसान काम नही!मुझे नहीं लगता आज की एक स्त्री अपने आप को कभी भी भयमुक्त,या सामाजिक मर्यादा लांघकर उसके शरीर के उपभोग के प्रती आतुर,आसक्त या प्यासी महसुस करती होगी! हमारे पूर्वजोने,ऋषी मूनीओने इस तरहा के स्त्री शरीर उपयोग को एक तौरसे हिंसा युक्त "भोग" कहां है!
    किसी प्राणी को मार कर या किसी पौधे को ऊखाडकर उसे प्राषन करना,सेवन करना हिंसाचार ही कह़लाता हैं!
    आम तौरसे,स्त्रीऔर पूरुष के संमती से की गयी कृती को संभोग कहां है!याने दोनो ओरसे एकमेक के प्रति
    हिंसा की सहमती मिलते ही की गयी कृती याने संभोग!
    बावजूद इसके आप सब जाते हैं,ओशो रजनीश इस विषय पर अपनी अलग राय रखते थे!
    अब आप इस हिंसा को जायज़ समझे या ना समझे,लेकीन है तो वह हिंसा ही!
    सोच अपनी अपनी!
    अंतमे ऐसी घटनांचे नियंत्रित करणे के लिये आज के बच्चो को यह विषय शालेय जीवनकाल से ही पढाया जाना चाहिए
    ऐसी मेरी धारणा है!
    साधु साधु साधु...
    किशोर भगत.

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  3. भगत साहब, आपका विश्लेषण तथ्यो एंव वर्तमान के लिए प्रासंगिक है। स्कूलोमे धर्म पर ज़ोर न देकर मानवतावादी मूल्यो पर देना चाहिए। आज का समय और सत्ता की विचारधारा विषमता वादी तत्वोके हाथ मे है। हम ने देखा है, इस सत्ता ने जिस तरह से रोहित वेमुला की जात बदल दी थी वैसेही आज यही सत्ता के लोग बोलेंगे की, हाथरस मे बलात्कार हुवा ही नहीं था। आज ही एक न्यूज मे देखने को मिला की, सुशांत की आत्महत्या पर मुंबई पोलिस और महाराष्ट्र को बदनाम कर अपने राजनीति के लिए 32 हजार फेक अकाउंट बनाए गए थे। इस प्रकार का दूषित वातावरण देश मे एक विशेष विचारधारा वाले लोग निर्माण करना चाहते है। हातरस के प्रसंग की क्रोनोलॉजी देखने के बाद यह निर्देशित हो रहा है। इसलिए देश मे बदलाव लाने के लिए संविधान को सर्वोपरी रखते हुए सांस्कृतिक बदलाव करने की जरूरत है।

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