बहुजनवाद सामाजिक, आर्थिक,
सांस्कृतिक असमानता और भारत के हाशिए पर रहनेवाले समुदायों, विशेष
रूप से दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के
खिलाफ सामूहिक संघर्ष की एक प्रणाली है। बहुजनवाद का लक्ष्य उच्च जातियों के
प्रभुत्व को चुनौती देते हुए राजनीतिक प्रतिनिधित्व, आर्थिक
अवसर और सामाजिक न्याय के माध्यम से इन समुदायों को सशक्त बनाना है। हालाँकि,
अपने ऊँचे लक्ष्यों के बावजूद इसे कई चुनौतियों और सीमाओं का सामना
करना पड़ता है। बहुजन समुदाय जनसंख्या में बड़ा होने के बावजूद सांस्कृतिक,
आर्थिक और राजनीतिक रूप से वंचित है। इसका कारण वे धर्मशास्त्रीय और
पुरोहिती ढाँचा है जिसे वे स्वीकार करते हैं। इससे पैदा हुई रुकावटों के कारण ही
बहुजनवाद की राजनीति हमेशा हार की राह पर चल रही है।