लद्दाख की
राजधानी लेह इस यात्रा का प्रारंभिक बिंदु है। लेह एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक
केंद्र है, जहां
बौद्ध मठ, पुराने महल और स्थानीय बाजार देखने को
मिलते हैं। लेह पैलेस, शांति
स्तूप और थिकसे मोनेस्ट्री यहां के प्रमुख आकर्षण हैं। यहां से यात्रा की शुरुआत
करने से पहले पर्यटकों को ऊंचाई की समस्या (एएमएस) से बचने के लिए कुछ दिन आराम
करने की सलाह दी जाती है।
नुब्रा वॅली: रेगिस्तान और हरियाली का मिश्रण
लेह से करीब 150 किलोमीटर
दूर स्थित नुब्रा वॅली एक अद्वितीय स्थान है, जहां ऊंचे
पहाड़, रेतीले टीलों और हरे-भरे खेतों का संगम देखने को
मिलता है। यहां पहुंचने के लिए खारदुंगला (दुनिया की सबसे ऊंची मोटर बाइक योग्य सड़क) से गुजरना पड़ता है. पुरे खरदुंगला
में बर्फबारी होती रहती है. जो अपने आप में एक रोमांचक अनुभव है। नुबरा यह सशत्र
घाटी है, जहा भारतीय जवान देश की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते है.
नुबरा श्योक नदी और नुबरा नदी द्वारा काटी गई घाटी में स्थित है. यह दोनों
नदिया लद्दाख और काराकोरम पर्वतमाला को दो भागो में बाटती है. नुबरा को तिब्बती
में डुमरा कहते है. डुमरा का अर्थ है फूलो की घाटी. दिस्कित से गुजरनेवाली श्योक
नदी लेह से चलनेवाली सिंधु नदी में विलीन होते हुए पाकिस्तान के स्करदो शहर होते
हुए सिंध प्रांत पहुचने पर अरब सागर में विलीन होती है. नुबरा की उत्तर सीमा
पाकिस्तान के बाल्टिस्तान और चीन के तुर्किस्तान से लगती है. और उसकी पूर्व सीमा
अक्साई चीन और तिब्बत से लगती है. नुबरा दक्षिण में पैंगोंग झील तक फैला हुआ है.
नुबरा घाटी बहुत सुंदर दिखती है. नुबरा के दिस्कित और हुंडर गावो के बिच रेत
के टीले है. इस रेत में दो कूबड़वाले बैक्ट्रियन ऊंट बड़ी संख्या में दिखते है. नुबरा
में लद्दाख का सबसे बड़ा और पुराना बौद्ध मठ (डिस्किट मोनेस्ट्री) है, जहाँ
32 मीटर ऊँची मैत्रेय बुद्ध की मूर्ति
है। यहां का शांत वातावरण और
प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। लेकिन हमने त्सो मोरिरी
झील, जिसने खुद को नीले रंग से ढक लिया है,
यात्रा नहीं कर सके। (यह भी लेख पढे : लद्दाख में बौध्द धर्म)
तुरतुक और थांग गाव
नुबरा से आगे उत्तरी सीमा के थांग एंव तुरतुक गाव से पाकिस्तान का क्षेत्र
दिखाई देता है. १९७१ में पकिस्तान से हुए युध्द में बहादुर सैनिकोने तुरतुक ब्लॉक
को भारत का हिस्सा बना दिया. तुरतुक के निवासी गिलगित-बाल्टिस्तान के बाल्टी हैं, जो बाल्टी भाषा बोलते हैं, यह एक ऐसी भाषा हैं, जो मौखिक है और अभी तक लिखी नहीं गई है। बाल्टी के
लोग शिया और सूफ़िया नूरबख्शिया मुसलमान हैं। ये अपनी जीवनशैली में अपने पुराने रीति-रिवाजों का पालन करते
हैं. इन लोगो के बातो से भारतप्रेम दिखता है.
पॅगोंग लेक: नीले पानी का अद्भुत नजारा
नुब्रा वॅली से आगे बढ़कर यात्रा पॅगोंग लेक की ओर जाती है, जो लद्दाख की सबसे खूबसूरत झीलों में से एक
है। यह झील अपने नीले और हरे रंग के पानी के लिए प्रसिद्ध है, जो दिन के अलग-अलग समय पर बदलता रहता है। पॅगोंग लेक समुद्र तल से 4,350
मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और भारत-चीन सीमा के नजदीक होने के कारण
यहां का दृश्य और भी रोमांचक बन जाता है। पैंगोंग त्सो तीन पर्वत श्रृंखलाओं से
घिरा हुआ है: उत्तर में चांगचेनमो रेंज, पश्चिम में पैंगोंग
रेंज और दक्षिण में कैलाश रेंज. यहाँ भारतीय सीमा क्षेत्र में अनेको युध्द स्मारक
है और सैनिकोंके बेस कैम्प है.
यहां का शांत वातावरण और चारों ओर फैले पहाड़ों का नजारा पर्यटकों को एक अलग
ही दुनिया में ले जाता है। झील के किनारे बैठकर सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य
देखना एक अविस्मरणीय अनुभव है। यहाँ पर 3 इडियट्स फिल्म
में दिखाई वस्तुए स्कूटर और बैठने के स्टूलस रखे है,
जिससे फिल्म की यादें ताज़ा हो जाती है। (यह भी लेख पढे: लद्दाख येथील बौध्द धर्म: उगम व प्रसार)
लद्दाखी जनता और धार्मिक परंपरा
लद्दाख की जनता मुख्यतः बौध्द (77.30 %) धर्मावलंबी है,
लेकिन यहाँ हिंदू, इस्लाम,
इसाई और सिख धर्म भी मौजूद है और उनके बिच
संघर्ष का रिकार्ड दिखाई नहीं देता. लद्दाख में घाटी और पहाड़ो में अनेको
मोनेस्ट्री दिखाई देती है. लद्दाख में जिस बौध्द धर्म का चलन है, उसे महायान के नाम से जाना जाता है। लद्दाखी धर्मावलंबी बौध्द धर्म ग्रंथ
त्रिपिटिक को कांग्युर के नाम से संबोधित करते है। यहाँ गौतम बुध्द, पद्मसंभव,
अवलोकितेश्वर और मैत्रेय बुध्द की बड़ी बड़ी मुर्तिया आकर्षण का केंद्र है.
लेह से पॅगोंग लेक तक की यात्रा, जो नुब्रा वॅली से होकर गुजरती है, लद्दाख की
प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत का एक अनूठा संगम प्रस्तुत करती है। यह
सफर न केवल रोमांच से भरपूर है, बल्कि यह मन को शांति और
सुकून भी प्रदान करता है। लद्दाख की यह यात्रा हर पर्यटक के जीवन का एक यादगार
हिस्सा बन जाती है। लद्दाख की यह यात्रा केवल एक सफर नहीं, बल्कि
प्रकृति और आत्मा के बीच एक गहरा संबंध स्थापित करने का अवसर है।
लेखक : बापू राऊत
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