प.बंगाल चुनावी घमासान |
अब भारत के राजनीति ने नया मोड लिया है। हर कोई नेता भाजपा मे जाना चाहता है। ऊन्होने अपने पूर्वकालीन तत्वाधान और विचारधारा को नदियोमे डूबा दिया है. ऐसा क्यों हुवा ?. जब ये नेता वामपंथी पार्टीयोमे थे, तब वे विचारधारा और तत्वों के साथ नहीं बल्कि सत्ता के साथ थे. वामपंथियोंका वह दौर सत्ता का था। उनका वर्गसंघर्ष केवल सता और पदों के लिए था। जब वामपंथी और कांग्रेस के ब्राह्मणवादी लोग ममता बनर्जी के साथ केवल सत्ता और पदों के लिए चले गए. तबतक पश्चिम बंगाल में रामनाम और धर्म का राजनीति ने प्रवेश नहीं हुवा था। रामनाम और धर्म यह बहुसंख्यांक लोगोंके आस्था से निगडित है, इससे प.बंगाल में सत्तापरिवर्तन किया जा सकता है। भाजपा और आर एस एस का यह एक प्रकार का आविष्कार था। उन्होंने 2014 से धर्म और आस्था की राजनीति खेलना शुरू किया. गोदी मिडिया, सोशल मिडिया और ट्रोलिंग द्वारा भूचाल लाया गया, जिसके फायदे 2019 के लोकसभा चुनाव में दिखे। यह देखकर वामपंथ, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सत्ता और पदों के एक ही जाती के लालची लोगोने भाजपा में पलायन करना चालु किया। यहातक की एक समय का नक्सली मिथुन चक्रवर्ती को भाजपा में जाने के लिए किसी तरह का परहेज नहीं लगा। अभीतक धर्मनिरपेक्ष रही ममता बैनर्जी ने भी धर्म और जाती की राजनीति करना चालु की। अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं को करते हुए उन्होंने कहा, "कुछ लोग हिन्दू-मुस्लिम की बात करके विभाजन करने की कोशिश करेंगे। उन्हें बताएं कि मेरा भी उपनाम है। ब्राह्मण परिवार की एक बेटी हूं। "मै एक अच्छी हिंदू हु । बीजेपी के पश्चिम बंगाल आने के बाद, वह यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि वह बीजेपी से कम 'हिंदुत्ववादी' नहीं है। ममता बैनर्जी ने 19 मंदिरों और एक मज़ार पर जाकर नमाज़ अदा की।प.बंगाल में भाजपा ब्राह्मणों का जमावड़ा बन गया है. उनका हर नेता खुद को पहले ब्राह्मण और बाद में हिन्दू पहचान बनाने में गर्व महसूस कर रहा है। वही तीसरे मोर्चे की मुखिया मिनाक्षी मुखर्जी भी ब्राह्मण परिवार से हैं।लगता है, ब्राह्मण अपनी साख और शासक बने रहने की मजबूत कोशिश कर रहे है।
भाजपा
ने 2019 के लोकसभा चुनाव में
ममता-वामपंथी के गढ़ में आश्चर्यजनक प्रदर्शन
किया, जहां उसने 42
में से 18 सीटें जीतीं,
इस आधारपर भाजपा ने प.बंगाल जितने की निति बनाई. यहाँ भाजपा की जित भारतीय राजनीति
में हिंदुत्ववाद और गोलवलकर के विचारो पर मोहोर लगने जैसा होगा. यहासे भाजपा का
विजयी घोडा तामिलनाडू और केरल में 2025 तथा
2026 के विधानसभा चुनावो में पुरे बदलाव के साथ देखने के औसर मिलेंगे।
भाजपा जितने की और घुसपैठ करने की रणनीति बनाती है. महाराष्ट्र में तब शिवसेना के
साथ और तामिलनाडू में अब अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन कर अपने विस्तार भूमिका बनाई.
इस विस्तार में ब्राह्मण वर्ग के साथ उची जाती के लोग उनके नैसर्गिक वोटर बनते जा
रहे है. दक्षिण क्षेत्रीय दलों के दक्षिणवाद पर भाजपा-संघ का धर्मवाद भारी पड़ने के
अधिक आसार है. ऐसा क्यों हो रहा? यह बुध्दिजीवियो के लिए चिंतन का विषय है। दूसरी
ओर बंगाल की विरोधी पार्टिया (वामपंथ-कांग्रेस) के नेता भी एक ही जातीमें सिमटे है।
तथा उनका कार्यकर्ता और मतदाता बहुजन जातियोंसे होता है। वह कभी सत्ता, नेता और
मंत्री पद में नहीं दिखता, वह केवल योजना–परियोजनाओ
की ओर देखता है। उची जाती के नेताओंके भाषणोंसे वे अपना पेट भर लेते है। वही से
उन्हें विरोधी मतदाताओंसे भिड़ने और दंगा करने की स्फूर्ति मिलती है। इस आनंद में वे
बोस, भट्टाचार्या,
बैनर्जी, सेन,
चक्रवर्ती, रॉय जैसा शासक बनना भूल गए
है। सत्ता की सोच से कोसो कोसो दूर रहकर गधे बन बैठे है।
बापू राऊत
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