अब देश के राजपर्व
(राजकीय सत्ता) मे कार्पोरेट जगत जैसे अंबानी, टाटा
तथा बजाज इनकी दखलअंदाजी बढ गाई है। भारत का सर्वोच्च सदन याने राज्यसभा के
सद्स्योमे उद्योगपतीयोकी भलमार है। हर पार्टी उद्योगपतियोको उन्हें राज्यसभा और लोकसभामें भेजना चाहती है। उसके बदले में
पार्टीयोंको भरपूर चंदा मिल जाता है। लेकिन इसका उलटा असर दिखना शुरू हुवा है। देश
की निति बनाने से लेके कॅबिनेट
मंत्रियोकी नियुक्ति तक इनका तजुर्बा बढ़ गया है यह देश के लिए खतरे की घंटी है। हाल ही में अरविंद केजरीवाल ने कृष्णा-गोदावरी बेसिन के आवंटन और रिलायंस
इंडस्ट्रीज द्वारा गैस के दाम बढ़ाए जाने को लेकर सरकार पर दबाव बनाने के आरोप
लगाए हैं। इस केजी बेसिन का आवंटन एनडीए सरकार के समय मुकेश अंबानी की रिलायंस
इंडस्ट्रीज को किया गया था। और कांग्रेस उसका पालन करती दिख रही है। वैसे कांग्रेस और भाजपा चोर और माखनचोर शब्द के निसंदिग्ध पात्र है. रिलायंस उद्योग समूह के साथ 2017 तक प्रति यूनिट सवा दो डॉलर में गैस के लिए करार किया गया था, जिसे कुछ वर्ष के भीतर ही
सवा चार डॉलर कर दिया गया।
अभी अभी मनमोहन सिंह सरकार के मंत्रिमंडल
के फेरबदल में जयपाल रेड्डी को पेट्रोलियम मंत्रालय से हटाया गया, उसने कई संदेहों को जन्म दिया है। रेड्डी एक समाजवादी चेहरा माना जाता है,
उन्होंने अंबानी की कई मांगे ठुकरा दी थी. रिलायंस
इंडस्ट्रीज ने न केवल गैस का उत्पादन कम किया, बल्कि
वह अब गैस के दाम 14 डॉलर प्रति यूनिट मांग रही है, जिसका असर उर्वरक और बिजली के दामों पर पड़ सकता है।
देश के सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि प्राकृतिक संपदा देश की संपत्ति है ना की किसी परिवार की. कॅग
द्वारा रिलायंस का ऑडिट करने के लिए मुकेश अंबानी के द्वारा आनाकानी की जा रही है। इण्डिया
अगेन्स्ट करप्शन के अरविंद केजरीवाल ने इन्हीं
तथ्यों को एक साथ रखकर देश के सत्तारूढ़ और विपक्षी गठबंधनों तथा कॉरपोरेट जगत के
बीच गठजोड़ भारत के लोगो
के सामने लाया है. उन्होंने रॉबर्ट वाड्रा और सलमान खुर्शीद पर
हमले के बाद भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को भी निशाने पर लिया।
भाजपा और कांग्रेस, दोनों ने ही अरविंद केजरीवाल के आरोपों को खारिज कर रहे हैं. लेकिन चोर कभी खुद को चोर नहीं कहता। कांग्रेस और भाजपा आज के चोर ही तो है। इन चोरोंको सत्ता से हटाने के लिए देश
के लोगोंको नया विकल्प देना होगा। लोग कोनसा विकल्प देंगे या २०१४
में दिखाई देगा। देश की मुख्य पार्टिया लोगो को वोट के बदले में चंदा (पैसा)
देते है। पैसो से वोट की खरीददारी होती है और यह सत्य है। यह सिलसिला अगर ऐसाही चलता रहेगा तो एकदिन देश के नेतागण,
अधिकारी और व्यापारी देश को तो बेचेंगे ही साथ में ७५% लोगोंको भूखाप्यासा बनाके छोड़ देंगे।
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