Wednesday, January 3, 2018

आद्य शिक्षिका सावित्री ज्योति फुले


सावित्रीबाई फुले कों भारत की आद्य शिक्षिका कहा जाता है जिस समय में भारत की नारी कों चूल्हा और बच्चो तक सिमित कर दिया था मनुस्मृति ने नारी कों बेडीयोंके जंजाल में कैद कर रखा था, उस समय सावित्रीमाई फुले ने सामजिक क्रांती का बिगुल बजा दिया था इसके लिए उन्होंने  सनातनी ब्राम्हण समाज का अपमान और गाय के गोबर का मार भी सह लिया लड़कियोंको पढाने के लिए जाते समय उनके साडी पर गोबर और मिटटी फेकी जाती थी फिर भी वह पीछे नहीं हटी आज की स्त्री जिस शिक्षा और अन्य स्वतंत्रता की हकदार बनी है उसकी जननी कोई और नहीं सावित्रीबाई फुले है उसीके कारण वह खुले आँगन में साँस ले रही है अन्यथा मनुस्मृति के बंधन में वह आज भी जखडी रह जाती स्त्रियोंको आजच्या स्त्रियांना जे स्वातंत्र्याचे जीवन जगायला मिळत आहे त्याचे श्रेय केवळ सावित्रीबाई फुलेना जाते लेकिन आज की स्त्री उस काल्पनिक सरस्वती का गुणगान गाती है, जिसने उनके  लिए कुछ नहीं किया यह एक दू:खद बात है
सावित्रीमाई के समकालीन लोगोने उनकी चारित्र्यशीलता, गुणसंपन्नता तथा धीर गंभीरता पर टिप्पणी की है गोविंद गणपत काळे लिखते है, महात्मा ज्योतीराव फुले जिस चोटीपर पहुचे है उसमें बड़ा योगदान सावित्रिमाई का रहा है वह कभी भी घुसा नहीं करती थी घर में आए मेहमान का सन्मान करती थी सावित्रीबाई कों लोग चाची के नाम से पुकारते थे स्त्री शिक्षण के विस्तारके बाद शिक्षित महिलाओं में उनके प्रति पूज्यभाव निर्माण हो गया था पंडिता रमाबाई और आनंदीबाई जोशी उनसे मिलने के लिए आया करती थी व्हाईसराय की पत्नी भी उ़नके यहा चर्चा के लिए आती थी
महात्मा फुले के मृत्यु के बाद उनके भाई बाबा फुले व महादबा फुलेने उनके दत्तकपुत्र यशवंतराव कों ज्योतिबा का शव उठाने के लिए विरोध किया था और यह अधिकार भाई होने के कारण हमारा है यह भूमिका ली थी इस नाजुक परिस्थिति में उन्होंने बाबा फुले और महादबा फुले का विरोध कर खुद ज्योतिबा फुले के शव के साथ आगे चलने का निर्णय लिया और अन्य जाती समूह के लोगो कों ज्योतिबा का शव उठाने कों कहा था ज्योतिबा फुले के भाईयोने उनके जीते जी फुले के सामाजिक कार्य का विरोध किया था. मृत्यूके बाद सर मुंडवाना तथा चावल का पिंड बनाकर कौओ के सामने डालने के प्रथा कों सावित्री बाईने ठुकरा दिया था सावित्रीमाई का यह निर्णय क्रांतिकारी था

दुसरे समकालीन लक्ष्मणराव देवराव ठोसर लिखते है, ज्योतिबा फुले कांट्राक्टर थे वे अपना पैसा समाज कार्य के लिए खर्च करते थे ज्योतिबा फुले के मृत्यु के बाद सावित्रिमाई ने अपने दत्तक पुत्र यशवंत कों डाक्टर बनाया लक्षमण कराडी जाया लिखते है, जब पूना में प्लेग की बिमारी आई थी तब लोग बिमारिसे मरते थे उन्होंने प्लेग के मरीजो कों इलाज करवाने अपने पुत्र यशवंत के दवाखाने में खुद उठाके लाकर उनकी सेवा करती थी इस प्लेग में ही सावित्रिमाई फुले तथा उनके दत्तक पुत्र डाक्टर यशवंत बीमार हो गए इस तरह वे मरीज की सेवा करते करते दोनों का देहावसान हो गया


सावित्रीबाई फुले आज के स्त्री के लिए मार्गदर्शक तथा प्रेरणास्थान बन गई है सावित्रीमाई फुले का चरित्र पढना और उसे समझ लेना आत्यंतिक जरुरी है सावित्रीमाई के सदगुण बहुजन तथा भारतीय महिलाओमे पुनरुज्जीवित होने से नई समाजव्यवस्था की नीव डालने में समय नहीं लगेगा इसका उदहारण है उनकी शिष्या रही ताराबाई शिंदे और मुक्ता इन दोनों ने धर्म के ठेकेदारों के सामने वर्णव्यवस्थापर सवाल खड़े किये थे क्या आज की महिला  सावित्रिमाई की शिष्या बनकर व्यवस्था और धर्म के ठेकेदारों तथा राजसत्ता के तानाशाह कों सवाल पुछेगी? 

लेखक: बापू राउत 

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