मनुस्मृति में क्या छिपा है?
मनुस्मृती एक ऐसी किताब है, जहा सामाजीक एंव धार्मिक रचना के नियम लिखे है. इन नियमोद्वारा कई वर्षोतक महिला
और शुद्र (ओबीसी एंव अन्य) समाज का शोषण चल रहा था। उन्हे मुलभूत अधिकारोसे वंचित कर
दिया था। मनु के नियमों के अध्ययनसे स्पष्ट हो जाता है कि, मनु ही स्त्रियों की
दुर्गति के जनक है। उसके बनाए गए नियमोंके कारण महिलाओं की स्थिति में भारी गिरावट
आई थी। मनु कहते हैं कि, महिलाएं वैदिक मंत्र का जप नहीं कर सकतीं क्योंकि वह पापी
हैं (अध्याय 9.18)। पुरुषों को बहकाना और भ्रष्ट करना महिलाओं की विशेषता
है (2.21)। महिलाओं को कितना भी नियंत्रण में रखा जाए, वे पुरुषों के प्रति अपने लगाव के कारण निर्दयता
से अपने पतियों को धोखा देती हैं (9.15)। मनु स्त्री को
कामेच्छा की तीव्र इच्छा रखनेवाली कहते है, वे उसे अपवित्र वासना, क्रोध, बेईमानी, ईर्ष्या और
दुर्व्यवहार प्रदान करता है। इससे पता चलता है कि मनु की नजर में औरत कितनी नीची
है. मनु पति को अपनी पत्नी त्यागने और उसे बेचने की खुली छूट देता है। पत्नी को
बेचने के बाद भी वह अपने पूर्व पति के दायित्वों से मुक्त नहीं होती। मनु के कानून
उसे अपने पति की संपत्ति में हिस्सेदारी की अनुमति नहीं देते हैं। उसे जीवित रहने
तक अपने पति की आज्ञा के अधीन रहने के लिए कहता है। मनु (भृगु) के
ब्राह्मणवाद ने देश में कानून का रूप ले लिया था और महिलाओं को पूरी तरह से
अधिकारहीन कर दिया था।
दूसरी ओर, मनु ने शूद्र समाज पर कई प्रतिबंध लगाए थे।
शूद्र कौन है ? आज के
गैर-ब्राह्मण ओ.बी.सी, मराठा, जाट और गुर्जर शुद्र वर्ग में सम्मिलित हैं। मनु
ने इस वर्ग पर अन्यायपूर्ण शर्तें थोपीं। उसने ब्राह्मण को तीनों वर्णों का स्वामी
बनाकर राजा से श्रेष्ठ बना दिया और कहा कि राजा को ब्राह्मण के बिना शासन नहीं
करना चाहिए (अध्याय 7 और 10)। मनु जाति
व्यवस्था के जनक थे। मनुने अंतरजातीय प्रजनन से जन्मे नवजात शिशुओंको किस जाती में
स्थान दिया जाये इसके नियम बनाए । इतनाही नहीं, स्त्री-पुरुषों के बीच परस्पर
प्रेम से होनेवाले शिशुओंकी उपजातियाँ तक बनाईं (10.7,10.8,10.14,10.15...10.18). कौन सी जातियाँ
गाँव के अंदर और कौन सी जातियाँ गाँव के बाहर रहें, इसके नियम बनाए (10.53,10.54)। मनु समानता का शत्रु
और असमानता का कट्टर समर्थक था। शूद्र को यज्ञ में वैदिक मन्त्र जपने का अधिकार नकारा
गया। (10.124). यदि शूद्र शक्तिशाली भी हो जाये, तब भी वह
धनसंचय नहीं कर सकता (10.126)। शूद्र को यज्ञ के लिए पुजारियों को गहने और
पैसे देने चाहिए। किंतु उन्हे यज्ञ के समीप नहीं आने देना चाहिए (11.13)। मनु स्वयं
ब्राह्मण होने के कारण वह ब्राह्मण जाति को सृष्टि निर्माण से जोड़कर उन्हे
ब्रह्मा के प्रतिनिधि बताता हैं (11.84)।
कुल मिलाकर मनुस्मृति का रचयिता विषमतावादी प्रतीत
होता हैं। उसने समाज में असमानता फैलाकर ऊंच-नीच की खाई पैदा की। वह एक को लालची
बनाता है और दूसरे से मेहनत करवाता है। मनू लोगों को काल्पनिक भय दिखाकर समाज और
देश पर एक वर्ग का वर्चस्व थोपता है। इसीलिये मनुस्मृति जैसा ग्रंथ कोई विकृत
मानसिकता एवं रोगग्रस्त व्यक्ति ही लिख सकता है।
भारतीय महिलाएं और ओबीसी मनुस्मृति के खिलाफ
क्यों नहीं लड़ रहे?
मनुस्मृति में महिलाओं के संबंध में बहुत ही
गंदे, घृणित कानून और महिलाओं के अधिकारों को छीनने का प्रावधान है। फिर भी भारतीय
नारी मनुस्मृति के खिलाफ आवाज नहीं उठाती। भारत में सबसे बड़े ओबीसी - मराठा समाज
को मनु ने सभी अधिकारों से वंचित कर ब्राह्मणवादी संस्कृति का गुलाम बनाकर रखा है।
फिर भी ओबीसी समाज मनुस्मृति का विरोध कर उस मनु और मनुस्मृति नामक किताब को बाहर
का रास्ता दिखाने को तैयार नहीं हैं। इसकी कारणमिंमासा होना जरुरी है.
बुध्दिवादी समाज द्वारा मनुस्मृति की जटिलताओं
को जानने की जरूरत है। उनके द्वारा पुरुषों और महिलाओं को यह बताना चाहिए था कि,
जाति व्यवस्था में उच्च वर्ग किस प्रकार उनकी शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक और
सांस्कृतिक आवश्यकताओं का शोषण कर रहा है। कुछ लोग मनुस्मृति में भयावहता देखते
हैं, लेकिन वे मनु के खिलाफ आवाज नहीं उठाते क्योंकि उन्हें लगता है कि मनु उनकी
जाति का है। ओबीसी समुदाय द्वारा मनुस्मृति के खिलाफ आवाज न उठाने का कारण यह है
कि, अनुसूचित जाति समुदाय (दलित) द्वारा मनुस्मृति के खिलाफ आवाज उठाना है। ओबीसी
और अन्य समुदाय उन ब्राह्मणवादी सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था के खिलाफ खड़े नहीं होते
हैं, जिसके खिलाफ दलित समुदाय अपनी आवाज उठाता है। उदाहरण के लिए, जैसे ही दलित
समाज महात्मा बुद्ध, ज्योतिराव फुले, सावित्रीबाई फुले और शाहू महाराज इन
महापुरुषोंको स्वीकार करते है, उसी गति से इन महापुरुषों की जातिया (ओबीसी एंव
मराठा) उन्हें बहिष्कृत कर देता है।
वे अपने घरों में इन महापुरुषों की तस्वीरें लगाना भी पसंद नहीं करता। इसी कारण से
महिलाएं और ओबीसी मनुस्मृति के खिलाफ लड़ना नहीं चाहता। ओबीसी समाज के जातिवाद और
कट्टरता कांक्रीटीकरण होना, हिंदुत्ववादी ब्राम्हणी ताकतों को फायदा पंहुचा रहा है
।
बनारस यूनिवर्सिटी में मनुस्मृति जलाने के आरोप
में छात्र गिरफ्तार
विश्वविद्यालय वैचारिक आन्दोलन का केन्द्र होता है।
विश्वविद्यालयोमे में पुराने ग्रंथों की प्रामाणिकता वैज्ञानिक परीक्षण द्वारा
सत्यापित की जाती है। इसीसे नई विचारधाराओंका निर्माण होता है। उत्तर प्रदेश में
कुछ छात्रों ने 25 दिसंबर को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के परिसर में मनुस्मृति दहन कार्यक्रम का
आयोजन कर मनु के विचारोंका विरोध जताया. लेकिन मनुवादी संगठनों ने छात्रों के
खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और आठ छात्रों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। वास्तविक, छात्रों की गिरफ़्तारी सड़े-गले विचारों की जीत है। इससे देश में जनमत का
ज्वार किस दिशा में जा रहा है, यह दिखाई देता है।
मनुस्मृति के समर्थक डरते हैं
मनुस्मृति के समर्थक एक नये भयानक रोग से पीड़ित
हैं। उहे लगता है की, देश में मनु और ब्राह्मण धर्म का अस्तित्व बना
रहेगा या नहीं? ऐसी स्थिति बनना उनके लिए भयावह है। चूंकि ओबीसी और गैर-ब्राह्मण
समुदायोंमे काबिल और कृतीशील नेता नहीं हैं, फिर भी मनुवादियों द्वारा बहुजन समाज को अपने नियंत्रण में रखने के लिए
धर्मशास्त्र और काल्पनिक आडंबरों का सहारा लिया जा रहा है। अगर ऐसा नहीं किया गया,
तो ऊंची जातियों को डर है कि, भारत में उनका धार्मिक और सामाजिक वर्चस्व खत्म हो
जाएगा।
मनुस्मृति का दहन! लेकिन आगे क्या?
बहुजन समाज चाहे मनुस्मृति की कितनी भी आलोचना
करे और उसके दहन का आयोजन करे, लेकीन मनुस्मृति के समर्थकों
पर इसका कोई असर नहीं होता। इसके विपरीत, वे पाठ्यक्रम में मनुस्मृति का पाठ शामिल करने
का प्रयास कर रहे हैं। इसका मतलब स्पष्ट है कि, मनुस्मृति के विरोधी कमज़ोर हैं और
समर्थक अधिक शक्तिशाली बने। मनुस्मृति विरोधि नागरी समाज द्वारा इस पर चिंतन कर
कार्ययोजना बनानी चाहिए। जो लोग मनु की बात से सहमत नहीं हैं, उन्हें
मनुस्मृति मुक्ति आंदोलन शुरू करना चाहिए। मनुस्मृति ने बहुजन समाज को शिक्षा, आर्थिक, सामाजिक और
सांस्कृतिक समानता से वंचित कर दिया था! अब, बदले में, उन्हे मनु को अस्वीकार
करना चाहिए और गैर-वैदिक त्योहारों और संस्कृति का निर्माण करना चाहिए ।
महापुरुषों के विचारों को अपनाकर नए राष्ट्रवाद की नींव रखना चाहिए। महात्मा बुध्द, ज्योतिराव फुले, सावित्रीबाई फुले और शाहू महाराज के विचारों का
उत्सव आयोजित करनेकी जवाबदेही ओबीसी समूहोंको स्वीकार कर लेनी चाहिए। मनुस्मृति
समर्थकों के विचारों को पराजित करने के लिए, अपने मजबूत तर्क के सहारे उनके काल्पनिक दावों पर प्रहार करने के लिए
इतिहास और वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करना होगा। नागरी समाज को मनुस्मृती के प्रतीकात्मक
दहन के संतुष्टी से बाहर निकलकर संविधान और देश का सौहार्द बनाये रखनेके लिये कार्यरत
होना चाहिये।
लेखक:बापू राऊत
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