योजना आयोग ने देश में गरीबी पर पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ग्रामीण आबादी का शहरों की तरफ भले ही पलायन हो रहा है, लेकिन गांवों में गरीबी घटने की रफ्तार शहरों के मुकाबले तेज है। आयोग ने कहा है कि देश में पिछले पांच साल में ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों के मुकाबले गरीबी ज्यादा तेजी से कम हुई है।
गांवों में जहां गरीबी के कम होने की दर आठ प्रतशित के करीब रही, वहीं शहरों में यह दर मात्र 4.8 प्रतिशत रही। गांवों में गरीबी का आंकड़ा पांच साल में 41.8 प्रतिशत से गिर कर 33.8 प्रतिशत हो गया, जबकि शहरों में 25.7 प्रतिशत से गिरकर यह 20.9 प्रतिशत हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ राज्यों में गरीबी कम होने की दर 10 प्रतिशत से भी अधिक रही है।
ये राज्य हैं
हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, सिक्किम, तमिलनाडु और कर्नाटक। वहीं उत्तर-पूर्वी राज्यों -असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड- में गरीबी कम होने के बजाय बढ़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों में गरीबी आंशिक मात्रा में ही कम हुई है। खास तौर पर शहरी इलाकों में।
गरीबी मापने का पैमाना
योजना आयोग तेंदुलकर समिति द्वारा सुझाए गए पैमानों के आधार पर किसी परिवार की गरीबी का आकलन करता है। पैमाने में किसी परिवार द्वारा स्वाथ्य और शिक्षा पर किए जा रहे खर्च समेत भोजन में कैलोरी की भी गणना की जाती है। योजना आयोग ने दिसंबर 2005 में तेंदुलकर समिति का गठन किया था। इस समिति के मानदंडों और उनके आधार पर निकले निष्कर्षों पर समय समय पर प्रश्न उठते रहे हैं।
धार्मिक आधार पर आकलन
रिपोर्ट में धार्मिक आधार पर भी गरीबी का अध्ययन है। इसके अनुसार ग्रामीण इलाकों में जहां सिखों में गरीबी सबसे कम (11.9 प्रतिशत) है, वहीं शहरी इलाकों में ईसाइयों में निर्धनता सबसे कम (12.9 प्रतिशत) है। ग्रामीण और शहरी, दोनों इलाकों में सबसे ज्यादा गरीबी मुसलिमों में है। ग्रामीण इलाकों में असम में 53.6 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 44.4 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 34.4 प्रतिशत और गुजरात में 31.4 प्रतिशत मुसलिम गरीब हैं। जबकि शहरी इलाकों में राजस्थान (29.5 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (49.5), गुजरात (42.4), बिहार (56.6) और पश्चिम बंगाल (34.9) में उनकी संख्या अत्यधिक है। शहरी इलाकों में राष्ट्रीय स्तर पर मुसलिमों की गरीबी का औसत सर्वाधिक 33.9 प्रतिशत है।
अनुसूचित जाति-जनजाति में गरीबी
सामाजिक आधार पर रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी इलाकों में अनुसूचित जाति की आबादी में गरीबी का अनुपात 34.1 प्रतिशत है। जबकि अनुसूचित जनजाति में 30.4 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों में गरीबी का अनुपात 31.9 प्रतिशत है। बिहार और छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के करीब दो-तिहाई लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। उत्तर प्रदेश, मणिपुर और उड़ीसा में इन वर्गों के पचास प्रतिशत से अधिक लोग गरीब हैं।
वेतनभोगी सबसे कम गरीब
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में जो लोग वेतनभोगी नौकरियों या सेवाओं में लगे हैं, उनमें गरीबी का प्रतिशत सबसे कम है। जबकि देश के आधे से अधिक खेतिहर मजदूर गरीब की श्रेणी में हैं। ग्रामीण इलाकों में जहां ऐसे 40 प्रतिशत से ज्यादा मजदूर गरीबी रेखा के नीचे हैं, वहीं शहरों में इनका प्रतिशत 47.1 है। कृषि के लिहाज से सबसे संपन्न हरियाणा में 55.9 प्रतिशत खेतिहर मजदूर गरीब हैं, जबकि पंजाब में इनका प्रतिशत 35.6 है।
गांवों में जहां गरीबी के कम होने की दर आठ प्रतशित के करीब रही, वहीं शहरों में यह दर मात्र 4.8 प्रतिशत रही। गांवों में गरीबी का आंकड़ा पांच साल में 41.8 प्रतिशत से गिर कर 33.8 प्रतिशत हो गया, जबकि शहरों में 25.7 प्रतिशत से गिरकर यह 20.9 प्रतिशत हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ राज्यों में गरीबी कम होने की दर 10 प्रतिशत से भी अधिक रही है।
ये राज्य हैं
हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, सिक्किम, तमिलनाडु और कर्नाटक। वहीं उत्तर-पूर्वी राज्यों -असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड- में गरीबी कम होने के बजाय बढ़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों में गरीबी आंशिक मात्रा में ही कम हुई है। खास तौर पर शहरी इलाकों में।
गरीबी मापने का पैमाना
योजना आयोग तेंदुलकर समिति द्वारा सुझाए गए पैमानों के आधार पर किसी परिवार की गरीबी का आकलन करता है। पैमाने में किसी परिवार द्वारा स्वाथ्य और शिक्षा पर किए जा रहे खर्च समेत भोजन में कैलोरी की भी गणना की जाती है। योजना आयोग ने दिसंबर 2005 में तेंदुलकर समिति का गठन किया था। इस समिति के मानदंडों और उनके आधार पर निकले निष्कर्षों पर समय समय पर प्रश्न उठते रहे हैं।
धार्मिक आधार पर आकलन
रिपोर्ट में धार्मिक आधार पर भी गरीबी का अध्ययन है। इसके अनुसार ग्रामीण इलाकों में जहां सिखों में गरीबी सबसे कम (11.9 प्रतिशत) है, वहीं शहरी इलाकों में ईसाइयों में निर्धनता सबसे कम (12.9 प्रतिशत) है। ग्रामीण और शहरी, दोनों इलाकों में सबसे ज्यादा गरीबी मुसलिमों में है। ग्रामीण इलाकों में असम में 53.6 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 44.4 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 34.4 प्रतिशत और गुजरात में 31.4 प्रतिशत मुसलिम गरीब हैं। जबकि शहरी इलाकों में राजस्थान (29.5 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (49.5), गुजरात (42.4), बिहार (56.6) और पश्चिम बंगाल (34.9) में उनकी संख्या अत्यधिक है। शहरी इलाकों में राष्ट्रीय स्तर पर मुसलिमों की गरीबी का औसत सर्वाधिक 33.9 प्रतिशत है।
अनुसूचित जाति-जनजाति में गरीबी
सामाजिक आधार पर रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी इलाकों में अनुसूचित जाति की आबादी में गरीबी का अनुपात 34.1 प्रतिशत है। जबकि अनुसूचित जनजाति में 30.4 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों में गरीबी का अनुपात 31.9 प्रतिशत है। बिहार और छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के करीब दो-तिहाई लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। उत्तर प्रदेश, मणिपुर और उड़ीसा में इन वर्गों के पचास प्रतिशत से अधिक लोग गरीब हैं।
वेतनभोगी सबसे कम गरीब
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में जो लोग वेतनभोगी नौकरियों या सेवाओं में लगे हैं, उनमें गरीबी का प्रतिशत सबसे कम है। जबकि देश के आधे से अधिक खेतिहर मजदूर गरीब की श्रेणी में हैं। ग्रामीण इलाकों में जहां ऐसे 40 प्रतिशत से ज्यादा मजदूर गरीबी रेखा के नीचे हैं, वहीं शहरों में इनका प्रतिशत 47.1 है। कृषि के लिहाज से सबसे संपन्न हरियाणा में 55.9 प्रतिशत खेतिहर मजदूर गरीब हैं, जबकि पंजाब में इनका प्रतिशत 35.6 है।
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