Sunday, October 8, 2017

कोण है श्रेष्ठ: रावण या राम ?

हर साल दशहरा आता है. दशहरे में कुछ लोग और संस्थाए रावण का पुतला बनाकर जलाते है. बड़े बड़े शहरों में नेताओ और तथाकथित सफ़ेद / भगवे वस्त्रधारी साधूओ के समक्ष रावण कों जलाने का कार्यक्रम होता है. रावण कों जलाने का काम राम, लक्ष्मण और सीता के पात्रधारी युवक व युवतियो द्वारा किया जाता है. लेकिन एक प्रश्न उठता है, रावण कों क्यों जलाया जाता है? क्या था उसका अपराध? क्या रावण ने इतना घिनौना काम किया था? जिससे लोग तिरस्कार कर उसे जला दे? तथा राम का चारित्र्य इतना मौल्यवान था की भक्ति भाव से उसकी पूजा की जाए? क्या राम सन्मान के इतने पात्र थे, की  उन्हें भगवान का दर्जा मिले? जैसी दानव की व्याख्या की जाती है वैसीही भगवान की व्याख्या हो. उनके गुणों, कार्यों और चारित्र का इमानदारी से विश्लेषण हो और बादमे उन्हें उस दर्जे के लायक समझा जाए. अच्छे और बुरे आदमी की समीक्षा जिस तथ्योंपर होती है, वही तथ्योपर तथाकथित दानव और भगवान की समीक्षा हो.


भारत में मिथ्या (काल्पनिक) रावण कों जलाते है. अगर रावण की आज की तथाकथित व्याख्या देखे तो आज के अनेकानेक राजनेता और भगवा/सफ़ेद वस्त्रधारी लोग रावण जैसे ही चारित्र्यहिन है. लेकिन उन्हें कोई जलाता नहीं बल्की इन आधुनिक रावणों के लोग पैर छुकर आशीर्वाद लेते है. यह बड़ी घोर विडंबना है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है की, हम भारतीयों की नैतिकता कितनी गिरी है. राम और कृष्ण के नाम पर स्त्रियों तथा पुरुषों का शोषण हो रहा है और लोग बिना सोचे शोषित/अंधे भक्त बनते जा रहे है. हम यहा रावण और राम के चरित्र्य की चर्चा करते है. इन दोनों महानुभावो पर चर्चा कर एक विशिष्ठ निर्णय पर पहुचना हर भारतीय का स्व अधिकार है. और किसी जाती विशेष के व्यक्तियोके विचार हम भारतीयों पर थोपनेकी सर्वदा निंदा होनी चाहिए. शास्त्रों का सहारा लेकर हमारा गुरु बननेकी वे कोशिश  न करे. ज्ञान का भण्डार अभी बहुजन अनार्य के पास भी है.

क्या था रावण का चारित्र्य? जिसे हम भारतीय दशहरे कों जलाते है. उसकी निंदा और द्वेष करते है. वाल्मीकि रामायण एकमात्र सोर्स है जिससे इन महानुभावो का अभ्यास एंव चिकित्सा कर सके. “तुलसी रामायण” नाम की किताब प्रमाण नहीं हो सकती क्योकि वह मुग़ल सम्राट बाबर के समय लिखी गई है. जहा बाबरी मस्जिद के जगह में राम का मंदिर था या नहीं इसका जिक्र तक नहीं है. तुलसी रामायण विषमतावादी है जहा शुद्र और स्त्री कों ढोर, गवार तथा ताडन के अधिकारी कहा गया है. वह एक विशेष वर्ग की हितैषी किताब है. वाल्मीकिकृत “रामायण” पर भी प्रश्नचिन्ह है? भारत में वाल्मीकि की जाती निचली या अछूत जाती समझी जाती है. उस समय शुद्र जाती कों पढने, पढाने और लिखने का अधिकार नहीं था. शुद्र जाती के किसी भी व्यक्ती कों ऋषि या ज्ञानी बननेका हक नहीं था. अगर कोई भूलकर ऋषि या ज्ञानी बननेका प्रयास करता उसकी हत्या कर दी जाती थी. ऐसे में शुद्र वाल्मीकि द्वारा  रामायण नामक किताब कैसे लिखी जा सकती? खुद राम ने शुद्र शंबुक की हत्या की थी.

राम ने क्या कर दिया? देखो, शूर्पनखा रो रही है. उसके नाक और कान टूटे हुए है. उसका चेहरा पूरा खून से लटपटा है. कितनी विद्रूप दिख रही है. शूर्पनखा के इस अवस्था के लिए कौन जबाबदार था ?. स्त्री का सन्मान कहा रखा गया? शूर्पनखा रावण की छोटी बहन थी. वह अपने भाई रावण के पास आई. उसने राम की करतूत बताई. ऐसे में एक भाई बहन के लिए क्या नहीं करता? भाई अपने बहन के हत्यारे कों दंड देता, या उसके बहन के साथ भी वैसाही व्यवहार करता जैसा उसके बहन के साथ हुवा. आखिर कोई भी भाई अपने बहन का अपमान कैसे सहन करता?. प्रतिशोध में जलता रहेगा जबतक वह बदला नहीं लेगा. रावण द्वारा सीता हरण करना अपनी बहन के अपमान का बदला लेने की भावना का प्रतिशोध था.
रावण सीता का हरण करता है. इसीलिए हरण नहीं करता की वह सीता पर मोहित था. जबरदस्ती अपनी पत्नी नहीं बनाया. सीता रावण के कब्जे में महिनोतक थी. लेकिन उसने सीता पर किसी भी प्रकार का अत्याचार नहीं किया बल्की सीता का ख्याल रखा. खुद वाल्मीकि रावण कों वैसा सर्टिफिकेट देता है. इससे रावण में सर्जनशील के गुण प्रतीत होते है. तथा अनार्य के राज्य में आक्रमणकारी के रूप में घुसना. पर स्त्री से झूठ बोलकर असभ्य वर्तन कर उसे विद्रूप करना, सीता की सत्वपरिक्षा लेना और  ज्ञानी बननेकी चाहत रखनेवाले शंबुक की हत्या करना एक असत्याधिष्ठित, विषमता, अविवेकता तथा  आक्रमणकारी आर्य का नमूना है राम.

हम द्रोपदी का अपमान करनेवाले कौरवो कों दूषण देते है. लेकिन यहा पे शुर्पनखा का अपमान करनेवाले राम - लक्ष्मण कों सन्मानित करके आनंद प्रतिपादित करते है. द्रोपदी का उपहास दू:शासन करता है. इस दू:शासन का वध करनेवाले भीम पर गर्व महसूस करते है. लेकिन  शूर्पनखा कों विद्रूप करनेवाले राम लक्ष्मण कों करारा जबाब पूछनेवाले दूषण और खर पर हम गर्व महसूस क्यों नहीं कर पाते? हमारी यह दोहरी निति कबतक चलेगी ?. क्या हमारी सोच कुंडीत हो चुकी है?

रावण ने बहन का अपमान और भाई दूषन और खर कों मारनेवाले राम लक्ष्मण का बदला लेने का मन बना लिया था. दंडकारण्य पर राम द्वारा किये गए आक्रमण कों रोकना था. अन्यथा पुरे रावण राज्य कों राम द्वारा जितने का खतरा निर्माण हो जाता. क्या एक स्वाभिमानी राजा कों यह करने का जरा भी हक नहीं है? राजा पुरु ने अलेक्झांडर द ग्रेट के खिलाफ यही किया था. उसने अपना स्वाभिमान और राज्य के सन्मान के लिए अलेक्झांडर का शरण आने के सन्देश कों ठुकरा दिया था. उस पुरु पर हम गौरवान्वित महसूस करते है फिर यही गौरव हम रावण कों क्यों नहीं दे पा रहे? जो अपने राज्य की रक्षा और स्त्री सन्मान के लिए लढकर मरनागति प्राप्त की थी.

वाल्मीकि ने अपनी काव्यरचना में ऐसे राजा कों खलनायक और क्रूर बताया जो एक महानतम राजा था. आर्य और अनार्य के युध्द में आक्रमणकारी राजा की झूठी प्रशंसा कर उसे देवता का रूप दे दिया. लेकिन भारी प्रशंसा में वह भुल गया की उसने अपनेही हीरो कों स्त्री द्वेषी बना दिया और भाइयो के बीचमे फुट डालकर वह अपने राज्य का विस्तार करनेका मनसूबा रखता है. वाल्मीकि ने अनार्य कों अधार्मिक, नास्तिक और जंगली कहा है. इसका अर्थ अनार्यों ने आर्योके संस्कृति कों नकार दिया था. राम ने इसका बदला अनार्योसे युध्द करके पूरा किया.

रामायण में आर्य और अनार्य के युध्द का वर्णन है. एक भाई कों अपना राज्य सौपकर अपने राज्य की सीमाए बढ़ाने का संकल्प लेनेवाला राम दुसरोके राज्य प्रवेश करता है. उस राज्य की जनता कों मारकर और अपमानित कर राजा रावण कों युध्द के लिए ललकारता है. युध्द में अपनी हार होते देख वह राजकीय दाव खेलता है. रावण के सेनापति और उसके भाईयोंको वश करता है. उन्हें राजा बनाने का ख्वाब दिखाकर रावण के खिलाफ भडकाता है. फितुरोंका सहारा लेकर रावण पर विजय पाता है. सुग्रीव और वाली कों आपस में लढवाता है. और अधर्म से वाली कों पराभूत करता है. रावण का भाई बिभीषण कों फितूर करता है. अनार्य रावण ने आर्य राम और उसके सैनिकोंका जमकर प्रतिकार किया लेकिन वे पराभूत हुए इसका कारण अनार्य के अपने ही लोग थे. इस देश इतिहास ही अजूबा है. आर्य आये, उन्होंने अनार्य कों पराजित कर गुलाम बनाया. मुग़ल आये उन्होंने भारत की जनता कों हराया. मुट्ठीभर ब्रिटिश आये उन्होंने भी राम की निति अवलंब कर भारत पर हुकमत की.
अपने खुद के राज्य में राम का व्यव्हार कैसा था? राम ने अपनीही प्रजा के घटक रहे शंबुक के साथ दुर्भाग्यपूर्ण व्यवहार किया. तपश्चर्या कर महान ऋषि बनकर ब्राम्हणों की बराबरी करने के सपने देखने वाले शंबुक कों मार डाला. क्या तपश्चर्यासे ऋषि बनना शंबुक का अपराध था? अनार्य शुद्र शंबुक कों मारकर राम ने कौनसी परंपरा की नींव रखी है. ब्राम्हणों के कर्मकांड पर विश्वास कर अपनी प्रजा कों मारना कौनसी धर्मशीलता है?. अपनी पत्नी सीता के चरित्र पर उंगलिया उठाकर उसे जंगल में छोड़ देने से राम क्या आदर्श पती बनने के लायक रह जाते है ?. क्या राम कों जननायक, सत्यशील एंव न्यायप्रिय राजा कहा जा सकता है?

श्रेष्ठता के गुण राम और रावण के पास कितने थे इसे तौलकर निर्णय लेना विवेक तथा समझदार नागरिक का कर्तव्य है. दशहरे कों जलाना ही है तो वर्तमान की बुराइयों कों जलावो, राम और कृष्ण के नामपर बदमाशी करनेवाले भोंदूसाधू, जनता और देश कों विभाजित करनेवाले व्यक्तियों और संस्थाओ की प्रतिमाओको जलाओ. भूतकाल की काल्पनिक मिथ्या कों वर्तमान का आदर्श मानना एक बेवखुबी है. व्यवस्था का फायदा उठानेवाली कुछ संस्थाए इस बेवखुबी कों आगे बढा रही है. लेकिन हर विवेक और बुध्दिवादी नागरिक का कर्तव्य है की ऐसी संस्थाओं कों रोके और उनसे सवाल करे. भारत के अनार्योंने (बहुजनोने) खुद कों आर्य होने की झूठी भ्रामकता पाल रखी है उसे खत्म कर दे. यही आज की जरुरत है.

बापू राऊत

९२२४३४३४६४ 

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