यह नहीं कहा जा
सकता कि देश में हो रहे उपचुनावों के नतीजे आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के
लिए संभावित निर्णायक बिंदु हैं। क्योंकि यह कई बार साबित हो चुका है कि पिछले
उपचुनावों और उसके बाद हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों के नतीजे उलटे हुए थे.
हालाँकि, जनता की राय अलग होती है। कब किसको सत्ता से
हटा दें पता नहीं! अब तो मतदाता अपने दैनिक जीवन से जुड़े मुद्दों के साथ-साथ
धार्मिक और सामाजिक मुद्दों के बारे में भी सोचने लगा है। लेकिन जो विपक्षी दल
सत्ता में नहीं हैं उनके लिए उपचुनाव में मिली जीत से गुदगुदी और खुशी होना
स्वाभाविक प्रक्रिया है. इससे विपक्षी दल अगला चुनाव और अधिक मजबूती से लड़ेंगे.
हालांकि 8
सितंबर को घोषित उपचुनाव के नतीजे मिले-जुले रहे हैं, लेकिन ये अगली विधानसभा और लोकसभा की दिशा के लिए निर्णायक
हैं. फिलहाल, बीजेपी के विरोध
में विपक्षी दल एकजुट नजर आ रहे हैं, उस लिहाज से
संभावित भविष्य पर चर्चा की जरूरत है. सात विधानसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनाव में
इंडिया गठबंधन ने कुल 4 सीटें और बीजेपी ने 3 सीटों पर जीत हासिल की है. इस
उपचुनाव में बीजेपी की हार होती नहीं दिख रही है, उन्होंने अपनी पिछली 3 सीटें
बरकरार रखी हैं. हालाँकि भाजपा पश्चिम बंगाल में धुपगुड़ी निर्वाचन क्षेत्र में तृणमूल
कांग्रेस से हार गई, लेकिन उसने
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को हराकर त्रिपुरा में बॉक्सनगर निर्वाचन क्षेत्र
जीत लिया। उत्तराखंड में बागेश्वर और त्रिपुरा में धनपुर निर्वाचन क्षेत्र बरकरार
रखा। कांग्रेस ने केरल में पुथुपल्ली और झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास डुमरी सीट
बरकरार है। इसलिए नतीजे सबके पास बराबर के हैं, केवल वोटों का प्रतिशत ही बदला है.
और यही वोटो के प्रतिशत आनेवाले चुनावों में जिताने का फॉर्मूला तय करनेवाले है.
उत्तर प्रदेश की घोसी सीट का नतीजा भारतीय जनता पार्टी के लिए चौंकाने वाला और इंडिया अलायंस के लिए राहत देने वाला है। क्योंकि घोषी सीट पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार ने बीजेपी के दलबदलू और मजबूत माने जानेवाले दारासिंह चौहान को 42,759 वोटों से हरा दिया. दारासिंह चौहान की सामाजिक और राजनीतिक शुरुआत बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम से हुई है। वह बहुजन समाज पार्टी के नेता और विधायक के तौर पर जाने जाते थे. लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते उन्होंने बसपा, सपा और भाजपा का दामन थाम लिया, घोसी में मौजूदा सपा पार्टी से विधायक होने के बावजूद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गये थे । मुख्यमंत्री योगी, दोनों उपमुख्यमंत्रियों और विशेष रूप से ओ.पी. राजभर और संजय निषाद ने उपचुनाव में दारासिंह चौहान को जिताने के लिए अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी थी। घोसी में बीजेपी प्रत्याशी की हार से ओपी राजभर, दारासिंह चौहान, संजय निषाद जैसे दलबदलू नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओ को प्रभावित किया है. लेकिन उपाचुनाओ के नातिजेसे ऐसा लगता है कि, मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी और भाजपा की कमिया उजागर होकर खुद मतदाताओने पार्टियोंके प्रति अपने मनसूबे अधिक स्पष्ट कर दी है।
घोसी संसदीय क्षेत्र का परिणाम बहुजन समाज पार्टी के लिए भी चेतावनी है। बसपा प्रमुख मायावती ने घोसी में अपना उम्मीदवार न उतारते हुए समर्थकों से नोट पर वोट करने को कहा था. लेकिन विजयी वोटों की संख्या से पता चलता है कि, पिछले 2022 के चुनावों में जिन 21.12 प्रतिशत मतदाताओं ने बसपा का समर्थन किया था, उन्होंने उससे अपना मुंह मोड़ लिया और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार का समर्थन खुलकर किया। जबकि नोटा को सिर्फ 1728 वोट मिले. इसका मतलब यह है कि, आगामी लोकसभा चुनाव में मायावती के 'अकेला चलो रे' फॉर्मूले को तगड़ा झटका लगेगा और बसपा के मौजूदा 10 सांसदों की संख्या शून्य भी हो सकती है। इसलिए अपने परंपरागत वोट बैंक की बदली मानसिकता और देश की मौजूदा हालात को भांपते हुए मायावती को अपनी रणनीति बदलनी चाहिए.
यदि इंडिया गठबंधन के घटक दल, मुख्य रूप से कांग्रेस, आप, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना और वामपंथी दल 2024 के लोकसभा के लिए भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ केवल एक उम्मीदवार खड़े करते हैं, तब अगले लोकसभा चुनाव में एक अलग तस्वीर देखी जा सकती है. इसकी एक झलक घोसी विधानसभा क्षेत्र के मौजूदा उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार को मिले 37.54 प्रतिशत की तुलना में समाजवादी पार्टी के 57.19 प्रतिशत वोटो से देखी जा सकती है। हालांकि, अगर हम 2022 के चुनाव में बीजेपी को मिले 33.57 फीसदी वोट और 2023 के चुनाव (37.54 फीसदी) में मिले वोटो की तुलना करें, तो बीजेपी ने अपने वोट बैंक में 3.97 फीसदी का इजाफा किया है. जबकि उत्तराखंड के बागेश्वर निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस ने 2022 (34.5 प्रतिशत) की तुलना में 2023 (45.96 प्रतिशत) में 11.46 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि की है, लेकिन उसके बावजूद, कांग्रेस हार गई क्योंकि भारतीय जनता पार्टी का प्रतिशत पिछले चुनाव की तुलना में 3.19 प्रतिशत का ज्यादा रहा है. इस चुनावी आंकड़े से पता चलता है कि बीजेपी के वोटों की संख्या बिना किसी कमी के बढ़ रही है. यह खंडित विपक्ष के लिए चिंता का बड़ा विषय है।
इसके आधार पर, यदि विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनाव में बिना गठबंधन के उतरते हैं, तो उन्हें अनिवार्य रूप से हार का सामना करना पड़ेगा और भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापस आ जाएगी। उसके बाद, जैसा कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे कहते हैं, भाजपा के सत्ता वापसी पर देश में चुनाव की संभावना ख़त्म हो जायेगी ! इस डर का परीक्षण किया जाएगा या नहीं, यह बाद में स्पष्ट हो जाएगा। लेकिन अगर विपक्षी दलों ने भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विरोध के तौर पर केवल एक उम्मीदवार नहीं उतारा, इस स्थिति में, लोकसभा के कही जगहपर उत्तराखंड की बागेश्वर विधानसभा के नतीजे जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी. फिर, २०२४ के बाद का भारत कैसा होगा इसका आकलन करना सोच के बाहर होगा. देश की बागडोर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के हातो चली जाएगी. भारत मनुस्मृति के नियमोसे चलने लगेगा. यह एक सपने की वास्तव धरातल होगी.
बापू राऊत
लेखक व
विश्लेषक
९२२४३४३४६४
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