उत्तर प्रदेश मे मायावती
सरकारने सरकारी कर्मचारियों को
प्रमोशन और वरिष्ठता में आरक्षण का लाभ देने के लिए प्रावधान किए गए थे। इस प्रावधान के खिलाफ असमानतावादी
तत्वोने कोर्ट मे पी. एल. आय दायर किया था । राज्य सरकार की ओर से किए गए प्रावधानों को
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को असंवैधानिक करार दे दिया।
इस फैसले का असर अन्य
राज्यों में सरकारों की ओर से अपने कर्मचारियों को दिए जाने वाले आरक्षण के
नियमों पर भी पड़ेगा। किसी राज्य सरकार ने आरक्षण लागू किया होगा तो उसे चुनौती
देने के लिए शीर्ष अदालत का यह फैसला आधार बन सकता है।
सर्वोच्च अदालत ने यूपी राज्य सेवा अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अति पिछड़ा वर्ग आरक्षण अधिनियम 3 (7) व सेवक वरिष्ठता नियम 8 (अ) के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने आदेश को रद्द कर दिया था । सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले को बरकरार रखा है। जिन कर्मचारियों, अधिकारियों को इन प्रावधानों का लाभ दिया जा चुका है। उन पर यह फैसला लागू नहीं होगा। जस्टिस दलवीर भंडारी, जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय और जस्टिस दीपक मिश्रा की पीठ ने प्रदेश सरकार की ओर से 1994 में अधिसूचित किए गए प्रमोशन में आरक्षण के अधिनियम 3 (7) और सितंबर, 2007 से लागू किए गए सेवक वरिष्ठता नियम 8(अ) को असंवैधानिक करार दिया। मायावती के बसपा सरकार ने 2007 में वरिष्ठता नियम में तीसरा संशोधन कर 8(अ) को जून, 1995 से लागू कर दिया था। इस संशोधन के खिलाफ चुनौतियों को खारिज कर इलाहाबाद हाईकोर्ट बेंच ने 21 अक्तूबर, 2010 को उत्तर प्रदेश सरकार सेवक वरिष्ठता नियम 8 (अ) को जारी रखा। जबकि इसके बाद 4 जनवरी, 2011 को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस नियम को गैरकानूनी करार दे दिया। पीठ ने राज्य सरकार की उस दलील को फैसले में नकार दिया जिसमें कहा गया था कि लखनऊ बेंच ने शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय पीठ के 2006 के एम नागराज मामले में दिए गए फैसले को नजरअंदाज किया, जिसमें राज्यों के सरकारी कर्मियों को प्रमोशन में सही आंकड़ों के तहत आरक्षण प्रदान करने की व्यवस्था दी गई थी। इसके अलावा अन्य याचिकाओं में तर्क दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 16(4अ) के अनुसार राज्य सरकार वरिष्ठता में आरक्षण प्रदान कर सकती है। प्रमोशन में आरक्षण देने के संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के तहत 1994 में अधिनियम लागू किया गया था। इसके तहत राज्य सेवा आरक्षण एससी/एसटी व ओबीसी को धारा 3(7) के तहत लाभ प्रदान किया जाना तय किया गया। अन्य राज्य भी दायरे में मौजूदा फैसले का असर राजस्थान सहित अन्य राज्य सरकारों की ओर से लागू किए गए कोटा नियमों पर पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला
दलित-ओबीसी विरोधी है। दलित ओबीसी सामाजिक संघटना एव राजनैतिक फोरम ने इस फैसले का
विरोध करना चाहिए। क्या सुप्रीम कोर्ट समानता के खिलाफ है। अगर यह सही है तो दलित ओबीसी का भविष्य खतरे मे है।
बापू राऊत
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Friday, April 27, 2012
सुप्रीम कोर्ट का दलित-ओबीसी विरोधी फैसला
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