हाल ही में मा. नरेंद्र मोदीजी के हाय प्रोफाइल वाले गुजरात
में दलितोको सरेआम मारनेका व्हीडियो सामने आया है। ग्यारह
जुलाई को वेरावल के ऊना गांव में मरे हुए जानवर के चमड़ा उतारने के मामले में दलित
युवकों की पिटाई की गयी। दलित युवको को मारनेवाले गोरक्षा
समितीके सदस्य थे। घटना का वीडियो वायरल होने पर भी
पुलिस हरकत में नहीं आई। दलितोके विरोध करने के बाद
गोरक्षा समितिके कुछ लोगोको गिरफ़्तार किया गया लेकिन मामला क़ानून की कड़ी धाराओं
के तहत दर्ज नहीं किया गया।
गाय है क्या? गाय एक जानवर है। जैसे बाकी जानवर होते है।
हर जानवर की एक अपनी उपयुक्तता होती है, जैसी बकरी की होती है। लेकिन धर्म के
ठेकेदारोने गाय का इतना महिमामंडन कर दिया की उसके शरीर के अंदर पुरे ३३ करोड देवी
देवता को बसा दिया। आजतक लाखो गायों को काटा गया लेकिन किसी भी गाय के पेट से कोई
भी देवी देवता बाहर नहीं निकली। गाय के पेट के अंदर से कोई भी देवता ने अपना
चमत्कार दिखाकर गाय को मारनेवाले का पेट नहीं फाड़ा। ऐसी स्थिति में कहा रफूचक्कर
होते है देवी और देवता? हाल ही में धर्म के ठेकेदारोने अफवाए फैला दी है की गाय के
मूत्र में सोने का अंश है। बकवास की बाते करनेमें इन धर्म के ठेकेदारों का कोई हात
नहीं पकड़ सकता। सामान्य लोगो को अंधविश्वास में डुबो देते है। वे अंधविश्वास के
नाम से पैसा कमाते है। अभी तो गायों के रक्षा के नाम पर सरकार को लुटा जा रहा है।
हजारों सालो से देश में असमानता की व्यवस्था चलाई जा रही
है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गोंपर जुल्म और जबरदस्ती की जा रही है। ये लोग गाय का
दूध और घी पियेंगे और खायेंगे लेकिन जब इनकी गाय मर जाती है तब उसे उठाने के लिए
गाव के दलितो को बुलाया जाता है। इन लोगो ने गाय को अपनी माँ का दर्जा दिया है, तो ये क्यों नहीं उठाते मरी
हुई गाय को? अपनी मरी हुयी माँ को उठाने के लिए दलितो को क्यों नहीं कहा जाता? तब
इनके धर्मशास्त्र कहा चरने जाते है?
उना जैसी घटनाए देश में रोज होती है लेकिन यह घटनाए कभी भी
बाहर नहीं आती। मनुवादी मिडिया इस बातो को दबाता रहता है। पोलिस एफआयआर करने आये गरीब
दलितोको भगा देते है। इनकी रिपोर्ट कभी भी लिखी नही जाती। दबंग जातियों के लोग ही
पोलिस और दरोगा होते है। वे अपने जातियोके खिलाफ रिपोर्ट लिखेंगे भी कैसे? जाती का
रोमांस उनके रग में भरा होता है। दलितो से जबरदस्ती और फुकट से घटिया काम करवाया
जाता है। आज भी मंदिरोमे प्रवेश नहीं दिया जाता। शादी के समय घोडेपर दुल्हे या
दुल्हनिया को बैठनेसे मना किया जाता है। जबरदस्ती से उनके खेतों को बरबाद किया जाता
है और उनकी जमीन हडप ली जाती है। जाती के नाम से भेदभाव कर उन्हें जानबूझकर शिक्षा
प्रदान नहीं की जाती, या शिक्षा निचले स्तर की दी जाती है। मान और सन्मान क्या चीज
होती है, दलितो को पता ही नहीं होता।
भारत में दलितो को हिंदू धर्म में सम्मिलित किया गया है।
लेकिन इस धर्ममें उन्हें कभी भी सन्मान नहीं मिला। डाक्टर बाबासाहब आंबेडकर इसका
जीता जागता उदाहरण है। हिंदू धर्म के व्यवस्थाने उन्हें बहोत परेशान किया था। भारत
में सबसे ज्यादा पढ़े लिखे होने के बावजूद उनका अपमान किया गया। इसीलिए बाबासाहब
कहते है की, जातीवाद जिस धार्मिक श्रध्दा पर खडा है, उस व्यवस्था को ध्वस्त करने बगैर
जातिवाद खत्म नहीं कीया जा सकता। इसीलिए शास्त्रों और ब्राम्हणों की बाते माननेसे
इन्कार करो। ब्राम्हणों के शास्त्रों का अधिकतर असर हिंदू धर्म की मध्यम जातियों (ओबीसी)
में दिखाई देता है। शास्त्रों में लिखी बाते यही जातीया अंमल में लाती है। इन
जातियोको हमारे निचे कुछ जातीया है इसका गर्व होता है। लेकिन हमारे ऊपर भी हमसे
श्रेष्ठ जातीया है, इसका उन्हें जरा भी अफसोस नहीं होता। इसीलिए, यह जातिया विषमता
के खिलाफ संघर्ष के लिए कभी खडी नहीं होती।
दलित समाज ने समझ लेना चाहिए की, भूतकाल में हिंदू धर्म
समता का कभी भी पक्षधर नहीं रहा, और आगे भी वह विषमता का पालनकर्ता ही रहनेवाला है। ऐसी परिस्थितियों में
उन्हें सन्मान और बराबरी का हक मिलने की बात तो दूर ही है। उन्हें व्यवस्था का
गुलाम बनके ही रहना होगा। अगर वह समान हक की बात करेगा तो उसका पीटना तय है।
बंधुवा मजदूर बनकर अत्याचार सहना होगा।
आखिर दलितो पर ही अत्याचार क्यों होते है? इसलिए की वे
अक्षम है, इसीलिए की वे बिखरे हुए है, इसीलिए की वे शास्त्रों की बाते मान रहे है,
इसीलिए की उनकी अपनी आवाज नहीं है। इसीलिए की वे लाचार, गरीब और परावलंबी है, इसीलिए की वे अपना वोट बेचते है, इसिलए की
वे विद्याहीन और दिशाहीन है या इसलिए की उन्हें अपना सक्षम नेता नहीं मिल रहा हो,
जो की उन्हें इस दलदल से बाहर निकाले। लेकिन एक बात स्पष्ट है, आज उन्हें म.फुले, आंबेडकर
या कांशीराम जैसे नेता नहीं मिलेंगे। इसीलिए स्वंय को खोजना होगा। स्वंयप्रकाशित
बनना होगा।
क्या दलितो के लिए मुक्ति का कोई रास्ता होगा? रास्ते तो
है, मगर उन्हें पहले अपनी दिशा तय करनी होगी। अपनी विचारधारा को रेखांकित करना
होगा। हिम्मत जुटानी होगी। ऐसे धर्म को ढूंढना होगा, जहा सन्मान और बराबरी का
अधिकार हो। जातियोका नामोनिशान तक ना हो। प्रार्थनास्थल में सब के साथ बैठने का
अवसर मिले। अगर ऐसा धर्म दलितो के सामने दिखाई देता है, तब अपने अत्याचारी
ब्राम्हणी धर्म को छोड़ देना एक क्रांतिकारी निर्णय होगा।
देश के दलित, जो गाय का चमड़ा उतारने का काम करते है, उन्हें
अपना काम छोड़ देना होगा। किसी के घर या
किधर भी मरी हुयी गाय पड़ी हो, उसे न उठाए। अपने आर्थिक सोर्स खुद निर्माण करना
होगा। इस संदर्भ में महाराष्ट्र के महार (धर्मांतरित बुद्धिस्ट) लोगो को उदहारणके
तौर पर देखना चाहिए। बाबासाहब आंबेडकर ने सभी अनुसूचित जातियोको परंपरागत काम
छोडनेका आवाहन किया था। उनमेसे केवल महार समाज ने बाबासाहब के आवाहन पर अपने काम
छोड़ दिए। आज इस समाज ने अपने उन्नति के रास्ते खुद ही बना लिए है। और वह हर
क्षेत्र में उन्नत (सभ्य) समाज के तौर आगे बढ़ रहा है। पूर्व में इस महार समाज के
पास ना कोई धंदा था, ना खेती थी। केवल मरे हुए जानवरों को उठाना, उसे काटना, उच्च
जातियोका मेसेंजर बनकर गाव गाव घुमना और उच्च जातीय लोगो की गुलामी करना यही काम था।
लेकिन महाराष्ट्र का यह समाज आज वैचारिक, बुध्दिमत्ता और तार्किकता के कसोटी पर
किसीसे कम नहीं है। यह केवल इसीलिए हुवा की, उन्होंने सिर्फ बाबासाहेब आंबेडकर की
हर बात मानी।
देश के बाकी दलित भी अपना निर्णय ले सकते है। जिसका
परिणाम भविष्यो की पीढियों पर होगा। अगर पीढियोंको अच्छा बनाना है, तब उन्हें अपनी गुलामी को नकारकर स्वंयमें स्वाभिमान की
जड़े लादना होगा। २१ वी सदी में भी जिस धर्म में गुलामी, अत्याचार, छुवाछुत और
जातिवाद का पाठ पढ़ाया जाता हो, ऐसे धर्म से क्या लेनादेना? जो धर्म अमानवीयता के
सिवाय कुछ नहीं देता, जो धर्म जाती के नाम पर लोगो का विभाजन करता हो। जो धर्म
आपको किसी भी कतार के अंत में खड़ा करता हो। जो धर्म मानव को जानवर से भी हीन समझता
हो। ऐसा धर्म किस काम का? ऐसे धर्म को छोड़ देना चाहिए। देश के सभी दलितो को
म.ज्योतिबा फुले और बाबासाहब आंबेडकर की विचारधाराको अपनाना होगा। तभी रोशनी की
किरणे दिखाई देगी अन्यथा अंधेरेके छाव में गुलामी के सिवा कुछ नहीं मिलेगा।
देशके सभी दलितो को अमानवीय धर्म के साथ निचले स्तर का
काम छोड़ना होगा।
उसे
स्वाभिमानी बनकर जिस काम से अन्य लोगो को घृणा होती है, ऐसे काम को नकारना चाहिए। किसी
वाल्मीकि रामायण, व्यास का महाभारत, कृष्ण की गीता या वेद पुराणोंके भक्ति से
मुक्ति, सन्मान या अधिकार प्राप्त नहीं होगा। भारत का संविधान ही मुक्ति का मार्ग
है। संविधान ही अधिकारोकी गंगोत्री है। लेकिन यह अधिकार पाने के लिए भी ईमानदार
नेता, मजबूत संघटन, जनआंदोलन और वोट के शक्ति की पहचान रखनेवाले समाज की जरुरत
होती है। अन्यथा शोषण और अन्याय से मुक्ति पाने का स्वंयप्रकाशित रास्ता मिलना कठिण
होगा ।
लेखक: बापू राऊत
९२२४३४३४६४
खुद सावरकर कहते थे गाय माता है,मगर सिर्फ बैलोंकी
ReplyDeleteखुद सावरकर कहते थे गाय माता है,मगर सिर्फ बैलोंकी
ReplyDeleteVery good article in Hindi hat's off Bapu
ReplyDeleteSanthosh Ji, I am trying to write my articles in Hindi and English because many of our brothers wants in Hindi and English language. They less known about Marathi
DeleteVery good article in Hindi hat's off Bapu
ReplyDeleteCow or Muslims are not problem of this country but only Brahmins are .they use to delibaretly creat such usless issues by which any country can not stand as "Nation"
ReplyDeleteRight sir, Bramhinisam is the real problem of our country. They dont want that all Indians should live unitedly.
Deletevada pav khanar ka?
ReplyDelete