तथाकथित गोरक्षक अपनी शिकार खोजने के लिए बाहर निकलते है। उन्हें शिकार मिल ही जाता है। क्योकि देश की २० टक्के आबादी का धंदा गाय से ही सबंधित होता है। वे गाय की आवाजवान करते है। मरी हुई गाय की चमड़ी निकालकर उससे वस्तुए बनाते है। इस व्यवसाय में ट्रकों द्वारा गाय की उतारे और चढाई होती है। इसीका फायदा ये तथाकथित गोरक्षक उठाते है। उन्हें धर्मान्ध संघटनोद्वारा बताया जाता है, धर्म की रक्षा करते करते
अगर मरण भी आ जाए, तो वे सीधे भगवान के पास पहुच जाते है। आपके फॅमिली का ख्याल भगवान खुद रखता है, ऐसा उन्हें सम्मोहित किया जाता
है। ऐसे फेकू
आश्वासन सेही वे गोरक्षा के नाम खून खराबा करनेके लिए तैयार हो जाते है।
आजकल जातिभिमान उच्चस्तर पर पहुच गया है। हाल में गुजरात के कुछ राजपुतो द्वारा, मुछे रखने के कारण दलित युवाओकों मार दिया गया। राजपूत जैसी मुछे दलित जातियोके लोगो ने रखना वे अपना अपमान मान रहे है। पंजाब में एक दलित युवक कों पेड कों बांधकर मार दिया गया। सप्टेंबर २०१७, कर्नाटक में सवर्ण जाती के लोगोने दलित बस्तियोंके कुओं में एंडासल्फिन नामक जहरीली दवा डाली गई। गुजरात में स्वतंत्रता दिवस पर मृत गाय का चमड़ा निकालने की वजह से एक
दलित युवक और उसकी माँ कों स्वर्ण समूह
द्वारा पिटा गया। पोलिस रजिस्टर्ड नहीं किये गए ऐसे अनेक प्रसंग है, जहा दलितोंको मारा या पिटा
जा रहा है। तथाकथित
गोरक्षक निहथ्ते लोगो पर जुल्म कर रहे है, लेकिन उनपर कार्यवाही नहीं हो रही। सरकारोसे उन्हें सरक्षण मिल रहा है। इसीलिए इन बेवकुफ़ गोरक्षक गुंडों का हौसला बढा है। क्या वे चाहते है, दलित भी शस्त्र अपने हाथ में ले और उनका मुकाबला करे.?
सरकारने ऐसे गोरक्षक गुंडों कों जेल में डालना चाहिए। ऐसा न करना सरकार का गोरक्षकोंको सरक्षण होना साबित होगा।
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