बिरसा मुंडा केवल आदिवासियोके महानायक
नहीं थे, वे तो महानायक थे मानवता के. उन्होंने
आदिवासीयोमें पनपे अंधविश्वासो से मुक्ति दिलाई और उनमे आत्मविश्वास और स्वाभिमान
कि ज्योत जलाई थी. आदिवासी आंदोलन के सूत्रधार बिरसा मुंडा को आदिवासी लोग
भगवान मानते है.
बिरसा मुंडा ने देखा, इस देश के
जमीनदार और साहुकारो ने अदिवासियोपर जुल्म किये. जमीनदार तो अदिवासियोसे उनके खेतों में काम करवा लेते और
उसके बदले में बहुत कम अनाज देते थे जिसमे
उनका गुजर हो ही नहीं पाता था. साहूकार उन्हें ऊँची ब्याज दर पर पैसा उधार देकर उनकी
बहु बेटियों की इज्जत से भी खिलवाड करते थे.
बिरसा मुंडा ने सबसे पहले अदिवासियोमे आत्मविश्वास पैदा किया. उन्होंने
ईसाई धर्म तथा हिंदू धर्म के बारकियोको देखा था. ये दोनों धर्म अपने
स्वार्थ के लिए आदिवासियोका इस्तेमाल कर उनका शोषण करते थे. बिरसा मुंडा समज गए थे
की अदिवासियो की दुरदर्शा के लिए उनका गरीब व अनपढ़ होना और
दूसरा उनका आध्यात्मिक आधार स्पष्ट नहीं होना था.
जमीनदारो के साथ साथ अंग्रेजो ने भी
आदिवासियोके जंगल छीन लिए थे, उन्हें रोजगार नहीं मिल रहे थे, आदिवासी भूखे मरने
लगे थे उनके हाल बेहाल हो गए थे. सवर्ण,
जमीनदार, महाजन आदिवासियोको सदा के लिये अपना गुलाम बनाकर रखना चाह्ते
थे. जमीनदार आदिवासियों से बेगारी काम
करवाते थे और काम के बदले पैसे भी नहीं देते थे. महाजन कर्ज देकर ऐसा दबाव बनाता
था की, आदिवासियोकी के जीवन एकमात्र सहारा जमींन का टुकड़ा भी उनसे छीन जाता था. अपने ही देश में इतनी दुर्दशा
और सुननेवाला कोई नहीं, कोई न्याय नहीं, कोई इंसानियत नहीं. यह आदिवासियों का हाल
था.
बिरसा मुंडा ने अदिवासियोसे कहा था,
अपने अधिकारों के लिए हमें स्वंय लढना होगा, हम किसी से कमजोर नहीं है. हम उतने ही बलिष्ठ और मजबूत है जितने अंग्रेज, जमीनदार या
साहूकार. हमें सत्य की जमींपर पैर टिकाकर इनके सामने तनकर खडा होना है और अपने अधिकारों के लिए लढना है. हमारे अंदर मौजूद हमारी सारी शक्तिया
सक्रीय होगी तो इश्वर भी हमारी मदद करेगा और हम वह सब अवश्य हासिल कर लेंगे जो हम
चाहते है.
बिरसा मुंडा आदिवासियोको कहते है, मै
तुम्हारे हाथ में चाँद उतारकर रख दूँगा, मै तुम्हे गोद में लेकर खिलाऊंगा नहीं,
झूठी बात कहकर गुमराह भी नहीं करूँगा, जमीनदार और साहूकार
सभी हमारे शत्रु है. अंग्रेजो की सरकार हमारी सबसे बड़ी
दुश्मन है. हम उसे उखाड फेकेंगे और स्वतन्त्र मुंडा राज की
स्थापना करेंगे. अंग्रेजो की सरकार चले जाने के बाद राजा, जमीनदार, ठेकेदार, महाजन
और हाकिमोके शोषण का अंत निश्चित है.
बिरसा मुंडा अंधश्रध्दा के सख्त खिलाफ
थे, वे आदिवासियों से कहते थे की वे बलि चढाना बंद करे, मृतको के साथ धन दौलत
गाडने की प्रथा त्यागे, भुत प्रेतों की पूजा बंद करे, तांत्रियोको महत्त्व न दे.
आदिवासी बिरसा की बात भी मानने लगे थे. बिरसा को सुनने दूर दुरसे लोग आते थे. बिरसा
आदिवासियोके मसीहा बन गए थे.
भारत में ईसाई मिशन की कमर तोडनेवाला पहला भारतीय बिरसा मुंडा था. आदिवासियोको के पतन का
सबसे बड़ा कारण उनका भ्रमित करनेवाला धर्म था. सुधार न होने के कारण वे धर्म के अंध
विश्वासोमे फस गए थे. ऐसे धर्म को फेकने
के सिवा कोई चारा नहीं था. हिंदू धर्मियो की तरह ईसाईयोने भी आदिवासियो को धोका दिया था. इसीलिए नए धर्म
की स्थापना उनकी मजबूरी थी. उनके नए धर्म का नाम था बिरसा धर्म. अब आदिवासियोका
ईसाई बणना रुक गया था. ईसाई मिशनरी को यह एक झटका सा था.
अब बिरसा मुंडा अंग्रेजो के हिटलिस्ट
में आ गए थे. उनके पाच शत्रु थे, जमीनदार,
साहूकार, सरकार, ईसाई मिशनरी और उनके अपने कुछ आदिवासी भाई जो बिरसा के विरोधी थे.
दुनिया में दो प्रकार की लढाईया होती है. पहिली अपने हक या अधिकार की लढाई तथा
दूसरी दूसरों के अधिकार छिनने की लढाई. बिरसा अपने अधिकारों की लढाई लढ रहे थे. बिरसा
की लढाईने राजनैतिक रूप ले लिया था. बिरसा के आंदोलन ने संघर्ष का रूप लिया था. ऐसे
में सरकारने बिरसा पकड़ो अभियान चलाने की घोषणा की. बिरसा विरोधियोके लिए यहाँ
स्वर्णसंधि थी. शोषणकर्ताओ के खिलाफ लढनेवाले बिरसा मुंडा को किसी अंग्रेज ने नहीं की
बल्कि उन्हें भारतीय आदमी, बदगाव का जमीनदार जगमोहन सिंह ने बिरसा के छिपने
के जगहसे गिरफ्तार करवाया था.
बड़ी शर्म की बात है की, उस समय भारत का
स्वतंत्र
आंदोलन तेजीसे बढ़ रहा था. भारत के आन्दोलनं में मशहूर वकील
तथा विद्वान शामिल थे. लेकिन कोई भी वकील बिरसा मुंडा को बचाने के लिए आगे नहीं
आये. बड़ा दुर्भाग्य था कि संपन्न और शक्तिशाली लोगो ने अपने निजी स्वार्थ के लिए अंग्रेजो से हाथ मिलाया था. बिरसा मुंडा को जेल में यातनाए देकर मारा गया. तब उनकी उम्र
केवल २५ साल की थी. अंग्रेजोने बिरसा को राजनैतिक कैदी
माननेसे भी इन्कार कर दिया था.
भारत के जमीनदार तथा साहुकारो की भूमिका आदिवासियोके के प्रती निर्दय का प्रतिक बन गई थी. वे आदिवासियोको अपना भाई, देशवासी
तक नहीं मानना चाहते थे. वे भूल गए थे की, आदिवासी उनकी प्रजा है, प्रजा का साथ देना उनका परम कर्तव्य है. उन्होंने बिरसा मुंडा और उनके
चेलो को कुचलने की योजना बनाई थी. बिरसा के प्रयास से जागृत आदिवासियो की क्रांतिकारी ताकत को नष्ट करने के
लिए अंग्रेजो
के साथ मिलकर ऐसी चाले चली, जिससे आदिवासी हमेशा के लिये उनके
गुलाम बनके रहे. वे चाहते थे की, बिरसा मुंडा
को फ़ासी की सजा हो, देशद्रोह का केस दाखिल करनेके लिये अंग्रेजो पर दबाव बढा रहे थे. आखिर ९ जून १९०० को केवल २५ साल की आयुमे जेल में ही निधन
हो गया. पोस्टमार्टम के बाद उनका शव उनके साथियो या घरवालोको नहीं सौपा गया बल्की
हरमू नदी के किनारे चुपचाप से जला दिया गया. कहा जाता है की, बिरसा की मृत्यु
उन्हें आर्सेनिक विष देने से हुई थी.
बिरसा मुंडा यदि सरकार के हाथ नहीं
आता, या फिर अपना आंदोलन धार्मिक आंदोलन तक ही सिमित रखते तो शायद उन्हें आजादी की
खुली हवा में साँस लेने का अवसर प्राप्त होता. इतनाही नहीं डाक्टर बाबासाहब
आंबेडकर ने लिखे हुए संविधान के तहत उन्हें सारे अधिकार प्राप्त होते. अगर बिरसा मुंडा
जीवित होते तो डाक्टर बाबासाहब का मानव मुक्ति का आंदोलन अधिक मजबूत होता. बिरसा
मुंडा और बाबासाहब आंबेडकर इनकी दुकड्डी भारत में सामाजिक, धार्मिक एंव राजनैतिक
क्रांती का बड़ा बदलाव लाते!
बापू राऊत
९२२४३४३४६४
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