Tuesday, January 9, 2018

धर्मांध आतंकवाद से गोरक्षी आतंकवाद तक


भारत के लिए आतंक नया नहीं है धर्मव्यवस्था तथा चातुर्वर्ण्यव्यवस्था के नाम से यहा हजारों सालोसे आतंक फलफुल रहा है वर्णव्यवस्था के ऊपर बैठे लोग उसका  उर्जास्त्रोत है बहुजन समाज कों अपनी स्वतंत्र विवेकता न होने के कारण वे सिर्फ श्रावक बने है गुलाम मानसिकता के कारण वर्णव्यवस्था कों मानकर दूसरोंके धार्मिक वर्चस्व मान्य कर बैठे हैयह सिलसिला आज भी चल रहा है बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद आदि संघ की जीतनी शाखाए है, उनमे जमीनी काम करनेवाले फ़ोकट के सैनिक बहुजन समाजसे ही सबंधित है इन सबके नेता उच्चवर्गीय स्वर्ण ब्राम्हण है ये लोग बहुजन समाज के युवकोंको धार्मिकता का गांजा पिला रहे है जिससे वे उनके कहनेसे अन्य समाज के लोगोंको मारने, खुद मरने तथा दंगा फसाद करने के लिए तैयार हो जाते है. उन्हें नहीं समझता की, ये संघीय लोग अपना दोहन कर रहे है हिंदू और हिंदुत्व की हवा उनके मस्तिष्क डाली जाती है

Sunday, January 7, 2018

क्या भारत अब तालिबानी सहिंता की ओर चल पड़ा है?

भीमा कोरेगाव दंगल के विरोध में जिन लोगोने आंदोलन किया उन्हें कोम्बिंग ऑपरेशन द्वारा अरेस्ट किया जा रहा है. लेकिन जिन्होंने दंगा शुरू किया उनको अभीतक अरेस्ट नहीं किया गया. वे खुले तौर पर घूम रहे है. बल्की दंगलखोर संभाजी भिडे और दिलीप एकबोटे कों पोलिस सरक्षण दिया गया. चंद्रशेखर आझाद ने दंगलखोरो के विरोध में आत्मरक्षा के लिए आवाज उठाई तो उसे रासुका लगा दिया. उना के अत्याचार पर जिग्नेश मेवानी ने मनुवादियोंके आव्हान दिया तो उसे देशद्रोही कहा गया. लेकिन दलितोपर अभीतक जिन्होंने अत्याचार किया और जिन्होंने ऐसा करनेके लिए उकसाया वे ना कभी गिरफ्तार हुए, ना कभी उन्हें जेल हुई. वे खुलेतौर पर अत्याचारों और दंगल के मसीहा बन बैठे है. लेकिन इन अत्याचारों के खिलाफ जो आवाज उठा रहे है, उन्हें पोलिस मार रहे और जेल में डाला जा रहा है. क्या यह असहिष्णुता का सहिष्णुता पर विजय नहीं है? यह डेमोक्रासी का कौनसा अवतार है? क्या  भारत अब तालिबानी सहिंता की ओर चल पड़ा है? क्या सहिष्णु भारत में सब असहिष्णु बनते जा रहे है? हम आज कौन से कगार पर खड़े है? समझ में नहीं आ रहा.

बापू राऊत 

Wednesday, January 3, 2018

आद्य शिक्षिका सावित्री ज्योति फुले


सावित्रीबाई फुले कों भारत की आद्य शिक्षिका कहा जाता है जिस समय में भारत की नारी कों चूल्हा और बच्चो तक सिमित कर दिया था मनुस्मृति ने नारी कों बेडीयोंके जंजाल में कैद कर रखा था, उस समय सावित्रीमाई फुले ने सामजिक क्रांती का बिगुल बजा दिया था इसके लिए उन्होंने  सनातनी ब्राम्हण समाज का अपमान और गाय के गोबर का मार भी सह लिया लड़कियोंको पढाने के लिए जाते समय उनके साडी पर गोबर और मिटटी फेकी जाती थी फिर भी वह पीछे नहीं हटी आज की स्त्री जिस शिक्षा और अन्य स्वतंत्रता की हकदार बनी है उसकी जननी कोई और नहीं सावित्रीबाई फुले है उसीके कारण वह खुले आँगन में साँस ले रही है अन्यथा मनुस्मृति के बंधन में वह आज भी जखडी रह जाती स्त्रियोंको आजच्या स्त्रियांना जे स्वातंत्र्याचे जीवन जगायला मिळत आहे त्याचे श्रेय केवळ सावित्रीबाई फुलेना जाते लेकिन आज की स्त्री उस काल्पनिक सरस्वती का गुणगान गाती है, जिसने उनके  लिए कुछ नहीं किया यह एक दू:खद बात है
सावित्रीमाई के समकालीन लोगोने उनकी चारित्र्यशीलता, गुणसंपन्नता तथा धीर गंभीरता पर टिप्पणी की है गोविंद गणपत काळे लिखते है, महात्मा ज्योतीराव फुले जिस चोटीपर पहुचे है उसमें बड़ा योगदान सावित्रिमाई का रहा है वह कभी भी घुसा नहीं करती थी घर में आए मेहमान का सन्मान करती थी सावित्रीबाई कों लोग चाची के नाम से पुकारते थे स्त्री शिक्षण के विस्तारके बाद शिक्षित महिलाओं में उनके प्रति पूज्यभाव निर्माण हो गया था पंडिता रमाबाई और आनंदीबाई जोशी उनसे मिलने के लिए आया करती थी व्हाईसराय की पत्नी भी उ़नके यहा चर्चा के लिए आती थी
महात्मा फुले के मृत्यु के बाद उनके भाई बाबा फुले व महादबा फुलेने उनके दत्तकपुत्र यशवंतराव कों ज्योतिबा का शव उठाने के लिए विरोध किया था और यह अधिकार भाई होने के कारण हमारा है यह भूमिका ली थी इस नाजुक परिस्थिति में उन्होंने बाबा फुले और महादबा फुले का विरोध कर खुद ज्योतिबा फुले के शव के साथ आगे चलने का निर्णय लिया और अन्य जाती समूह के लोगो कों ज्योतिबा का शव उठाने कों कहा था ज्योतिबा फुले के भाईयोने उनके जीते जी फुले के सामाजिक कार्य का विरोध किया था. मृत्यूके बाद सर मुंडवाना तथा चावल का पिंड बनाकर कौओ के सामने डालने के प्रथा कों सावित्री बाईने ठुकरा दिया था सावित्रीमाई का यह निर्णय क्रांतिकारी था

दुसरे समकालीन लक्ष्मणराव देवराव ठोसर लिखते है, ज्योतिबा फुले कांट्राक्टर थे वे अपना पैसा समाज कार्य के लिए खर्च करते थे ज्योतिबा फुले के मृत्यु के बाद सावित्रिमाई ने अपने दत्तक पुत्र यशवंत कों डाक्टर बनाया लक्षमण कराडी जाया लिखते है, जब पूना में प्लेग की बिमारी आई थी तब लोग बिमारिसे मरते थे उन्होंने प्लेग के मरीजो कों इलाज करवाने अपने पुत्र यशवंत के दवाखाने में खुद उठाके लाकर उनकी सेवा करती थी इस प्लेग में ही सावित्रिमाई फुले तथा उनके दत्तक पुत्र डाक्टर यशवंत बीमार हो गए इस तरह वे मरीज की सेवा करते करते दोनों का देहावसान हो गया


सावित्रीबाई फुले आज के स्त्री के लिए मार्गदर्शक तथा प्रेरणास्थान बन गई है सावित्रीमाई फुले का चरित्र पढना और उसे समझ लेना आत्यंतिक जरुरी है सावित्रीमाई के सदगुण बहुजन तथा भारतीय महिलाओमे पुनरुज्जीवित होने से नई समाजव्यवस्था की नीव डालने में समय नहीं लगेगा इसका उदहारण है उनकी शिष्या रही ताराबाई शिंदे और मुक्ता इन दोनों ने धर्म के ठेकेदारों के सामने वर्णव्यवस्थापर सवाल खड़े किये थे क्या आज की महिला  सावित्रिमाई की शिष्या बनकर व्यवस्था और धर्म के ठेकेदारों तथा राजसत्ता के तानाशाह कों सवाल पुछेगी? 

लेखक: बापू राउत 

Monday, January 1, 2018

कट्टर धर्मांधता: एक महाभयंकर रोग



जातीयता और धर्मांधता की भयानकता भारत में हजारों वर्षोसे असतित्व में है इस धार्मिक कट्टरता
ने लाखो लोगोंका बली लिया है इस कट्टरता ने एक समूह, जहा महिलाओंका समावेश है, अपमान और अत्याचार के बिंदु बन गए है महिला घर में गुलाम और नोकर बन बैठी वह एक निरंतर सेवाकेंद्र बन बैठा है शिक्षा स्थलों, पाणी, तालाब, मंदिरों, गाव के मुख्य रास्तोसे घुमना, शादी में घोड़ी पर बरात निकालना, निचली जाती के महिलो का शारीरिक शोषण करना, मुफ्त में काम करवाना ऐसे अनगनित अत्याचार होते थे यह मुग़ल काल तथा ब्रिटिश काल के उत्तरोत्तर 15 साल तक निरंतर जारी था इसपर महात्मा ज्योतिबा फुले ने आवाज उठाई थी उन्होंने ब्राम्हणधर्म (वैदिक धर्म) कों खुली चुनौती दी थी बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान के माध्यम से अन्याय व्यवस्था कों पूरी तरह से खत्म कर