Sunday, January 1, 2023

हिंदुओं का बौद्ध धर्म में परिवर्तन और उसके कारण

बाबासाहेब अंबेडकर ने पिछड़े वर्ग को संबोधित करते हुए कहा कि, धर्म आपका प्रिय विषय है, इसलिए आप हिंदू धर्मावलंबियों से धार्मिक और सामाजिक अधिकार मांगते हैं। लेकिन वे आपको वह अधिकार देने के लिए तैयार नहीं हैं। इसका मतलब है कि, आप धर्म से हिंदू नहीं हैं। आप जिस हिंदू धर्म के हैं, उसी के लोग आपसे नफरत करते हैं। वे आपको शत्रु मानते हैं। ऐसे में आपको अपने लिए कोई नया रास्ता तलाशना चाहिए। उन्होंने कहा, हिंदुओं के पैर पकड़कर और बिना कारण भीख मांगकर अपनी मानवता की प्रतिष्ठा को कम मत करो। उन धर्मोंपर विचार करें, जो आपके सामाजिक सुधार और उत्थान पर ध्यान केंद्रित करते हैं। बाबासाहेब अंबेडकर के धर्मांतरण के 66 साल बाद भी हिंदू धर्म, उसकी संस्कृति और धार्मिक लोगों के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया है। आए दिन कहीं न कहीं दिल दहला देनेवाली घटनाएं हो रही हैं। इससे पिछड़े वर्ग के समाज में बेचैनी के कारण हिंदू धर्म छोड़कर अन्य धर्मों में जानेवालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। मानवता में रुचि रखनेवाले कई प्रसिद्ध लोगों ने भी बौद्ध धर्म की दीक्षा ली है।

धर्मांतरण की घटनाएं:

भारत का पहला बड़ा धर्म परिवर्तन 14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में हुआ लगभग 5 लाख लोग  बाबासाहेब अम्बेडकर के साथ धर्म परिवर्तित हुए थे बाबासाहेब अम्बेडकर इस धर्मांतरण के मुख्य प्रवर्तक थे। हिंदू धर्म में अपने बुरे अनुभव के कारण, उन्होंने घोषणा कि, "मैं एक हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं, लेकिन मैं एक हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा। क्योकि, किस धर्म में जन्म लेना, यह मेरे हाथों कमे नहीं था, लेकिन मरना कहा है, यह मेरे हाथो में है आज पूरे देश में कई जगहोंपर बौद्ध धर्म अपनाने वालोंकी संख्या बढ़ी है। ये धर्मांतरण बिना छुपाये, सरकारी दप्तर  में दर्ज कराकर किये जा रहे हैं। इसमें पैसे की लालच और जबरदस्ती नहीं दिखती, बल्कि इस धर्मांतरण में सहजता और मानसिक गुलामी से मुक्ति का आनंद देखा जा सकता है। बौद्ध धर्म भारत की भूमि में पैदा हुआ धर्म है। आज के भारतीय लोगों के पूर्वज बौद्ध थे। इस दावे को नकारा नहीं जा सकता।

  

पूर्व सांसद उदित राज ने 2001 में 10,000 लोगों के साथ दिल्ली में बौद्ध धर्म अपना लिया था। गुजरात के उना मे 300 हिंदुओं ने बौद्ध धर्म (वर्ष 2016) की दीक्षा ली थी। गोरक्षकों द्वारा की गई हत्याओं के विरोध में यह धर्म परिवर्तन किया गया था । सहारनपुर में 180 हिंदुओं (वर्ष 2017) और 2018 में उत्तर प्रदेश में बहरीच की पूर्व सांसद सावित्रीबाई फुले ने कानपुर में दस हजार लोगों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया। खासकर 2021-22 में धर्मपरिवर्तन की दर में और बढ़ोतरी देखी जा रही है। राजस्थान राज्य के बांरा में 250 लोगों, भूलो में एक परिवार के 12 सदस्यों और भरतपुर जिले में सामूहिक विवाह मेले में 11 नवविवाहित जोड़ों ने बौद्ध धर्म अपनाया। 17 अक्टूबर, 2022 को कर्नाटक के शोरापुर में 450 लोगों ने यह कहते हुए बौद्ध धर्म अपना लिया कि, उन्हें हिंदू धर्म में अपमान और उपहास के अलावा कुछ नहीं मिला। उत्तराखंड के काशीपुर में 300 और लखनऊ में हजारों हिंदुओं ने बाबासाहब की दी हुई 22 प्रतिज्ञाओंको  पढ़कर  बौद्ध धम्म दीक्षा ली। गुजरात राज्य के बालासिनोर, अहमदाबाद, दानलीपाड़ा, कलोल और सुरेंद्रनगर में 396 लोगों ने बौद्ध धम्म अपनाया । दिलचस्प बात यह है कि, उन्होंने  धर्मांतरण के बाद अपने घरों से देवी-देवताओं की मूर्तियों और तस्वीरों को हटा दिया और उन्हें नदी के प्रवाह में विसर्जित कर दिया।

 

दीक्षाभूमि नागपुर (वर्ष 2022) में 200 हिंदुओं के धर्मांतरण में नवसृजन ट्रस्ट की प्रमुख मंजुला प्रदीप सहित 90 गुजराती और 40 कर्नाटक के हिंदू शामिल थे। औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में हुए धर्मंदीक्षा में  407 हिंदुओं ने दीक्षा ली। छत्तीसगढ़ (राजनांदगांव) में कई लोगों ने महापौर की उपस्थिति में बौद्ध धर्म अपना लिया। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा आम आदमी पार्टी के मंत्री राजेंद्र पाल की हुई। उन्होंने,14 अक्टूबर 2022 को 10000 हजार से अधिक लोगों के साथ आयोजित बुद्धधर्म दीक्षा समारोह में बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा दी गई 22 प्रतिज्ञाओं का पठन  किया थाइसपर भाजपा के लोगों ने हंगामा खड़ा किया और केजरीवाल द्वारा इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया।

धर्मांतरण  के कारण

हमें भी आपकी तरह मनुष्य के रूप में जीने का अधिकार है। हिंदुओं के रूप में आप जिस धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता का आनंद लेते हैं, वही हम हिंदुओं के रूप में लेना चाहते हैं। यह पिछड़े और अति पिछड़े की मांग है। लेकिन आजादी के अमृत महोत्सव तक देश में ख़ास हिन्दुओ द्वारा दूसरे हिंदू पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं। अत्याचारोंकी इन घटनाओं के कारण लोगों में बेचैनी बढकर धर्मांतरण की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। उनमें से कुछ कारण इस प्रकार के हैं।

दलितों को कर्नाटक के शोरापुर (अमलिहला गांव) में एक स्थानीय मंदिर में प्रवेश से वंचित कर दिया गया। कोलार जिले में एक मंदिर में देवी के स्तंभ को छूने पर एक व्यक्ति पर 60 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया। उसी तालुक के किरधल्ली गांव में अगर किसी दलित के घर में किसी की मौत हो जाती है, तब  गांव के सवर्ण लोग अपने सारे होटल और दुकानें बंद कर देते हैं. लेकिन उची जाति के लोगोंकी मृत्यु के बाद ऐसा नहीं किया जाता। इसका कारण यह है कि, अंतिम संस्कार के लिए बाहर  गांव से आनेवाले दलित किसी भी कारण से दुकान में आकर स्पर्श न करें। चामराजनगर जिले के हेगगोत्रा ​​गांव में (18 नवंबर, 2022) एक दलित महिला ने पानी पीने के लिए पानी की टंकी को छुआ, तब  उसे गाली देकर टैंक को गोमूत्र से साफ किया गया। राजस्थान के एक दलित युवक जितेंद्रपाल मेघवाल की मूंछे रखने और  सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के कारण हत्या कर दी गई। जालौर के एक स्कूल में मटके का पानी पीने को लेकर टीचर की पिटाई से इंद्र मेघवाल की मौत हो गई। एक आईपीएस पुलिस अधिकारी को शादी में घोड़े की सवारी करने पर इसलिए आपत्ति की गई की, क्योंकि वह दलित था। मध्य प्रदेश के भिंड (दबोहा) में दिलीप शर्मा नाम के व्यक्ति के साथ विवाद करने से पंचायत ने देड लाख रुपये देने का जुर्माना लगाकर दो दलित भाइयों के बाल काट कर उन्हें  गांव में घुमाया गया

 

दलित महिलाएं और लड़कियां एक ऐसा वर्ग बन गया हैं की, जिसका उत्पीड़न का शिकार होना तय है। बरेली जिले में, बलात्कार पीड़िता के माता-पिता द्वारा समझौते से इंकार करने पर उनकी हत्या कर दी गई। इसी जिले में 10 वीं कक्षा में पढ़ने वाली एक ऊंची जाति की छात्रा से बात करने पर एक दलित लड़के के गले में जूतों का हार डालकर गांव में घुमाया गया  द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 14 साल की माया के स्कूल में ऊंची जाति के छात्र उसके साथ दुरी बनाते थे  उसे ताना मारा जाता था कि, तू दूर रहा कर, तू नीच जाति की है।

 

मध्य प्रदेश के 10 जिलों में चाइल्ड राइट ऑब्जर्वेटरी और मध्य प्रदेश दलित अभियान संघ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 92 प्रतिशत दलित बच्चों को स्कूल में पानी पीने की अनुमति नहीं है। 80 फीसदी गांवों के लोगों को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं है। गांव में बच्चों का अच्छा नाम रखने पर परिवार को पीटा जाता है। तमिलनाडु में दलित सरपंच को झंडा फहराने की इजाजत नहीं मिली। तमिलनाडु अस्पृश्यता मोर्चा द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 86 पंचायतों में से 20 दलित पंचायत प्रमुखों को कुर्सियाँ प्रदान नहीं की गईं। साइनबोर्ड पर पंचायत प्रमुखों की सूची में दलित पंचायत प्रमुखों के नाम शामिल नहीं किए गए। कुछ स्कूलों में सिर्फ दलित छात्रों से ही यूरिनल और शौचालय साफ करवाए जाते हैं। शिक्षकों में जातिगत भेदभाव का यह एक बड़ा नमूना है।

तथाकथित हिन्दू कब सोचेंगे

वास्तव में, एक हिंदू दूसरे हिंदू पर इतनी क्रूरता से अत्याचार क्यों करता है? इस पर विचार कर, उसे रोकने की जरूरत है। जो लोग अत्याचार करते हैं, उन्हें सामाजिक बहिष्कार के अधीन किया जाना चाहिए और अदालतों द्वारा कड़ी सजा दी जानी चाहिए। कुछ संगठनों को पता होना चाहिए कि, अत्याचारियों के गले में माला डालने से देश का नुकसान होगा। इस बात पर विचार करने की आवश्यकता है कि, कुछ जातियों के अपने अधिकारों की मांग करने पर उनके सिर फोड़ने के लिए पत्थर उठाने की हिंमत कैसे बढ़ गई है

 

अब लोग यह समझने लगे हैं कि, धार्मिक परंपराओं के माध्यम से हमेशा अपमानित करने और मानव अधिकारों हनन करनेवालों की संस्कृति से छुटकारा पाने के लिए, धर्मांतरण ही एकमात्र रास्ता है। ऐसे लोगोंको अपनी सोच द्वारा कौन सा धर्म अच्छा एंव बुरा है, इसका मूल्यांकन करने पर नये धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता  होनी चाहिए। यदि कोई आदमी, अपने वर्तमान धर्म में अपमान की स्थिति में नहीं रहना चाहता, और वह दूसरे धर्म में प्रवेश कर गया है, ऐसे स्थिति में दूसरे लोगोंको वहा झाँकने की क्या जरुरत है? ऐसे लोगोंको, यह बताने की जरुरत है कि, आप हमारे स्वामी बनें, यह आपके हित में होगा। लेकिन हम आपके गुलाम बनें रहे, यह हमारे हित में नहीं है

 

लेखक: बापू राऊत

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