तालिका 1. पार्टीनिहाय २००८ से २०२३ तक कि विजयी
उमेद्वारोंकी कि कुल संख्या |
||||
पक्ष /वर्ष |
2023 |
2018 |
2013 |
2008 |
कॉंग्रेस |
135 |
80 |
122 |
80 |
भाजप |
66 |
104 |
40 |
110 |
जनता दल |
19 |
37 |
9 |
28 |
बसपा |
0 |
1 |
0 |
0 |
अपक्ष |
2 |
1 |
0 |
6 |
भारतीय जनता पार्टी 2018 के मुकाबले 2023 के चुनाव में 36 फीसदी वोट शेयर बनाए रखने में
कामयाब रही। जबकि कांग्रेस पार्टी ने अतिरिक्त 4.8 प्रतिशत
वोट प्राप्त किए और विधान सभा में बहुमत हासिल किया। लेकिन यह चुनाव देवेगौड़ा
परिवार के लिए एक आपदा साबित हुआ, क्योंकि इसने पिछले चुनाव
से 5 प्रतिशत वोट खो दिए थे। इससे कांग्रेस को भले ही जनता
दल के वोट मिल गए हों, लेकिन यह साफ है कि पिछले पांच साल में
बने नए युवा वोटरों ने भारतीय जनता पार्टी को वोट नही दिया। या हो सकता है कि,
पुराने वोटरों का मोहभंग हो गया हो और वे बीजेपी से दूर हो गए हों।
इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों ने 5.2 प्रतिशत वोट हासिल कर 2 सीटों पर
जीत हासिल की । अन्य राष्ट्रीय दलों में, बहुजन
समाज पार्टी को 2018 विधानसभा के मुकाबले 1 सीट का नुकसान हुआ। 2008 के चुनावों के
बाद से, राज्य में बसपा 2.7 प्रतिशत से घटकर 0.3 प्रतिशत रह
गई है। कर्नाटक में दलित वोट कांग्रेस और बीजेपी में बंट गए। लेकिन 2023 के चुनाव
में दलित और आदिवासी वोट कांग्रेस की झोली में आ गए। संघ-भाजपा की भय फैलाने वाली
नीति को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम वोट कांग्रेस के पाले में चले गए। वोटों का यह
सिलसिला यहीं नहीं रुका बल्कि कांग्रेस द्वारा ओबीसी को दिया गया जातिगत जनगणना का
वादा भी एक अहम फैक्टर था। जैसा कि, ओबीसी को पता चल गया है कि नरेंद्र मोदी ओबीसी
हैं लेकीन वे ओबीसी के अधिकारों के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं, इसीलिये ओबीसी बीजेपी के हिंदुत्व से दूरी बनाने लगे हैं।
तालिका 2. 2008 से 2023 तक कि पार्टीवाईज मतोंका प्रतिशत (%) |
||||
पक्ष /वर्ष |
2023 |
2018 |
2013 |
2008 |
कॉंग्रेस |
42.9 |
38.1 |
36.6 |
34.8 |
भाजप |
36 |
36.2 |
19.9 |
33.9 |
जनता दल |
13.3 |
18.3 |
20.2 |
19.0 |
बसपा |
0.3 |
0.3 |
0.9 |
2.7 |
अपक्ष |
5.2 |
3.9 |
7.4 |
6.9 |
इस चुनाव में कुल 12 सीटों पर
2000 से कम मतों के अंतर से जीत दर्ज की गई है। इसमे भाजपा के सात और कांग्रेस के पांच प्रत्याशी
हैं। जयनगर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी ने महज 16 वोटों से जीत दर्ज की, जबकि 74
प्रत्याशियों को 25000 से अधिक मतों के अंतर से निर्णायक मत मिले। 79 विधानसभा
क्षेत्र ऐसे हैं, जहां उम्मीदवारों ने 10,000 से 25,000 हजार के अंतर से जीत हासिल की है।
2023 के इस विधानसभा चुनाव में कुल 185 महिला उम्मीदवारों में से केवल 10 महिला
उम्मीदवार ही सफल रहीं। इनमें से सभी विजयी महिलाओं में लक्ष्मी हेब्बलकर को
सर्वाधिक मत (56016 मत) प्राप्त हुए। पिछले 2018 के चुनाव में भी वे सबसे अधिक
मतों (51724) से निर्वाचित हुई थीं। नई विधानसभा में निर्वाचित महिला उम्मीदवारों
में कांग्रेस की चार, भाजपा की तीन, जनता
दल (से.) की दो और एक निर्दलीय महिला विधायक हैं।
यदि हम कर्नाटक के विभाजन के अनुसार देखें, तो
उसके कुल छह राजनीतिक डिवीजन हैं। ये डिवीजन हैं बैंगलोर, कित्तूर/मुंबई,
सेंट्रल, गुलबर्गा/कल्याण/हैदराबाद, मैसूर/साउथ और कोस्टल। चुनावों में प्रभागवार ध्रुवीकरण देखें तो, बंगलौर डिविजन
में कांग्रेस का जनाधार 2008 से लगातार बढ़ रहा है, लेकिन बीजेपी की तुलना में इसे
कम ही कहा जाना चाहिए, क्योंकि इस शहरी क्षेत्र में बीजेपी
को काफी फायदा होता दिख रहा है। यानी मिडिल क्लास लोगों की पहली पसंद बीजेपी ही
नजर आ रही है। कित्तूर भाजपा का गढ़ है, लेकिन कांग्रेस ने इसे जीत लिया है और
इसकी संख्या 17 (2018) से बढ़कर 33 (2023) हो गई है। भाजपा का सबसे बड़ा नुकसान
मध्य क्षेत्र में हुआ जहां वह पिछली 24 सीटों में से 6 सीटों तक सीमित रह गई।
कांग्रेस ने 12 में से 27 सीटें जीतीं। गुलबर्ग/हैदराबाद में कांग्रेस अच्छी
स्थिति में थी। भाजपा और जनता दल दोनों को इस क्षेत्र में जीती गई कुल सीटों की
संख्या और वोटों के प्रतिशत में गिरावट हुई है। तटीय कर्नाटक बीजेपी का सबसे बड़ा
गढ़ और संघ की प्रयोगशाला रही है। लेकिन, 2018 के मुकाबले इस चुनाव (2023) में
बीजेपी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। दूसरी ओर कांग्रेस ने अपनी सीटों की
संख्या 3 से बढ़ाकर 8 और वोट शेयर 39.2 प्रतिशत से बढ़ाकर 41.3 प्रतिशत प्राप्त कर
लिया। जबकि बीजेपी का प्रतिशत 51 फीसदी से घटकर 46.3 फीसदी पर आ गया। दूसरे शब्दों
में कहा जा सकता है कि, संघ भाजपा के गढ़ में उनकी सांस्कृतिक और राजनीतिक
विचारधारा को विराम मिल गया। ऐसा क्यों हुआ? यदि आप इसके
बारे में सोचते हैं, तो इसके पीछे उनकी "अतिवादी"
कट्टरता निहित है। आम लोग निरंतर असंतोष, दंगे, झगड़े और विवाद नहीं चाहते हैं। वे शांति चाहते हैं। वह अब किसी और से
नफरत नहीं करना चाहती। संघ भाजपा ने कर्नाटक को दक्षिण का गुजरात बनाने का फैसला
किया था। लेकिन कर्नाटक के लोगों ने इसे उखाड दिया। राहुल गांधी की भाषा में
कर्नाटक 'अब घृणा का बाजार बंद और मोहब्बत की दुकान खुली'
हो गई। कांग्रेस की इस जीत में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा,
प्रियंका गांधी की प्रभावशाली भाषा और बीजेपी के नफरती शब्दो का भी
योगदान रहा।
यह कहना दुस्साहस होगा कि,
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्राप्त पराजय भाजपा के लिए सार्वजनिक चेतावनी है।
भविष्य में यदि वे तेलंगना, राजस्थान, छत्तीसगढ़
के राज्य चुनावों में हार जाते हैं, तो मोदी-शाह के नेतृत्व
में प्रचार करने के बाद भी, 2024 का लोकसभा चुनाव भाजपा के
लिए मुश्किल होगा, मोदी-शाह के नेतृत्व के बारे मे भाजपा मे
सवाल खडे होंगे । इसलिए यह तय है कि, आने वाला समय न केवल बीजेपी के लिए बल्कि
भारतीयों के लिए भी काफी दिलचस्प होगा।
बापू राऊत
मो.न.९२२४३४३४६
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