जातीयता और धर्मांधता की भयानकता भारत
में हजारों वर्षोसे असतित्व में है। इस धार्मिक कट्टरता
ने लाखो लोगोंका
बली लिया है। इस कट्टरता ने एक समूह, जहा महिलाओंका समावेश है, अपमान और अत्याचार
के बिंदु बन गए है। महिला घर में गुलाम और नोकर बन बैठी। वह एक निरंतर सेवाकेंद्र बन बैठा है। शिक्षा स्थलों, पाणी, तालाब,
मंदिरों, गाव के मुख्य रास्तोसे घुमना, शादी में घोड़ी पर बरात निकालना, निचली जाती
के महिलो का शारीरिक शोषण करना, मुफ्त में काम करवाना ऐसे अनगनित अत्याचार होते थे। यह मुग़ल काल तथा ब्रिटिश काल के
उत्तरोत्तर 15 साल तक निरंतर जारी था। इसपर महात्मा ज्योतिबा फुले ने आवाज
उठाई थी। उन्होंने ब्राम्हणधर्म (वैदिक धर्म) कों खुली चुनौती दी थी। बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान के
माध्यम से अन्याय व्यवस्था कों पूरी तरह से खत्म कर शिक्षा (punishment) का
प्रावधान रखा। लेकिन वैदिक तथा ब्राम्हण धर्म पर खतरे की घंटी मंडराने की सुगबुगाहट
तिलक, सावरकर, हेगडेवार, गोलवलकर तथा मालवीय जैसे कट्टर जातिवादी ब्राम्हनोंको लग
गई थी। फिर तिलक ने धर्म और गणपती कों अपना शस्त्र बनाकर बहुजन समाज कों धर्म और गणपती की गोली (अफु) का
डोस दिया। सावरकर ने हिंदू और हिंद्त्व की नई व्याख्या बनाकर बहुजन समाज कों
मुसलमान के खिलाफ हिन्दुत्ववादी कट्टर सैनिक बना दिया। 1925 में हेगडेवार ने देश तथा भारतीय
संस्कृतिपर ब्राम्हण का वर्चस्व बरकरार रखने के लिए राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की
स्थापना की। संघ के दूसरे संघचालक गोलवलकर ने पुरानी वैदिक परंपरा की व्यवस्था की
पुनर्स्थापना के लिए किताबे लिखना, उसके प्रचारप्रसार के स्वंसेवकोकी भर्ती की। धर्म के नामपर लोगो कों बाटना संघ का
अभिन्न अंग बना दिया।
संघ ने नए राष्ट्रवाद का नारा दिया। बेचारा बहुजन समाज ब्राम्हण वर्चस्व
और धर्म के गुलामी की मानसिकता के कारण उनके चंगुल में फस गया हैं। आज भी वह फसते जा रहा है। वे ब्राम्हणवाद और राष्ट्रीय
स्वंयसेवक संघ की कूटनिति कों समझ नहीं पा रहे। संघ का जनतंत्र (डेमोक्रेसी) पर
विश्वास नहीं है। वह भांडवलदारी
और व्यक्तिगत संस्थानों का कड़ा समर्थक है। अब संघीय लोग खुद संस्थानप्रमुख तथा
लाला (व्यापारी) के स्वरूप में स्थानापन्न हो गये है। उन्हें अब गोलवलकर के विचारोपर अंमल
करने के लिए आनेवाले रुकावटे कों खत्म करना है। इसीलिए संघ संविधान बदलने की बाते
करता रहता है। मुसलमानो के खिलाफ हिंदुओ कों भड़का रहा है। हिंदू निचली जातीया जब अधिकार और
आरक्षण की बात करता है, तब वह उच्च हिंदू जातियोंको उनके खिलाफ भडकाता है। बहुजन समाजने संघ के इस षडयंत्र कों
जरुरी समझना चाहिए।
लेखक: बापू राऊत
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