मा. कांशीराम और बामसेफ का एक अन्योन्य सबंध है। बामसेफ के निर्माण का मूलस्थान था महाराष्ट्र का पुणे शहर। बाद में इसे नई दिल्ली के करोलबाग में स्थानांतरित किया गया। बामसेफ का निर्माण पिछड़े वर्ग एंव वंचित समुदायोंके पढेलिखे शिक्षित कर्मचारियो द्वारा किया गया। उसका निर्माण पिछड़े शोषित समाज को जिसमे वे पैदा हुए, उनके गुलामी की दासता को खत्म करने के लिए किया गया था। इसी उद्देश को ध्यान में रखते हुए संगठन की संरचना को विकसित किया गया। बामसेफ वह संगठन है, जो तीव्र अभिलाषा, शोषण की आत्मपरीक्षा, श्रमसाध्य विवेचन, परखे हुए प्रयोग एंव उत्सर्जित धारणा से निकला था । समता आधारित शासन व्यवस्था और आर्थिक गैरबराबरी मिटाने के लिए की व्यवस्थापरिवर्तन उसका मकसद था।
बामसेफ का निर्माण अपनी दशा में सुधार के साथ अपने ऊपर होनेवाले अन्याय को समूल नष्ट करने के लिए अपने आप को एक सूत्र में बांधना था। अतएंव पिछड़े एंव वंचित समुदायोंकों अपने अधिकार और हितो की रक्षा के लिए खड़ा करने का था। यह काम शोषित समाज के शिक्षित कर्मचारी एंव बुध्दीजीवियोंकों करना था। क्योंकि प्राप्त परिस्थितिमे यही एक आत्मनिर्भर लोग थे, जो अपने अधिकार को समजने और दूसरोंकों समझाने वाले थे।
शोषित
वर्ग के कर्मचारीयोंकी सामाजिक ज़िम्मेदारी को देखते हुए महाराष्ट्र के पुना में 6
दिसंबर 1973 को उसे मूर्त रूप में बामसेफ नामक संगठन बनाने की अवधारणा दी गई। संगठन
निर्माण एंव विचारविमर्श के लिए गिनेचुने कार्यकर्ताओंकी पुना और दिल्ली में बैठके
होती रही। गहन विचारो के बीच बामसेफ का निर्माण तय किया गया। लगभग 5 साल बाद 6
दिसंबर 1978 में दिल्ली के बोट क्लब पर बामसेफ के विधिवत जन्म का महोत्सव मनाया
गया। बोटक्लब का यह नजारा देखकर इंदिरा गांधी भी चौक गई थी। यह एक बुध्दीजीवियोंका
(intellectual) संगठन था,
जो दिशा निर्देश दे,
नए अलग अलग संगठन बनाए और उसपर नियंत्रण रखे। व्यवस्था परिवर्तन के लिए बहुसंख्य
लोगोंकों सम्मिलित करे।
बामसेफ का एक संस्थापक मण्डल था। मान्यवर कांशीरामजी
बामसेफ के संस्थापक अध्यक्ष थे। कांशीरामजी के साथ श्री डी. के. खापर्डे, जनरल सचिव, (इसके पहले मधु परिहार, जनरल सचिव पद पर थे), श्री के.एस.भगत, सचिव, श्री
एम. एम.आटे, संयुक्त सचिव, श्री आर.
आर. पाटील, संयुक्त सचिव, श्री
बि.ए.दलाल, ऑडीटर। कार्यकारी मण्डल में कुल 51 सदस्य थे, उसमे 25 पदाधिकारी और 26 कार्यकारी सदस्य थे। इनमें 12 पदाधिकारी तथा 17 सदस्य महाराष्ट्र के विदर्भ
से थे । बामसेफ के निर्माण के शून्य दौर में दिनाभाना की भी मुख्य भूमिका रही है।
स्वाभिमान
का आंदोलन बिना स्वावलंबन के बिना नहीं चलाया जा सकता। भारत का पिछड़ा समाज सामाजिक
व्यवस्था का शिकार बन गया था। आज इस वर्ग के कही लोगोने अपने स्वार्थपूर्ण हितो के
लिए लगभग 10000 संगठन बनाकर अपने झेंडे के नीचे अपने आप को अलग अलग कर लिया है । यह
संगठन और उनके नेता उचि जाती के लोगोंकी राजनीतिक पार्टिया और संगठन के दमपर और उनके
पैसो के सहारे पर खड़े है। ऐसे नेता खुद के सिवा समाज का कैसे भला कर सकेंगे ?
ऐसे लोग दूसरोंके भरोसे आंदोलन तो खड़ा कर लेंगे,
लेकिन इस प्रकारका आंदोलन केवल प्रतिक्रिया के रूप में रहेगा। वह कभी आत्मनिर्भर
नहीं बन सकता। एक समय ऐसा भी आएगा की,
ये लोग आपस में भिड़कर अपने उद्देशोंकों भूलकर गुलामी को ही अपना सुकून मानकर अपनी
खिची तलवारे म्यान कर लेंगे । ऐसा इसीलिए होता है,
क्योंकि सत्तावर्ग इन्हे पदो और पैसो का लालच देकर चुप करवाता है । जो नहीं
मानेंगे, उन्हे पुलिसिया और जेल का डंडा
दिखाकर चुप कर लेंगे। यह सत्तावर्ग का शोषित वर्ग को गुलाम बनाकर रखने के नए अवजार
है। बामसेफ का बुध्दीजीवि वर्ग इससे वाकिफ था ।
मा.
कांशीरामने बामसेफ को मुख्य संगठन (मातृसंगठन) का दर्जा देकर उसके दस विभिन्न अंग
बनाए थे । वे इस प्रकार है, 1.
मासबेस्ड (बहुजनधारित),
ब्राडबेस्ड (कर्मचारी आधारित) और केडर बेस्ड (तत्ववादी लोग) ढ़ाचे का निर्माण
2.सचिवालय (जिला से राजधानी लेवल तक का प्रशासनिक स्तर) 3. संगठनात्मक प्रतिष्ठान
4. दिल्लीमे नियंत्रणालय सहित लगभग एक सौ पूर्ण विकसित कार्यालयो का जाल 5. बामसेफ
भ्रातृ-संघ (ब्रदरहुड- शहरी जनसंख्या से सबंधित) 6. बामसेफ दत्तक-ग्रहण
(एडाप्शन-संपूर्ण भारतीय जनसंख्या से सबंधित ) 7. चिकित्सा सहयोग एंव सलाह 8.
साहित्यिक स्कन्ध 9. परीक्षण स्कन्ध 10. बामसेफ स्वंयसेवक दल। यह बामसेफ के विविध
अंगो का ढ़ाचा था। उसे बामसेफ का मुख्य फ्रेमवर्क कह सकते है।
बामसेफ
को कैसे संचालित किया जाए। मूलत: बामसेफ की लिखित घटना
नहीं है। 14 आक्टोबर 1971 को एससी/एसटी/ओबीसी
और अल्पसंख्यांक समाज कर्मचारी कल्याण असोसियेशन को महाराष्ट्र के पुना के चैरिटी
कमिशनर कार्यालय में नोंदणीकृत किया गया था। बामसेफ को इसका विस्तारित पार्ट समझकर
उसके बनाए गए उद्दीष्टों एंव नियमोपर चल रहा था। कांशीराम ने 6 मई से 11 मई 1976
में महाराष्ट्र के देवराली में पाच दिन चले केडर कैंप में नीतिगत सूचना एंव बामसेफ
के विस्तार की योजना रखी गई ती। संगठन को संचालन करने के लिए नियमो,
विनियमों और कानूनों की जानकारी तथा,
पिछड़े वर्ग की विविध परियोजना, कार्यक्रमों
और बजेटो के कार्यान्वयन के लिए समर्पित और सुविज्ञ केडर बेस के निर्माण पर ज़ोर
दिया गया था।
बामसेफ
की अनिवार्यता: किसी धार्मिक,
संघर्षात्मक एंव राजनीतिक गतिविधियोमे भाग नहीं लेगा। बामसेफ मुख्यता कर्मचारियोंका
संगठन था, इसीलिए उसपर कुछ बंधन थे । उसका दृष्टिकोण
और गतिविधियोंकों देखते हुए संगठन को धर्मनिरपेक्ष रहना उचित था । लेकिन इसका
तात्पर्य यह नहीं था की,
बामसेफ का केडर
या कार्यकर्ता किसी में भी आस्था नहीं रख सकता। वास्तव में बामसेफ के सभी सदस्य
तथा कार्यकर्ता उनके जन्मजात या उनकी व्यक्तिगत पसंद के चयन किए हुए, किसी भी धर्म में आस्था रख सकते है। इतनाही ही नहीं, वे अपने जन्मजात अन्य धार्मिक संगठन के सक्रिय सदस्य या कार्यकर्ता भी हो सकते है। लेकिन एक बात निसंदेह है की, उनका धार्मिक विश्वास या आस्था संगठन के किसी भी कार्यकर्ता पर थोपा नहीं
जाएगा। बामसेफ के कार्यकर्ता के इस प्रकार की धार्मिक स्वतंत्रता का आशय यह कभी नहीं
रहेगा की, ब्राह्मणवाद के विषमतावादी तत्वोसे किसे भी
प्रभावित किए जाए या दूसरोंकों प्रभावित करने का प्रयास करने दे। वास्तविक तथ्य यह है की, बामसेफ के सभी सदस्यो और कार्यकर्ताओंका यह प्रयास होगा की, वह भारत में विषमता की जड़ ब्राह्मणवाद को समूल उखाड़ फेके। अतएंव बामसेफ
को रणनीतिक कारणोसे अधार्मिक एंव वैधिक कारणोसे असंघर्षात्मक और अराजनीतिक रखा गया
। कांशीराम एंव सदस्य मंडल का यह निर्णय
रणनीतिक एंव कूटनीतिक था।
बामसेफ की अंत:प्रेरणा : किसी भी संगठन को चलाने की एक अंत:प्रेरणा होती है। जाहीर है, बामसेफ की भी अंत: प्रेरणा होगी। बामसेफ की अंत:प्रेरणा डॉ. बाबासाहेब
आंबेडकर के जीवन और मिशन से सर्जित होती है। बादमे उसे बहुजन महापुरुषोंके
विचारोतक विस्तार किया गया। लेकिन मूल प्रेरणा डॉक्टर आंबेडकर के साथ साथ ज्योतिबा
फुले तक सीमित थी।
बाबासाहेब आंबेडकर ने
कहा था की, ‘सभी प्रकार के सामाजिक प्रगति की कुंजी राजनैतिक शक्ति है’। जाहीर है की,
किसी भी
राजनीतिक सफलता को अर्जित करने के लिए आंदोलनात्मक प्रकृतिका संघर्ष अनिवार्य होता
है। डॉ.आंबेडकर का संकेत भी यही था की, सामाजिक
प्रगति के लिए संघर्षात्मक और राजनीतिक गतिविधियोके लिए अपने आप को तैयार रखे।
इसीलिए बामसेफ ने अपने कुछ मार्ग बना लिए। उसमे एक, बामसेफ अपने विभिन्न अंगो के माध्यम से अपने ओजस्वी केडर बेस कार्यकर्ताओ
द्वारा शोषित समाज की गैर राजनीतिक जड़ो को मजबूत करना था। दूसरा, जातिविहीन समाज का निर्माण। तीसरा, समताधारित सामाजिक जड़ों को ऊर्जित
करने और उसमे सफलता पाने के बाद बहुसंख्य समाज को राजनैतिक तौरपर राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए संघर्षात्मक प्रक्रिया
को उत्साहित किया जाना था।
बामसेफ के अभिप्रेत अंग: पिछड़ो एंव वंचित समाज को संघर्ष के लिए उद्दीपित करने हेतु बामसेफ ने दस
अंगो का निर्माण किया । उसमे है, 1.जागृति
जत्था 2.बामसेफ सहकारिता 3. समाचार पत्र एंव प्रकाशन 4.संसदीय संपर्क शाखा 5. विधिक
सहयोग एंव सलाह 6.विद्यार्थी संघ 7.युवक संघटना
8.महिला संघ 9. औद्योगिक श्रमिक और 10. खेतिहर श्रमिक संघ
अपमान और क्षतियों को सहने के लिए तैयार रहे : याद
रहे वंचित एंव पिछड़े लोगोंके उत्थान के लिए काम करते समय महात्मा फुले और
बाबासाहाब आंबेडकर को अपमान से गुजरना पड़ा। उन्हे कभी कभी शारीरिक क्षतिया भी
झेलनी पड़ी। बामसेफ अपने कार्यकर्ता को कहता है, आप भी
सामाजिक एंव राजनैतिक रंगमंच पर काम करते समय अपमान और क्षति को सहन करने के लिए
तैयार रहे।
बामसेफ के केंद्रीय कार्यकारी समिती की पहिली मीटिंग नागपूर में 12-13 फरवरी 1979 को कांशीरामजी के अध्यक्षता में की गई थी।
अगर बामसेफ को पूर्णतया कार्यान्वित किया गया होता, तब उसका
स्वरूप
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के तौरपर दिखाई देता। कांशीराम द्वारा 6 दिसंबर 1981 मे DS4 का निर्माण सामाजिक एंव राजनीतिक संघर्षरत आंदोलनके लिए किया गया था, क्योंकि
आंदोलन करना स्वंय बामसेफ के कार्यक्षेत्र में नहीं था। “राजनीतिक सत्ता मे भागीदारी”
बामसेफ का एक उद्देश था। कांशीरामजी द्वारा 1984 मे बहुजन समाज पार्टी का निर्माण किया गया।
कांशीरामजीने बामसेफ के ध्येय और उद्देश को सफल बनाने के
लिए अपना पूरा जीवन व्यतीत किया। अपने मिशन को सफल बनाने के लिए उन्होने आजीवन
शादी नहीं करने की, खुद का बैंक अकाउंट न रखने की, अपने
रिश्तेदारों से सबंध न रखने और किसी भी मनोरंजन के समारोह में न जाने की शपथ ली
थी। यह उनका त्याग साहसी और दूसरोंके लिए प्रेरणादायी था। इसी कारण बहुजन समाज के
अनेकानेक कर्मचारियोने कांशीराम की प्रतिज्ञा को सामने रखकर अपनी सरकारी नौकरिया
छोड़कर सामाजिक एंव राजनीतिक आंदोलन में अपनी भूमिका अदा की। समाज की प्रगति एंव
शोषण मुक्ति के संघर्ष के लिए अपने सर्वस्व का बलिदान था। यह एक प्रतिक्रांति
(व्यवस्था परिवर्तन) के लिए सुप्त आंदोलन (salient revolution) का बिगुल था। लेकिन
क्या व्यवस्था परिवर्तन का यह आंदोलन सफल हो पाया ? यह एक
अनुत्तरित सवाल है।
क्या कांशीरामजी अपने बामसेफ के ध्येय में सफल हुए? कांशीरामजी
के समक्ष
उत्तर प्रदेश मे राजनीतिक सत्ता बसपा ने हासिल कर ली थी। पंजाब,
मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ से बसपा के लोग संसद मे खासदार बनने लगे थे। लेकिन, क्या यह
मुव्हमेंट को सफल करनेकी पर्याप्त उपलब्धि थी? केवल नंबर
के तौरपर राजनीतिक सफलता के पश्च्यात क्या कांशीरामजी अपने कार्य और वसूलो में सफल
हुए? क्या सामाजिक एंव व्यवस्था परिवर्तन के मायने उन्होने
बदल दिए ? क्या उन्होने अपने उद्देशोंकों या मॉडेल को खुद ही ध्वस्त
कर दिया।
कांशीरामजीने बामसेफ के साथ अन्य संगठन में यूनिटरी
सिस्टम लागू किया। यूनिटरी सिस्टम का सबंध संगठनोमे एकाधिकार से होता है।
कांशीरामजी सभी संघटनाए (बामसेफ, डिएस4, बसपा, बिव्हिएफ इत्यादि .. ) के अध्यक्ष बन गए थे। उन्होने
संघटनोका विकेन्द्रीकरण नहीं किया। बामसेफ को मातृसंघटन बनाने और बामसेफ द्वारा
संचालित सभी ऑफशूट संघटनों पर नियंत्रण रखनेका उनका इरादा था। कांशीरामजी, जीवन के
अंततक या समयबध्द आयुतक बामसेफ का सर्वेसर्वा बनकर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ जैसे
ऑफशूट संघटनोंका विकेंद्रीकरण कर इन्फ्रास्ट्रकचर पर ज़ोर देते। लेकिन यह नहीं हो
सका। बहुजन समाज पार्टी के स्थापना के बाद उन्होने अपनेही मुल उद्देशोसे किनारा कर
लिया । अपने ही संगठन “बामसेफ” को भूलकर उन्होने ‘पे बॅक टू
सोसायटी’ नामक नया अलिखित अदृश्य फ़ंड रेजिंग टूल बना दिया । कांशीरामजी
के समक्ष मुंबई में 22 दिसंबर 1985 में बामसेफ के विभाजन की रेखा खिच ली गई थी। इस
दिन उन्होने बामसेफ साथी डी.के.खापर्डे, डब्लू.डी.थोरात, बि.डी.बोरकर, एस.आर.
सपकाले, एम के चांदूरकर, वामन
मेश्राम, श्याम तागड़े, शिंगाड़े, मधुकर आटे, बि.डी.मानवटे, एस.के.पाटील, सोनोने, उबाले और डॉ.अमीताभ के साथ पहलेसेही तय की गई मीटिंग सब
के मौजूद रहने के बाद भी नहीं हो सकी। घटनाक्रम देखते हुए ये निश्चित तौरपर कहा
जा सकता है की, कांशीरामजी ने खुद को बामसेफ से अलग करने का मन बना
लिया था। उन्होने खुद उसके लिए वातावरन बना लिया था। खैर, यह अब इतिहास बन चुका है। लेकिन इतिहास, सीखने और
पिछली गलतिया सुधारकर नया इतिहास रचने के लिए होता है। कांशीरामजी पर
कार्यकर्ताओंका BSP, DS4, BRC, BVF और
PRESS इत्यादि संगठनोके लिए नए अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए
दबाव बढ़ रहा था। कांशीराम खुद कहते है, बामसेफ एक
बुध्दीजीवियोंका संगठन है। बामसेफ ही व्यवस्था परिवर्तन का केंद्र होगा। बामसेफ ही
मातृसंघटन रहकर अन्य संगठनो पर कंट्रोल रखेगा। फिर भी कांशीरामजीने बामसेफ से अलग
होने का कदम उठाया। उस समय बामसेफ की सामाजिक जड़े आधी अधूरी थी। बसपा के अलावा बामसेफ
के किसी भी एक अंग (विभाग) ने अपना कार्य करना शुरू नहीं किया था। कांशीरामजीने
बामसेफ को पूर्ण तरीकेसे विकसित नहीं होने दिया। बामसेफ को राष्ट्रीय स्वंयसेवक
संघ जैसा संगठन बनाने का उनका सपना धरा की धरा ही रह गया।
आखिर ऐसा क्यों हुवा । क्या कांशीरामजी को बसपा का अध्यक्ष बनकर
प्रधानमंत्री बनने के सपने दिखने लगे थे? शायद, उन्हे महसूस हुवा, बामसेफ का
सर्वेसर्वा बनकर वे राजनीतिक फायदा नहीं उठा सकते। इसीलिए बामसेफ छोड़कर वे बहुजन
समाज पार्टी के अध्यक्ष बन गए। इसके लिए बाबासाहब आंबेडकर का “राजनीतिक सत्ता
ही सब प्रश्नो की मास्टर चाबी है” यह वाक्य प्रचारित किया गया। उन्होने पैसो
के सोर्स के लिए “पे बॅक टू सोसायटी” की थीम बना ली। राजनीतिक सफलता के लिए
कांशीरामजीने अपनी जी जान लगा दी। कड़ी मेहनत की। उसके राजनीतिक फल भी मिलने लगे।
लेकिन उनका यह एक अधूरा कार्य था। उत्तर प्रदेश में सत्ता के बावजूद पिछड़ो एंव
वंचीतोंके विकास के लिए वंचितोंके खुद के शिक्षासंस्थाए,
सांस्कृतिक केन्द्र, आर्थिक रिसोर्स के केंद्र और उद्योगोंके
इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं बने। यह इसीलिए हुवा, क्योंकि
कांशीरामजी के पास व्हिजनरी और मिशनरी लोग नहीं बचे थे। जो थे, वे खुद राजनीति
के स्वहित (स्वार्थी तत्वोंका) का हिस्सा
बन गए थे। इसी कारण आजकी स्थिति में “बहूजन समाज पार्टी” बेहाल स्थिति में आखरी
सॉस ले रही है। मूल्यों, निरंतरता, त्याग, प्रणाली और संरचना के अभाव उसका नेतृत्व कमजोर और असहाय बन
गया है। कौन है इसका जवाबदेही?
इतिहास के इस दौर मे, आज बामसेफ
कहा है? कांशीरामजीने जिन बिंदुओंके के साथ बामसेफ छोड़ा था, उन बिन्दुओंको
पकड़कर उसे कोण चला रहा ? रिपब्लिकन पार्टी जैसे बामसेफ के कितने सारे गुट बन गए
है? सब की विचारधारा आंबेडकरवाद है, फिर भी वे
बटे हुए है। क्या ऐसे बटे हुए संगठन बहुसंख्योंके लिए सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक
एंव आर्थिक क्रान्ति ला पाएंगे? इतिहास में इस तरह की भ्रांति कहीपर भी दर्ज नहीं है।
हाँ, बटे हुए लोगोंका सर्वनाश हुवा है, इसका
इतिहास दर्ज है। वज्जियोंका लिच्छवि राज्य ध्वस्त हो गया था। भविष्य में भारत एक
हिन्दू राष्ट्र में तब्दील होने जा रहा है। नई व्यवस्था प्रस्थापित होगी। उसमे
पिछड़ो और वंचितोंका स्थान क्या होगा? बटे हुए इन संगठनोकी क्या भूमिका होगी? कोई नहीं
जानता!
वंचित पिछड़ोंके रोज नए नए नेता और संगठन निर्माण हो रहे
है? इसमे कुछ सत्ता एंव संपति विवश लालची, बेवकूफ और बदमाश
लोग है, जो आपस में टकराकर शोषकवर्ग का काम आसान कर रहे है। कितने
ऐसे संगठन है, जो नेताओंके साथ नष्ट हो जाते है। लेकिन यह संगठन एकता एंव
संपूर्ण विकास के संरचना को नष्ट कर देते है। ऐसे में बामसेफ ही आशा की किरण होगी।
लेकिन उसे, कांशीरामजीने जो बिंदु निर्धारित किए थे, उसे मजबूत
करना होगा। कांशीरामजी द्वारा की गई भूल और नुकसान से सीख लेकर संगठनके मजबूती के लिए
खामियोंकों पहचानकर आगे बढ़ना चाहिए। उन्होने
जो ऑफशूट संगठन बनाए थे उसे पारदर्शिता एंव नियमो के साथ
बुद्धिवादियों/कार्यकर्तों के सामने रखना चाहिए। जब नियमोंका पालन, उच्चतम
कमिटी की नैतिकता, उनका त्याग, नेताओंके कार्यकाल का निर्धारन और वृध्दापकाल में उनके
कार्यपालन की स्पष्टता जब दिखेगी, तब लोग संगठन के साथ जुड़ेंगे और संगठन की विश्वासाहर्ता
बढ़ेगी। नेतृत्व और संगठन व्यक्तिबेस पर नहीं, नियमो और
तत्वोके के साथ बनना और चलना चाहिए। संगठन में सुविज्ञ, अलग अलग विषयोंके
जानकार और संयमित कार्यकर्ता चाहिए। संगठन
कभी न टूटे इसकी ज़िम्मेदारी हर कार्यकर्ता की होनी चाहिए। ध्यान रहे, कभी भी संगठन
किसी भी विद्वान व्यक्ति से बड़ा होता है। इसीलिए संगठन में अनबन होने के बाद व्यक्ति
के नहीं, संगठन के साथ खड़ा होना चाहिए। और किसी द्वारा समांतर संगठन निकालने
का पुरजोर से विरोध होना चाहिए। टूटफूट के बिना संगठन शेकडो साल चलते रहना चाहिए। आरएसएस
(राष्ट्रीय स्वंयसेवक संस्था) जैसे संस्थाओसे से संगठन कैसे चलाना चाहिए इसकी सीख लेनी
चाहिए।
व्यवस्था परिवर्तन का कार्य पहिली से तीसरी पीढ़ीतक संभव
नहीं होता। उन्हे निरंतर संघर्षरत रहकर
विचारोंका निर्माण, संसाधनो का जुटाव, ईमानदार
एंव संघर्ष के लिए समर्पित केडरबेस लोग, रोज के कार्योंके लिए इन्फ्रास्ट्राक्चर के निर्माण में व्यतीत करना होता है। उसके बाद ही
व्यवस्था परिवर्तन की निरंतरता चालू होने लगती है । मजबूत संगठन के सिवा व्यवस्था परिवर्तन, समतावादी व्यवस्था
का निर्माण, धर्मनिरपेक्ष समाज की निर्मिति और सहिष्णु मूल्योंकी उच्चतम
स्थापना नहीं हो सकती। तत्वोमे कुछ बदलाव के
साथ बामसेफ यह कर सकता है। लेकिन जरूरत है, एक साथ आकर
रसायन बनानेकी, वह एक ऐसा रसायन हो जिसमे किसिकी छ्टा न हो। भविष्यकाल के “सर्वसमावेशक भारत निर्माण” के लिए पारदर्शिता एंव विश्वास के
साथ बामसेफने आगे बढ़ना चाहिए। बहुसंख्य पिछड़ो और वंचितों के राष्ट्रीय हित, उनका सर्वोपरि
विकास, समानता, आत्मसम्मान एंव आत्मनिर्भरता के लिए यह आवश्यक है। विषमता
एंव श्रेष्ठतावादी कुछ तत्वोंकी जागीरदारी और ठेकेदारी नष्ट करने के बाद ही यह संभव
है।
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